कैंसर – कारण और निवारण

कैंसर को एक गंभीर और लाइलाज रोग माना जाता है। पिछले 200 वर्षों से अमेरिका और अन्य देश इस रोग पर शोध कर रहे हैं। अरबों रुपया इस रिसर्च में फूँका जा रहा है, अनेक संस्थाओं से डोनेशन लिया जाता है। लेकिन न तो कैंसर की मृत्यु दर कम हुई है और ना ही इसका इंसीडेंस कम हुआ है।  हमारे पास काबिल डॉक्टर्स और नर्सिंग कर्मियों की पूरी फौज है। फाइव स्टार हॉस्पीटल्स हैं। हर साल दर्जनों कीमोथेरेपी दवाइयाँ बनाई जाती हैं। हर बार कहा जाता है कि बस हम कैंसर के क्यौर से बस थोड़ा ही सा दूर हैं, लेकिन यह थोड़ी सी दूरी हम 200 साल में भी तय नहीं कर पाए हैं। हम जहाँ तब थे, वहीं आज खड़े हैं। ऐसा क्यों है, कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी दिशा ही गलत हो। कहीं हमें एक यू टर्न लेने की जरूरत तो नहीं है। 
कैंसर का इंसीडेंस तेजी से बढ़ रहा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार 10 साल बाद कैंसर का इंसीडेंस पांच गुना बढ़ जाएगा। यह स्थिति बहुत भयावह होगी। हमें बहुत गंभीरता से कैंसर के बचाव पर काम करने की आवश्यकता है। आओ दोस्तों, कैंसर के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दें। अपने तरकश से तीर निकाल कर धनुष पर अवस्थित कर लीजिए और प्रत्यंचा चढ़ा कर तैयार रहिए। हमें बुडविग उपचार को कैंसर के हर मरीज तक पहुँचाना है। हमें भारत सरकार को यह संदेश पहुँचाना है कि इस उपचार को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए समुचित कदम उठाए। इस उपचार द्वारा हम कैंसर के करोड़ों मरीजों को राहत और सुकून भरा जीवन दे सकते हैं।

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मुझे कौनसा उपचार लेना चाहिए?

जैसे ही आपको कैंसर डायग्नोस होता है, आपके सभी दोस्त, परिजन और रिश्तेदार रातों-रात डॉक्टर बन जाते हैं और आपको सलाह देना शुरू कर देते हैं। कोई कहेगा, आप किसी की मत सुनो सीधे अमुक अस्पताल में जाकर अंग्रेजी इलाज करवाओ, तो कोई कहेगा आप अमुक आयुर्वेद उपचार करवाओ या कोई कहेगा कि आप अमुक होम्योपेथी डॉक्टर के पास जाओ। उधर आपका ओंकोलोजिस्ट तुरंत सर्जरी और कीमो के लिए बुलवाएगा। वह कहेगा कि आपने तुरंत सर्जरी नहीं करवाई तो आपकी जान को ख़तरा है। आप कल ही भरती हो जाइए। अब आप कनफ्यूज़ हो जाते हो और कई बार आप गलत निर्णय कर बैठते हो। यहाँ मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अपने लिए सही उपचार चुनना आपका अधिकार है। आपको जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है। जो डॉक्टर्स आपको डराते हैं, धमकाते हैं, वो एकदम गलत बात है। आप मत डरिए, 10-15 दिन में आपको कुछ नहीं होगा। सुनिए सबकी करिए मन की। आपके सामने उपचार के जो भी विकल्प हैं, उनके फायदे नुकसान बारे में अच्छी तरह जानकारी जुटाएं, गूगल पर जाकर पूरी रिसर्च करें और तसल्ली से सही उपचार का चुनाव करें। जब आप सभी इलाजों के बारे में पता कर लेगें तो आपके लिए सही उपचार का चुनाव करना आसान हो जाएगा। हाँ आप ऐसा कोई नीम-हकीम खतरे जान उपचार कभी नहीं ले, जिसमें आपको यह भी नहीं बताया जाता है कि आपको कौनसी दवा या जड़ी-बूटी दी जा रही है।

बडविग प्रोटोकॉल इतना बढ़िया इलाज है फिर हमारे एलोपेथी के अस्पतालों में क्यों प्रचलित नहीं?

