छोटा सा दान करके हमारी शक्ति बढ़ाइए - उषा वर्मा
अलसी चेतना से बड़ा कोई कर्म नहीं
दान से बड़ा कोई धर्म नहीं

पहला सुख निरोगी काया, सदियों रहे यौवन की माया।” आज हमारे वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने अपनी शोध से ऐसे आहार-विहार, आयुवर्धक औषधियों, वनस्पतियों आदि की खोज कर ली है जिनके नियमित सेवन से हमारी उम्र 200-250 वर्ष या ज्यादा बढ़ सकती है और यौवन भी बना रहता है। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है। ऐसा ही एक दिव्य आयुवर्धक भोजन है “अलसी” जिसकी आज हम चर्चा करेंगें।

पिछले कुछ समय से अलसी के बारे में पत्रिकाओं, अखबारों, इंटरनेट, टीवी आदि पर बहुत कुछ प्रकाशित होता रहा है। बड़े शहरों में अलसी के व्यंजन जैसे बिस्किट, ब्रेड आदि बेचे जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा देता है। आठवीं शताब्दी में फ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी के चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थे और चाहते थे कि उनकी प्रजा नियमित अलसी खाए और निरोगी व दीर्घायु बनी रहे, इसलिए उन्होंने कड़े कानून बना दिए थे।

यह सब पढ़कर मेरी जिज्ञासा बढ़ती रही और मैंने अलसी से संबंधित जितने भी लेख उपलब्ध हो सके पढ़े व अलसी पर हुई शोध के बारे में विस्तार से पढ़ा। मैं अत्यंत प्रभावित हुआ कि यह अलसी जिसका हम नाम भी भूल गये हैं, हमारे स्वास्थ्य के लिये इतनी ज्यादा लाभप्रद है, जीने की राह है, लाइफ लाइन है। फिर क्या था, मैंने स्वयं अलसी का सेवन शुरु किया और अपने रोगियों को भी अलसी खाने के लिए प्रेरित करता रहा। अलसी ने कुछ ही हफ़्तों में मेरी हैल्थ लिफ़्ट करा दी और शरीर में कई आश्चर्यजनक बदलाव आने शुरु हो गए। मैं अपने अंदर अपार शक्ति व उत्साह का संचार अनुभव करने लगा, शरीर चुस्ती फ़ुर्ती तथा गज़ब के आत्मविश्वास से भर गया। मन हमेशा प्रसन्न रहने लगा था। रंग गोरा और त्वचा में चमक आ गई थी, पैर के नाखून और एडि़यां बढ़िया हो गई थी। उम्र रिवर्स गियर में चलने लगी थी। तनाव व आलस्य सब गायब हो चुके थे। थकावट होती ही नहीं थी। अलसी खाने से मूड बड़ा कूल रहता है, गुस्सा साला आता ही नहीं है। इसका अहसास मुझे तब हुआ, जब एक बार मेरी पत्नी की एक फ्रेंड ने मुझसे कहा कि भाभी जी कह रही थी कि आजकल डॉक्टर साब गुस्सा ही नहीं करते और डांटते भी नहीं हैं। एक बार थर्मल कॉलोनी, कोटा में रहने वाले एक इंजिनियर और उकी पत्नी मेरे पास जब दूसरी बार आए तो उनकी पत्नी कहने लगी कि डॉक्टर साब जब से हम अलसी खाने लगे हैं तब से हमारा झगड़ा ही नहीं हुआ। पहले 8-10 दिनों में तो हमारा झगड़ा होता ही था।

अलसी खाने के पहले जब कोई हमारे यहाँ आता और बेल दबाता, तो हम दोनों पति पत्नी एक दूसरे का मुंह देखते कि नीचे दरवाजा खोलने कौन जाएगा, पत्नी मेरी तरफ थोड़ा देखती और फिर “कभी तो आप भी दरवाजा खोल दिया करो” कह कर नीचे दरवाजा खोलने जाती। लेकिन जब हम अलसी खाने लगे तो हमारा एनर्जी लेवल इतना हाई था कि बेल बजते ही हम दोनों दरवाजा खोलने के लिए नीचे भागते। कई बार ऐसा हुआ कि बेल बजते ही हम दोनों नीचे भागे तो सीढ़ियों पर टकरा गए।

