बडविग प्रोटोकोल

दोस्तों,

मैं आपको बडविग उपचार की संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूँ। यह उपचार पूरी तरह वैज्ञानिक और नेचुरल है और क्वांटम साइंस और बायोकैमिसट्री पर आधारित है। इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं है। हाँ कई साइड बेनीफिट्स जरूर है, जैसे यदि आपको डायबिटीज भी है और आप दवाइयाँ व इंसुलिन ले रहे हैं, तो हो सकता है कुछ महीने बाद आपकी इंसुलिन या दवा छूट जाए। यह आपके दिल और जोड़ों के लिए भी बहुत हितकारी है। मतलब बस फायदे ही फायदे हैं।

यह उपचार जर्मनी की डॉ. जॉहाना बडविग ने विकसित किया था। चलिए इस उपचार के मर्म को समझने के लिए निम्न बिंदुओं पर गौर कीजिए।

1. यह कैंसर के मूल कारण पर प्रहार करता है।

2. कैंसर के मुख्य कारण की खोज 1931 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कर ली थी। जिसके लिये उन्हें नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया। उन्होंने सिद्ध किया कि यदि कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो हमें कैंसर हो जाता है।

3. ऑक्सीजन का काम हमारे लिए ऊर्जा बनाना है। ऑक्सीजन की कमी होने पर कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा बनाने की कौशिश करती हैं और सिर्फ 5 प्रतिशत ऊर्जा (यानि 2 ए.टी.पी.) बनती है। और खराब वाला लीवो-रोटेटिंग लेक्टिक एसिड बनता है, जो शरीर को एसिडिक बनाता है।

4. डॉ. वारबर्ग ने हमें बताया था कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं, पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि क्रीम जैसे पनीर (कॉटेज चीज़) में पाया जाता है और दूसरा तत्व कुछ फैटी एसिड्स हैं जिन्हें कोई पहचान नहीं पा रहा था। वारबर्ग ने भी प्रयोग किए परंतु वह भी इस रहस्यमय फैट को पहचानने में नाकामयाब रहे। उस दौर के कई शोधकर्ता भी इस विषय पर शोध कर रहे थे, पर कोई भी उस फैट के पहचान नहीं पाया।

5. वक्त गुजरता रहा और फिर 1949 में डॉ. बडविग ने पेपरक्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की, जिससे वे फैट पहचान लिए गए। वे फैट्स थे अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैट का मुखिया) और लिनोलिक एसिड (ओमेगा-6 फैट का मुखिया), जो अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये हमारे शरीर में नहीं बन सकते इसलिए इन्हें असेंशियल फैट्स का दर्जा दिया गया है। इनमें ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। जब ये फैटी एसिड्स सल्फरयुक्त प्रोटीन के साथ हाथ में हाथ मिलाकर कोशिका में पहुँचते हैं और कोशिका तथा माइटोकॉन्ड्रिया की भित्ति में अवस्थित होते हैं, तब ये उर्जावान इलेक्ट्रोन्स ही ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करते हैं। जैसे ही ऑक्सीजन कोशिका में पहुँचती है, उर्जा निर्माण के तीनों स्टेप्स (ग्लायकोलाइसिस, क्रेब सायकिल, और इलेक्ट्रोन ट्रांसफर चेन) सक्रिय हो जाती हैं तथा पूरी उर्जा (यानि 36-38 ए.टी.पी.) बनने लगती है, ग्लूकोज़ का फर्मेंटेशन बंद हो जाता है और कैंसर का अस्तित्व खत्म हो जाता है। यह खोज बहुत महान थी और कैंसर के उपचार में विजय की पहली पताका साबित हुई।

6. अब बडविग ने सोचा कि अब मैं कैंसर को ठीक कर सकती हूँ। बस उन्होंने कैंसर के 650 मरीजों पर ट्रायल किया। उन्हें अलसी का तेल और कॉटेज चीज़ मिला कर देना शुरू किया। तीन महीने बाद नतीजे चौंका देने वाले थे। मरीजों का हीमोग्लोबिन बढ़ गया था, वे ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे और उनकी गांठे छोटी हो गई थी। इस तरह बडविग ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार विहार तथा शरीर के टॉक्सिन्स निकालने के उपचार आदि को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ।