अब आप ये सोच रहे होंगे कि जब यह उपचार इतना अच्छा है तो हमारे एलोपेथी के हॉस्पीटल्स कैंसर के मरीजों को बडविग उपचार क्यों नहीं दिया जाता या अधिकांश डॉक्टर्स इस उपचार से अनभिज्ञ क्यों हैं। देखिए, मैं आपको शुरू से समझाता हूँ। प्राचीन काल में कुछ सेवाभावी डॉक्टर्स ने मिलकर एलोपेथी की शुरूआत की। सभी डॉक्टर्स के  बहुत अच्छे इरादे थे। उनका मूलमंत्र था “प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्यौर”। हमारे डॉक्टर शुरू से ही बहुत अच्छे हैं। वे बहुत मेहनत करते हैं, बहुत पढ़ाई करते हैं, बहुत बुद्धिमान होते हैं। फिर एलोपेथी में रिसर्च का दौर शुरू हुआ। मेडीकल साइंस विकसित हुई। अधिकांश बीमारियों पर रिसर्च हुई और उनके उपचार खोजे गए। कई नए-नए हैल्थ प्रोग्राम जैसे स्मालपॉक्स कंट्रोल प्रोग्राम, मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम आदि शुरू किए गए। कई बीमारियों को तो जड़ से खत्म कर दिया गया।

नित नई दवाएँ बनने लगी। धीरे-धीरे इस मेडीकल साइंस में दवाई बनाने वाली कंपनियों का दखल बढ़ता गया। बस यहीं से समस्या शुरू हुई। धीरे-धीरे मेडीकल साइंस मेडीकल इंडस्ट्री बनती गई। “पहले बीमार करो फिर उपचार करो” मेडीकल इंडस्ट्री का आदर्श बन गया और बेचारा डॉक्टर रोबोट बनकर रह गया। या यूँ समझें कि डॉक्टर फार्मास्यूटिकल कंपनियों की कठपुतली बनकर रह गया। उसे कुएं का मैंडक बना दिया गया, ताकि उसे बाहर की कोई चमत्कारी जड़ी-बूटी या होम्योपेथी की सेफ और सटीक गोलियां दिखाई नहीं दे। आजकल ये रोबोट रूपी डॉक्टर अमेरिका में बैठी फार्मास्यूटिकल कंपनियों द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर से चलता है। इन कंपनियों ने रिश्वत खिलाकर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं जैसे एफ.डी.ए., अमेरिकन कैंसर सोसायटी आदि के बड़े-बड़े नुमाइंदों को अपने जाल में जकड़ लिया है। ये उनके रिश्तेदारों को अपने यहाँ ऊँची तनख्वाह पर नौकरी देते हैं। ये डॉक्टर्स को गिफ्ट्स देते हैं, कमीशन देते हैं और फोरेन टुअर करवाते हैं। शुरू में तो डॉक्टर्स भी उनके चंगुल में नहीं फंसना चाहते थे, और इन गलत चीजों का विरोध भी करते थे, लेकिन इन धूर्त कंपनियों ने येन केन प्रकारेण अधिकांश डॉक्टर्स को अपने शिकंजे में कस ही लिया।

आजकल बीमारियों के ट्रीटमेंट प्रोटोकोल भी इस तरह बनाए जाते हैं कि इलाज इस तरह किया जाए कि मरीज जिंदा तो रहे पर कभी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाए ताकि वो जीवन भर दवा खरीदता रहे और इनको पैसा मिलता रहे। आज की मेडीकल इंडस्ट्री का मोटो प्रिवेंशन नहीं है। इनका फोकस इस बात पर रहता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा पेशेंट क्रियेट किये जाएं और कैसे दवाओं की बिक्री बढ़ती रहे। मेडीकल इंडस्ट्री का सिस्टम इस तरह का बना दिया गया है कि कोई भी हर्बल या नेचुरल दवा का पेटेंट नहीं करवा सकता। अब तो सिर्फ ऐसा कैमीकल का ही पेटेंट हो सकता है जिसे ये फार्मास्यूटिकल्स अपनी फैक्ट्री में बना सके और मनचाही कीमत वसूल कर सकें।