शरीर में ताकत इतनी थी कि कभी कभी दिल करता था कि एक बॉक्सिंग मारकर दीवार में छेद कर दूँ। मन में कोई टेंशन, कोई कंफ्यूजन नहीं था। माइंड ट्रांसपेरेंट हो चुका था, जो कुछ अंदर था, वह स्पष्ट दिखाई देता था। ऐसा लगता था जैसे माइंड में मदरबोर्ड, रेम और प्रोसेसर सब नये लगा दिए गए हों। मेरी याददाश्त चरम पर थी, कठिन से कठिन विषय भी आसानी से मेरी समझ में आ जाता था, जो पहले नहीं आता था। कंसंट्रेशन गजब का था। पहले किताब के 2-3 पेज मुश्किल से पढ़े जाते थे और मन उचट जाता था, लेकिन अब तो मैं रात रात भर पढ़ लेता था। किताब से मन को ताकत से खींचकर अलग करना पड़ता था। पहले मेरी पल्स रेट 110 से 120  के बीच रहती थी और दवाओं से भी कम नहीं हो रही थी, लेकिन अलसी शुरू करने के कुछ ही महीनों में मेरी पल्स 70-72 हो गई थी। मेरी डायबिटीज़ की दवाइयां छूट चुकी थी। अब मैं मानसिक व शारीरिक रुप से उतना ही शक्तिशाली महसूस कर रहा था जैसा मैं 30 वर्ष पहले था। जो कुछ मेरे अंदर हो रहा था, वह बहुत दिव्य, निराला, आश्चर्यजनक, अद्भुत और अविश्वसनीय था और उसे शब्दों में उतारना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरी सकारात्मकता शिखर को छू रही थी। मैं आसमान से चांद तारे तोड़ कर ला सकता था।

उन्हीं दिनों एक बार की बात है, हमारे ई.एस.आई. हॉस्पीटल के टी-क्लब में दो जगह से स्वादिष्ट लड्डू आए। तो मैंने 9 स्वादिष्ट लड्डू खा लिए। फिर मुझे ऐसा लग रहा था कि आज मेरी ब्लड शुगर बहुत हाई होने वाली है। इसलिए मैंने अपनी क्लीनिक पहुँचते ही मेरे टेक्नीशियन से ब्लड शुगर चेक करवाई, उसने ऐनेलाइजर पर चेक करके मेरी शुगर 102 बताई। मैंने उससे कहा कि यार तेरी ये मशीन खराब हो गई है, आज मेरी शुगर 102 हो ही नहीं सकती क्योंकि मैं 9 लड्डू खाकर आ रहा हूँ परंतु टेक्नीशियन राजू ने कहा कि सर आज आपकी शुगर 102 ही है, मशीन बिलकुल ठीक है और मैं सुबह से 28 मरीजों की शुगर चेक कर चुका हूँ।  

उन दिनों मेरा वज़न काफी बढ़ा हुआ था। कई बार वजन कम करने के प्रयास भी किए, लेकिन कुछ हो नहीं पाया था। अलसी शुरू करने के 4-5 महीनों बाद एक दिन के शाम के चार बजे मुझे एक दम से जोश आया और मैं घूमने के लिए निकल पड़ा, मन में विचार ऐसा था जैसे मैं 15-20 किलो वजन कम करके ही घर में वापस लौटूँगा। और हुआ भी यही पहले ही महीनें आठ किलों वजन कम हुआ। घूमना जारी रहा और खाने पीने पर कंट्रोल भी रखा। कई बार तो मैं 6-7 घंटे नॉन स्टॉप लगातार बिना रेस्ट लिए घूम लेता था। छः महीने में मेरी 30 किलो चर्बी छंट चुकी थी। सारे कपड़े नये खरीदे गए, बैल्ट और अंडर गारमेंट तक बदलने पड़े थे। कई लोग मुझे पहचान भी नहीं पाते थे। कुछ लोग मुझे मेरा ही छोटा भाई तो कुछ बेटा समझ लेते थे।