7. इस उपचार से उन्हें हर तरह के कैंसर में, हर स्टेज के कैंसर में और मरणासन्न रोगियों में भी 90 प्रतिशत प्रामाणिक सफलता मिली और उनका नाम नोबल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित हुआ।

8. हम आपको 2 तरह से सपोर्ट कर सकते हैं। या तो आप एक दिन हमारे पास आ जाएं, हम आपको ओमखंड (अलसी तेल और पनीर का दिव्य व्यंजन) बनाना और पूरा उपचार सिखा देंगे तथा ट्रीटमेंट मेटीरियल भी दे देगें, ताकि आपको अच्छे रिजल्ट मिले। यदि किसी कारणवश आप नहीं आ सकें तो हम बुक, पूरा ट्रीटमेंट प्लान और ट्रीटमेंट मेटीरियल कोरियर से भेज देते हैं।

हर तरह के कैंसर में 90% प्रामाणिक सफलता

बडविग कैंसर उपचार की सक्सेस स्टोरीज़

एक यौद्धा की गाथा जिसने कैंसर को हराया

उज्जैन का रतनलाल टेलर उम्र 80 वर्ष सन् 2000 से पहलवान की तरह कैंसर से लड़ रहा है। कभी कैंसर ऊपर तो कभी रतनलाल ऊपर लेकिन वह कभी कैंसर से डरा नहीं। वह हमेशा कहता है कि वह कैंसर से नहीं मरेगा। इन्हें आंत का कैंसर हुआ था। इन्दौर के महात्मा गांधी मेडीकल कॉलेज के अस्पताल में इनका आपरेशन हुआ और 40 सेंटीमीटर आंत निकाल दी गई। इसके बाद कीमोथेरेपी दी गई। कुछ साल स्वस्थ रहने के बाद उसे दाईं आंख के पास कैंसर की एक गांठ हुई, जिसकी सर्जरी हुई और उपचार किया गया। 

सन् 2013 में कैंसर ने फिर रतनलाल को अपना शिकार बनाया और इनके दाएं किडनी और यूरेटर तबाह कर दिया। इन्दौर के महात्मा गांधी अस्पताल में फिर इसकी सर्जरी हुई जिसमें दांया किडनी तथा यूरेटर निकाला गया और आर.टी. दी गई। कुछ महीनों में कैंसर ने इसके लीवर पर आक्रमण किया और वहां बड़ी-बड़ी गांठें बना डाली। इसके उपचार हेतु काफी मंहगी सोराफोनिब की गोलिया दी गई। लेकिन इस दवा से इन्हें डायरिया हो गया। जब उपचार से डायरिया ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर्स ने सोराफेनिब बंद कर दी।

फिर अक्टूबर, 2014 में किसी ने इन्हें मेरे पास भेजा। मैंने इनको  बडविग उपचार शुरू करवाया, जिससे इन्हें बहुत फायदा हुआ। एक वर्ष बाद सितंबर, 2015 में इन्दौर के डॉक्टर्स ने इसकी पूरी जांच की और इसे पूर्णतया कैंसर फ्री घोषित कर दिया। अब रतनलाल को पूरी उम्मीद है कि वह सौ बरस जीयेंगे।