कैंसर उपचार में तो हालत सबसे खराब है। ये सिर्फ ट्यूमर को ही बीमारी समझते हैं और उसको नष्ट करने के लिए मरीज को जहरीली और कैंसरकारी रेडियो थेरेपी व कीमो के इंजेक्शन और गोलियां देते रहते हैं, जबकि बीमारी कुछ और होती है, कारण कुछ और होता है। शायद इसीलिए हर मरीज में कैंसर दोबारा लौटकर आता ही है। डॉ वारबर्ग के विज्ञान को एलोपेथी ने आजतक नहीं पढ़ाया गया। शायद वे चाहते ही नहीं कि डॉक्टर्स कैंसर के कारण को जानें। यह कैसी विधा है जो बिना कारण जाने कैंसर का निवारण करना चाहती है? इसी का नतीजा है कि आज लाखों-करोड़ों लोग कैंसर से मर रहे हैं। रेडियोथेरेपी और कीमो के इंजेक्शन और गोलियों की कीमत भी आजकल लाखों में होती है, भले इनसे मरीज को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है। लोगों के जमीन-जायदात बिक रहे हैं, परिवार तबाह हो रहे हैं, देश तबाह हो रहे हैं। हे भगवान क्या होगा इस विश्व का?

अब आप ही बताइए, ये फार्मास्यूटिकल कंपनियां कैसे बरदाश्त करेंगी कि कैंसर के मरीज अलसी का तेल और पनीर खाकर ठीक होने लगे और कीमो की फैक्ट्रियों में ताला लग जाए। मैं कैंसर के इस सरल, सहज, सटीक, सुरक्षित और संपूर्ण समाधान को हर कैंसर के रोगी तक पहुँचाना चाहता हूँ और प्रयासरत हूँ। यही मेरे जीवन का मिशन है। मैं समर्थ भी हूँ, सफल भी हूँ और अपने मिशन को पूरा करके ही दम लूँगा। यदि हम सब बडविग के विज्ञान को अपना लें तो हमें दुनिया में एक भी कैंसर हॉस्पीटल की जरूरत नहीं होगी।

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बडविग प्रोटोकोल कैसे काम करता है और 90 प्रतिशत सफलता भी देता है…

मैं आपको बडविग उपचार की संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूँ। यह उपचार पूरी तरह वैज्ञानिक और नेचुरल है और क्वांटम साइंस और बायोकैमिसट्री  पर आधारित है। यह कैंसर के कारण पर प्रहार करता है। इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं है। हाँ कई साइड बेनीफिट्स जरूर है, जैसे यदि आपको डायबिटीज भी है और आप दवाइयाँ व इंसुलिन ले रहे हैं, तो हो सकता है कुछ महीने बाद आपकी इंसुलिन या दवा छूट जाए। यह आपके दिल और जोड़ों के लिए भी बहुत हितकारी है। मतलब बस फायदे ही फायदे हैं।

यह उपचार जर्मनी की डॉ. जॉहाना बडविग ने विकसित किया था। चलिए इस उपचार के मर्म को समझने के लिए निम्न बिंदुओं पर गौर कीजिए।

1.     यह कैंसर के मूल कारण पर प्रहार करता है।

2.     कैंसर के मुख्य कारण की खोज 1931 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कर ली थी। जिसके लिये उन्हें नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया। उन्होंने सिद्ध किया कि यदि कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो हमें कैंसर हो जाता है।

3.     ऑक्सीजन का काम हमारे लिए ऊर्जा बनाना है। ऑक्सीजन की कमी होने पर  कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा बनाने की कौशिश करती हैं और सिर्फ 5 प्रतिशत ऊर्जा (यानि 2 ए.टी.पी.) बनती है। और खराब वाला लीवो-रोटेटिंग लेक्टिक एसिड बनता है, जो शरीर को एसिडिक बनाता है।