अलसी का पौराणिक महत्व

अलसी दुर्गा का पांचवां स्वरूप है। नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता अर्थात अलसी की भी पूजा होती है। स्कंद माता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है। अलसी एक औषधि है जिससे वात, पित्त, कफ सभी विकारों  का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।

 अलसी के संबंध में शास्त्रों में कहा गया है –
अलसी   नीलपुष्पी   पावर्तती   स्यादुमा  क्षुमा।
अलसी  मधुरा तिक्ता   स्त्रिग्धापाके   कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुक वातन्धी  कफ पित्त  विनाशिनी।

अर्थात् वात, पित्त,
कफ जैसी बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी
चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।

अलसी पोषक तत्वों का खजाना

आइये, हम देखें कि इस चमत्कारी, आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी में ऐसी क्या निराली बात है। अलसी का बोटेनिकल नाम लिनम यूजीटेटीसिमम् यानी अति उपयोगी बीज है। अलसी के पौधे में नीले फूल आते हैं। हमारी दादी मां जब हमें फोड़ा-फुंसी हो जाता था तो अलसी की पुलटिस बनाकर बांध देती थी। अलसी में मुख्य पौष्टिक तत्व ओमेगा-3 फैटी एसिड एल्फा-लिनोलेनिक एसिड, लिगनेन, प्रोटीन व फाइबर होते हैं। अलसी गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक फायदेमंद है। महात्मा गांधीजी ने स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें लिखीं हैं। उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसके चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में लिखा है, “जहां अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा।”

अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवें दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था, जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी।

आवश्यक वसा अम्ल ओमेगा-3 व ओमेगा-6 की कहानी

अलसी में लगभग 18-20 प्रतिशत ओमेगा-3 फैटी एसिड ALA होते हैं। अलसी ओमेगा-3 फैटी एसिड का पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्त्रोत है। हमारे स्वास्थ्य पर अलसी के चमत्कारी प्रभावों को भली भांति समझने के लिए हमें ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फैटी एसिड को विस्तार से समझना होगा। ये हमारे शरीर के विभिन्न अंगों विशेष तौर पर मस्तिष्क, स्नायुतंत्र व आँखों के विकास व उनके सुचारु रुप से संचालन में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं और कोशिकाओं की भित्तियों का निर्माण करते हैं।

 

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अलसी से संबंधित वीडियो

 

जिस प्रकार एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए नायक और खलनायक दोनों ही आवश्यक होते हैं। वैसे ही हमारे शरीर के ठीक प्रकार से संचालन के लिये ओमेगा-3 व ओमेगा-6 दोनों ही चाहिए परंतु इनका अनुपात 1:2 होना चाहिए। पिछले कुछ दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ती जा रही हैं और ओमेगा-3 की कमी होती जा रही है। मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे फास्ट फूड व जंक फूड ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं। बाजार में उपलब्ध सभी रिफाइंड खाद्य तेल भी ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं। इसके फलस्वरूप आवश्यक वसा अम्लों का अनुपात बिगड़ गया है तथा हमारा शरीर क्रोनिक इन्फ्लेमेशन का शिकार हो गया है और धीरे-धीरे इस आग की भट्टी में सुलग रहा है। इस क्रोनिक इन्फ्लेमेशन के कारण हम ब्लड प्रेशर, हार्ट अटेक, स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, आर्थाइटिस, डिप्रेशन, अस्थमा, कैंसर आदि रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी हम 30-50 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं।