बडविग से एक महीने में बड़ा फायदा

दोस्तों, दिलीप कुमार कोटा स्टेशन की रेल्वे कोलोनी में रहते हैं। इनके एक साल का बेटा है। पिता रेल्वे से रिटायर्ड हैं। इन्हें जनवरी 2017 में दाएं जबड़े में कैंसर हुआ। डॉक्टर्स ने सर्जरी करने की बात कही, पर साथ ही यह भी कहा कि रिस्क बहुत ज्यादा है कुछ भी हो सकता है। पूरा परिवार डरा और सहमा हुआ था। तभी दिलीप कुमार के भांजे ने गूगल पर बडविग प्रोटोकोल और मेरे बारे में पढ़ा और परिवार को बताया। काफी सोच समझकर इन्होंने निर्णय लिया कि अंग्रेजी इलाज नहीं लेगे और बडविग उपचार ही करेंगे और 11 फरवरी को दिलिप और उनके पिता धनराज मेरे पास आए। मैंने इन्हें सांत्वना दी और बडविग प्रोटोकोल पूरी तरह सिखाया और उपचार सामग्री दी। घाव से पस बहुत निकल रहाथा। मैंने घाव पर दिन में कई बार टिंचर आयोडीन लगाने की सलाह दी। 5-7 दिन में ही पस आना बंद हो गया। आज 10 मार्च को एक महीने बाद चेहरे की सूजन और दर्द ठीक हो चुका है। दिलीप का एनर्जी लेवल बहुत अच्छा है। आप वीडियो देख कर सब समझ जाएंगे। हमेशा की तरह आज भी बडविग प्रोटोकोल चमत्कार कर गया…

ब्रेन कैंसर में बडविग का चमत्कार

गुना मप्र के श्री यशपाल सिंह को 1016 में आक्रामक ब्रेन कैंसर स्टेज IV (ग्लायोब्लास्टोमा मल्टीफॉर्म) डायग्नोज़ हुआ था। उनका पुत्र सिद्धांत उन्हें राजीव गांधी अस्पताल, दिल्ली में उपचार के लिए लेकर गया। वहाँ के ऑन्कोलॉजिस्ट ने उन्हें बताया कि इस कैंसर का कोई इलाज नहीं है और अगर हम सर्जरी, कीमो और विकिरण करते हैं तो वह मुश्किल से 18 महीने जीवित रह पाएंगे। जल्द ही उनका ऑपरेशन किया गया और रेडियोथेरेपी और कीमो दी गई।

कुछ महीनों के बाद, उन्हे रेडियोथेरेपी के कॉम्प्लीकेशन्स हो गये।  उनके ब्रेन में सूजन आ गई, जिससे उनकी मेमोरी चली गई, पेरेलिसिस के कारण चलना फिरना बंद हो गया में असमर्थ और बिस्तर पर आ गए। कुछ ही हफ्तों बाद फिर एम.आर.आई. हुई जिससे पता चला कि ट्यूमर दोबारा हो गए हैं।

फिर फरवरी, 2018 में वह मेरे पास आए और पूरे विश्वास और प्रयासों के साथ बुडविग प्रोटोकोल शुरू किया। बुडविग प्रोटोकोल ने उन्हें रिकवरी में बहुत मदद की। जून 2019 में आखिरी एमआरआई किया गया था और उसमें कोई ट्यूमर नहीं था। अब वह ऊर्जावान है, ठीक से चलते है और लगभग कोई स्मृति हानि नहीं है। उनके पुत्र सिद्धांत ने श्रवण कुमार की तरह अपने उनकी की सेवा की और तभी उनको ब्रेन कैंसर (ग्लायोब्लास्टोमा मल्टीफोर्म) को बडविग से क्यौर किया जा सका…

शांति की आरोग्य यात्रा - आह से अहा तक

डूँगरगढ़ की शांति, उम्र 40 वर्ष, को डेढ़ साल पहले बच्चेदानी में लियोमायोसारकोमा नाम का कैंसर हुआ और इसका आपरेशन और कीमोथैरपी कर दी गई। 6 महिने तक सब कुछ ठीक ठाक रहा, लेकिन उसके बाद स्थिती बिगड़ने लगी। उसकी कमर में बांई तरफ एक बहुत बड़ा मेटास्टेटिक ट्यूमर हो गया, जिसमें बहुत दर्द रहने लगा, खून की कमी हो गई और हिमोग्लोबिन 6 से नीचे आ गया। कमजोरी, उबकाई, अनिद्रा तथा कई परेशानियां होने लगी। भूख भी नही लगती थी। एलोपैथी से कोई फायदा नहीं हो रहा था, इसलिए उसने दवाइयां बंद कर दी। वह बहुत कमजोर, सुस्त और निढ़ाल हो चुकी थी, चेहरा पीला पड़ चुका था। वह कुछ बोल भी नहीं पा रही थी। बांईं तरफ कमर की गांठ में असहनीय दर्द और वेदना थी। कुछ महीने इधर-उधर भटकने के बाद वह मुझसे परामर्श लेने आई और मैंने उसको बडविग उपचार लेने की सलाह दी।