4.     डॉ. वारबर्ग ने हमें बताया था कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं, पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि क्रीम जैसे पनीर (कॉटेज चीज़) में पाया जाता है और दूसरा तत्व कुछ फैटी एसिड्स हैं जिन्हें कोई पहचान नहीं पा रहा था। वारबर्ग ने भी प्रयोग किए परंतु वह भी इस रहस्यमय फैट को पहचानने में नाकामयाब रहे। उस दौर के कई शोधकर्ता भी इस विषय पर शोध कर रहे थे, पर कोई भी उस फैट के पहचान नहीं पाया।

5.     वक्त गुजरता रहा और फिर 1949 में डॉ. बडविग ने पेपरक्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की, जिससे वे फैट पहचान लिए गए। वे फैट्स थे अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैट का मुखिया) और लिनोलिक एसिड (ओमेगा-6 फैट का मुखिया), जो अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये हमारे शरीर में नहीं बन सकते इसलिए इन्हें असेंशियल फैट्स का दर्जा दिया गया है। इनमें ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। जब ये फैटी एसिड्स सल्फरयुक्त प्रोटीन के साथ हाथ में हाथ मिलाकर कोशिका में पहुँचते हैं और कोशिका तथा माइटोकॉन्ड्रिया की भित्ति में अवस्थित होते हैं, तब ये उर्जावान इलेक्ट्रोन्स ही ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करते हैं। जैसे ही ऑक्सीजन कोशिका में पहुँचती है, उर्जा निर्माण के तीनों स्टेप्स (ग्लायकोलाइसिस, क्रेब सायकिल, और इलेक्ट्रोन ट्रांसफर चेन) सक्रिय हो जाती हैं तथा पूरी उर्जा (यानि 36-38 ए.टी.पी.) बनने लगती है, ग्लूकोज़ का फर्मेंटेशन बंद हो जाता है और कैंसर का अस्तित्व खत्म होने लगता है। यह खोज बहुत महान थी और कैंसर के उपचार में विजय की पहली पताका साबित हुई। 

6.     अब बडविग ने सोचा कि अब मैं कैंसर को ठीक कर सकती हूँ। बस उन्होंने कैंसर के 650 मरीजों पर ट्रायल किया। उन्हें अलसी का तेल और कॉटेज चीज़ मिला कर देना शुरू किया। तीन महीने बाद नतीजे चौंका देने वाले थे। मरीजों का हीमोग्लोबिन बढ़ गया था, उनके दर्द ठीक हो रहे थे, वे  ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे और उनकी गांठे छोटी हो गई थी। इस तरह बडविग ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार विहार तथा शरीर के टॉक्सिन्स निकालने के उपचार आदि को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ।

7.     यह उपचार हर तरह के कैंसर को हील करता है और नेचुरली करता है, हर स्टेज के कैंसर को क्यौर करता है और श्यौर करता है और मरणासन्न रोगियों में भी 90 प्रतिशत  सफलता देता है और प्रमाण के साथ देता है।  उनका नाम नोबल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित भी हुआ।  

हम आपको 2 तरह से सपोर्ट कर सकते हैं। या तो आप एक दिन हमारे पास आ जाएं, हम आपको पूरा उपचार सिखा देंगे, ओमखंड (अलसी तेल और पनीर का दिव्य व्यंजन) बनाने की सही तकनीक बतलाएंगे और डीवीडी व ट्रीटमेंट मेटीरियल भी दे देगें, ताकि आपको अच्छे रिजल्ट मिले। यदि किसी कारणवश आप नहीं आ सकें तो आपकी पूरी ट्रेनिंग  जूम एप पर ऑनलाइन होगी जिसे आप पूरे परिवार के साथ देख पाएंगे और बुक, पूरा ट्रीटमेंट प्लान और ट्रीटमेंट मेटीरियल कोरियर से भेज दिया जाएगा। 

एसीएक चाय जो कैंसर को करे बॉय

1922 में उत्तरी ओंतारियो, कनाडा की नर्स रेने केस ने एक दिन नदी के किनारे किसी स्त्री को नहाते हुए देखा, जिसके एक स्तन पर काफी बड़े स्कार टिश्यू बने हुए थे। पूछने पर उसने बताया कि तीस साल पहले उसे स्तन कैंसर हो गया था, जिसके लिए एक हिंदुस्तानी वैद्य ने कुछ जड़ी-बूटियों का काढ़ा पीने को दिया था। इस काढ़े से उसका कैंसर बिलकुल ठीक हो गया। केस ने उससे विस्तार से बात की और उन जड़ी-बूटियों के नाम और काढ़ा बनाने की विधि डायरी में लिख ली।   
इसके बाद केस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उसको तो अपने जीवन का मकसद मिल चुका था। उसने अपना पूरा जीवन इस जादुई चाय पर रिसर्च करने और कैंसर के मरीजों की सेवा में लगा दिया। उसने अपने सरनेम केस Caisse की स्पेलिंग को उल्टा करके Essiac एसियक शब्द बनाया और यही नाम इस चाय को दे दिया। सन् 1924 में केस की चाची को स्टोमक कैंसर हुआ और डॉक्टर्स ने कहा कि वह मुश्किल से 6 महीने जी पाएगी। केस ने एसियक चाय से चाची का उपचार किया और वह कैंसरमुक्त हो कर 21 साल जीवित रही। इसके बाद में रेने केस की मां को भी लीवर में खतरनाक कैंसर हुआ और डॉक्टर्स ने कहा कि वह कुछ ही दिनों की मेहमान है। लेकिन केस ने अपनी मां का उपचार भी इसी चाय से किया और वह 18 साल तक स्वस्थ जीवन जीवित रही। 
केस ने ब्रेसब्रिज, ओंतारियो में कैंसर क्लीनिक शुरू की और सन् 1934 से सन् 1942 तक मरीजों का उपचार करती रही। पूरे कनाडा के डॉक्टर्स उसके पास अपने मरीज भेजने लगे। कई सर्जन और विशेषज्ञ उसकी क्लीनिक में आते, उसके मरीजों से मिलते और उनकी केस हिस्ट्रीज़ का अवलोकन करते।

सावरक्रॉट – कैंसर उपचार में तुर्प का पत्ता

बडविग प्रोटोकॉल में सावरक्रॉट का बड़ा महत्व है। सावरक्रॉट बंदगोभी को फर्मेंट करके बनाया जाता है, इसमें नाना प्रकार के प्रोबायोटिक्स, एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन सी एवं बी ग्रुप और मिनरल्स होते हैं। यह एक शक्तिशाली क्षारीय भोजन है। 200 ईसा पूर्व मारकस पोर्सियस केटा द ईल्डर नाम के एक रोमन स्टेट्समेन ने अपनी विख्यात पुस्तक  “ऑन फार्मिंग” में स्पष्ट  लिखा है कि कैंसर का कोई भी उपचार बिना सावरक्रॉट के काम नहीं करेगा। यह डाइजेस्टिव सिस्टम की सारी बीमारियों को भी चुटकियों मे ठीक कर देता है। हम इसे आबेहयात कहते हैं। हम बेहतरीन सावरक्रॉट बनाते हैं और बेचते हैं।   

अलसी के तेल में पाए जाने वाले अल्फा लिनोलेनिक एसिड का महत्व

एक ऐसे पोषक तत्व की बात कर रहा हूँ, जिसकी दशकों से अवहेलना की जा रही है, न स्कूलों में इसे पढ़ाया जाता है, न चिकित्सक इसकी खुल कर चर्चा करते हैं, बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने इस तत्व को हमारे आहार से लगभग गायब कर दिया है, जबकि सच्चाई यह है कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है, यह हमें स्वस्थ और तंदुरुस्त रखता है, अनेक गंभीर रोगों से बचाता है, कोशिकीय श्वसन के लिए इसकी उपस्थिति अनिवार्य है, इसके विरह में कोशिकाएं दम तोड़ने लगती हैं, इसके बिना जीवन अकल्पनीय है, इस तत्व का नाम है अल्फा लिनोलेनिक एसिड जो ओमेगा-3 फैट परिवार का मुखिया है और जिसका भरपूर स्त्रोत है अलसी।

अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ALA) की क्वांटम साइंस

    1- यह एक ओमेगा-3 फैट है क्योंकि इसमें पहला डबल बांड ओमेगा कार्बन से तीसरे कार्बन के बाद बना है
    2- जहां भी चेन में डबल बांड बनता है चेन कमजोर पड़ जाती है, इसलिए मुड़ जाती है
    3- इस मोड़ में डिलोकेलाइज्ड इलेक्ट्रोन्स इकट्ठे हो जाते हैं। हल्के होने के कारण ये इलेक्ट्रोन्स ऊपर उठकर बादल की तरह तैरते हुए दिखाई दिए इसलिए बडविग ने इन्हें      इलेक्ट्रोन्स क्लाउड या पाई- इलेक्ट्रोन्स की संज्ञा दी है। बडविग ने पेपरक्रोमेटोग्राफी से यह सब स्पष्ट देखा
    4- जीवन ऊर्जा से भरपूर उपचारक इलेक्ट्रोन्स ही हमारी जीवन शक्ति है
    5- ये इलेक्ट्रोन्स हमें ऊर्जावान, बलवान, बुद्धिमान, निरोगी और चिरंजीवी बनाते हैं
    6- ये इलेक्ट्रोन्स ही ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करते हैं
    7- ये इलेक्ट्रोन्स ही कैंसर को हील करते हैं
    8- बडविग ने इन्हें सबसे बड़ा अमरत्व घटक माना है
    9- कैंसर उपचार तो इस क्वांटम विज्ञान का ट्रेलर मात्र है पिक्चर तो अभी बाकी है दोस्तों
    10- बडविग ने हमारे आहार का सबसे अहम तत्व फैट्स को माना है और कहा है कि प्रोटीन (अर्थात मैं पहला हूँ) नाम फैट्स को दिया दाना चाहिए था
    11- हमारा दुर्भाग्य है कि इस विज्ञान को न कहीं पढ़ाया जाता है और न बडविग के बाद इस पर कोई रिसर्च हुई है  

डेंडेलियन -शेर के दंत करे कैंसर का अंत

आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि सर्वव्यापी, साधारण से डेंडेलियन नाम के पौधे की जड़ कई तरह के कैंसर में चमत्कारी साबित हो रही है। हाल ही हुई शोध से भी यही संकेत मिले हैं। डेंडेलियन एक फ्रेंच “शब्द dent-de-lion से लिया गया है, जिसका अर्थ है  शेर के दांत। विंडसर रीजनल कैंसर सेंटर, ओंतारियो कनाडा के डॉ. कैरोलिन हैम के अनुसार क्रोनिक माइलोमोनोसाइटिक ल्यूकीमिया के एक गंभीर मरीज जॉन डिकार्लो को डॉक्टर्स ने सिर्फ चार मंहीने का समय दिया था। किसी ने उसे डेंडेलियन की जड़ की चाय पीने की सलाह दे डाली। चार महीने बाद बिलकुल ठीक होकर जॉन हॉस्पीटल पहुँचा तो डॉक्टर्स अचंभित थे और इसे डेंडेलियन का बड़ा चमत्कार मान रहे थे। विंडसर यूनिवर्सिटी के बायोकेमिस्ट सियाराम पांडे और साथी डेंडेलियन पर रिसर्च कर रहे हैं और बहुत उत्साहित हैं क्योंकि उनकी टीम को रिसर्च के लिए सरकार ने 215,00 डालर दिए हैं। मशहूर हर्बलिस्ट मारिया ट्रेबेन भी डेंडेलियन को ल्यूकीमिया समेत कई बीमारियों में प्रयोग करती है। डॉ. बुडविग ने भी इसे अपने सलाद में शामिल करने की सलाह दी है। एक टीस्पून पाउडर को ठंडे पानी या औरेंज ज्यूस में मिला कर दिन में एक बार सेवन करें। इसे हर्बल टी के रूप में भी लिया जा सकता है।  तीन चार दिन में आपको अच्छा महसूस होने लगेगा, क्योंकि नया खून बनना शुरू हो जायेगा। तीन-चार हफ्तों में तो आपकी इम्यूनिटी पुख्ता होकर कैंसर पर पकड़ मजबूत कर लेगी। दर्द में राहत मिलने लगेगी। धीरे-धीरे ही सही पर कैंसर जड़ से ठीक होने लगेगा।