3 महीने बाद जब 25 नवम्बर 2014 को शांति ने मेरे कमरे में कदम रखा तो मैं उसे देखकर स्तभ रह गया। मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि क्या यह वही महिला है जो तीन महिने पहले मुझे दिखाने आई थी।  वह खुश व प्रसन्न दिखाई दे रही थी। उसका चेहरा चमक उठा था। चेहरे के दाग धब्बे दूर हो चुके थे। उसकी उल्टियां बंद हो चुकी थी, भूख खुल गई थी, दर्द में भी आराम था। उसका हिमोग्लोबिन बढ़ कर 11.5 ग्राम हो चुका था। उसकी बड़ी सारी गांठ 84X78 से कम होकर 46X34 मि.मी. हो चुकी है। ये सारा चमत्कार बुडबिग प्रोटोकोल का है। आज हमारा आत्म विश्वास शिखर को छू रहा है। जुग जुग जियो शांति…

 

बडविग कैंसर उपचार - हिंदी में सर्वश्रेष्ठ पुस्तक

क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्कट रोग का
सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान

"बडविग कैंसर उपचार" में बडविग प्रोटोकोल की संपूर्ण जानकारी दी गई है। इसे बहुत सरल हिंदी में लिखा गया है। यदि आपको या आपके किसी परिजन को कैंसर हुआ है तो यह पुस्तक आपके लिए बहुत जरूरी है। कोई कहता है यह जीवन देने वाला पुराण है तो कोई इसे स्वास्थ्य का महान ग्रंथ मानता है। एक अनुभवी और बुजुर्ग वैद्य ने इस पुस्तक के बारे कहा था कि उन्होंने स्वास्थ्य की 400 पुस्तकें पढ़ी है और यह उन सबसे अच्छी पुस्तक है।

जिन लोगों ने बडविग की अंग्रेजी में अनुवादित पुस्तकें पढ़ी हैं, वे कहते हैं कि वो आसानी से समझ में नहीं आती क्योंकि उनका अनुवाद किसी ट्रांसलेटर ने किया है न कि किसी डॉक्टर ने, इसलिए मुश्किल से समझ में आती है। लेकिन "बडविग कैंसर उपचार" को डॉ. ओ.पी.वर्मा ने वर्षों तक बडविग पर शोध करने के बाद लिखा है। ओम वर्मा ने बडविग की पुस्तक का सीधा अनुवाद नहीं किया है, बल्कि वह लिखने की कोशिश की है जो बडविग हमें समझाना चाहती थी।

बडविग का विज्ञान सचमुच महान है। यह हम सबका दुर्भाग्य है कि फार्मास्युटिकल और मल्टीनेशनल कंपनियों के दबाव के कारण बडविग के विज्ञान को जानबूझ कर हम पृथ्वी-वासियों से छुपाया जा रहा है। स्कूल और कॉलेज में भी इसे नहीं पढ़ाया जाता है। इस विषय पर डॉक्टर्स और मीडिया सब खामोश हो जाते हैं। हमारे साथ कितना बड़ा विश्वासघात हो रहा है।
यदि हम सब बडविग के सिद्धांत पर अमल करें तो दुनिया कैंसर-मुक्त हो जाएगी। इस स्वप्न को साकार करने हेतु हमारी शक्ति बढ़ाइए, दिल खोल कर दान दीजिए...
बडविग चेतना से बड़ा कोई कर्म नहीं
और दान से बड़ा कोई धर्म नहीं

अभी दान करें - उषा वर्मा, ट्रेज़रार, बडविग वेलनेस

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