“हैल्थ ऑफ इंडिया” में बडविग प्रोटोकॉल कवर स्टोरी के रूप में

यह कवर स्टोरी दुनिया की बहुत बड़ी साइंटिस्ट डॉ बडविग को मेरी छोटी सी श्रद्धांजलि है। आज मैं बहुत खुश हूँ। आज “हैल्थ ऑफ इंडिया” के नये अंक में कैंसर का सफलतम उपचार बडविग प्रोटोकोल कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित हुआ है।  डॉ बडविग इस सदी की महान वैज्ञानिक है, जिन्होंने कैंसर और क्वांटम बायोलोजी पर वर्षों तक शोध की है। यह उपचार कैंसर के हर रोगी तक पहुँचना चाहिए और सरकार को इसकी जागरुकता और शोध को प्रोत्साहन देना चाहिए। इस उपचार से 90% प्रामाणिक सफलता मिलती है। उन्हें नोबल प्राइज के लिए 7 बार नोमिनेट किया गया।  अलसी के तेल का नियमित सेवन कर के इस रोग से बचा जा सकता है।

कैंसर की डॉक्टर जोहाना बुडविग शोध किया पहचाना
अलसी तेल पनीर मिलाया किया अचंभित फल जो पाया
जन हित धर्म कर्म चमकाया सात बार नोबल ठुकराया
कर्क रोग से सब जग हारा अलसी खिला खिला उपचारा

हमारा फेसबुक ग्रुप

बडविग प्रोटोकॉल नाम से फेसबुक पर मेरा एक ग्रुप है जिसमें देश-विदेश के 7000 से अधिक सदस्य हैं। इसकी लिंक यह है https://www.facebook.com/groups/budwig/ इस ग्रुप में बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक बाते होती है। इस ग्रुप में बहुत सारे कैंसर के रोगी हैं जो बडविग प्रोटोकोल ले रहे हैं और उनको बहुत अच्छे परिणाम भी मिल रहे हैं। यहां आपको मित्र नई-नई सक्सेस स्टोरीज पढ़ने को मिलती है, और आपका आत्मविश्वास बढ़ता है। 

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दबंग दुनिया पत्रिका में भी बडविग कैंसर उपचार की दबंगई 

http://www.dabangdunia.co/news/news/story/156275.html

संजीवनी टुडे में शान से प्रकाशित मेरा लेख – कैंसर की जंग में मददगार जर्मन डॉक्टर की चिकित्सा पद्धति

http://dhunt.in/7K17r?ss=wsp&s=pa

घर-घर पहुँचा बडविग प्रोटोकॉल, अब कैंसर की नहीं है खैर

 http://www.univarta.com/news/science-and-technology/story/1811419.html

कैंसर में मददगार जर्मन डॉक्टर की चिकित्सा पद्धति

http://www.deshbandhu.co.in/admin/epaper/06122019/06122019_DB_NAT_14.pdf.pdf

यदि हम सब बडविग के सिद्धांत पर अमल करें तो दुनिया कैंसर-मुक्त हो जाएगी। इस स्वप्न को साकार करने हेतु हमारी शक्ति बढ़ाइए, दिल खोल कर दान दीजिए…


बडविग चेतना से बड़ा कोई कर्म नहीं और दान से बड़ा कोई धर्म नहीं अभी दान करें – उषा वर्मा, ट्रेज़रार, बडविग वेलनेस

  

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