लिगनेन है सुपरमेन

लिगनेन अत्यंत महत्वपूर्ण सात सितारा पौषक तत्व है, जिसका पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्त्रोत अलसी है। लिगनेन दो प्रकार के होते  हैं।  1- वानस्पतिक लिगनेन (SDG) और 2- स्तनधारियों में पाए जाने वाले को आइसोलेरिसिरेजीनोल लिगनेन सी (SECO),  एंट्रोडियोल (ED) और एंट्रोलेक्टोन (EL)। जब हम वानस्पतिक लिगनेन (SDG) सेवन करते हैं तो आंतो में विद्यमान कीटाणु इनको स्तनधारी लिगनेन क्रमशः EL और DL में परिवर्तित कर देते हैं। SDG लिगनेन विटामिन-ई से लगभग पांच गुना ज्यादा शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है।

लिगनेन कॉलेस्ट्रोल कम करता है और ब्लड शुगर नियंत्रित रखता है। लिगनेन एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल, एंटी फंगल और कैंसर रोधी है और इम्युनिटी बढ़ाता है। चिल्डंस हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर सिनसिनाटी के आचार्य डॉ. केनेथ शेसेल ई.एच.डी. ने पहली बार यह पता लगाया था की लिगनेन का सबसे बड़ा स्त्रोत अलसी है।    

लिगनेन वनस्पति जगत में पाए जाने वाला महत्वपूर्ण पौषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन स्टर्लिटी और हेबीचुअल अबोर्शन का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है । यदि मां अलसी का सेवन करती है तो उसके दूध में पर्याप्त ओमेगा-3 रहता है और बच्चा अधिक बुद्धिमान व स्वस्थ पैदा होता है। कई
महिलाएं अक्सर प्रसव के बाद मोटापे का शिकार बन जाती हैं, पर लिगनेन ऐसा नहीं होने देते। रजोवनिवृत्ति के बाद ईस्ट्रोजन का बनना कम हो जाने के कारण महिलाओं में हॉट फ्लेशेज, ऑस्टियोपोरोसिस, ड्राई वेजाइना जैसी कई परेशानियां होती हैं, जिनमें यह बहुत राहत देता है।

यदि शरीर में प्राकृतिक ईस्ट्रोजन का स्त्राव अधिक हो, जैसे स्तन कैंसर, तो यह कोशिकाओं के ईस्ट्रोजन रिसेप्टर्स से ईस्ट्रोजन को हटाकर स्वयं रिसेप्टर्स से चिपक कर ईस्ट्रोजन के प्रभाव को कम करता है और स्तन कैंसर से बचाव करता है। लिगनेन पर अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर संस्थान भी शोध कर रही है और और इस नतीजे पर पहुंचा है लिगनेन कैंसररोधी है। लिगनेन हमें
प्रोस्टेट, बच्चेदानी, स्तन, आंत, त्वचा आदि के कैंसर से बचाता हैं।

एड्स रिसर्च असिस्टेंस इंस्टिट्यूट (ARAI) सन् 2002 से एड्स के रोगियों पर लिगनेन के प्रभावों पर शोध कर रही है और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। ARAI के निर्देशक डॉ. डेनियल देव्ज कहते हैं कि लिगनेन एड्स का सस्ता, सरल और कारगर उपचार साबित हो चुका है।

हृदयरोग जरासंध है तो अलसी है भीमसेन

अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती है। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल (HDL-Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्ट्रॉल (LDL-Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी रक्त को पतला बनाये रखती है और दिल की धमनियों को स्वीपर की तरह साफ करती है। इस तरह अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती है। यानि अलसी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती है। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात मृत्यु नहीं होती।

डायबिटीज और मोटापे पर अलसी का चमत्कार

अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है और डायबिटीज के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। चिकित्सक डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इस कारण अलसी सेवन से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है, देर तक भूख नहीं लगती। डायबिटीज के रोगियों के लिए अलसी एक आदर्श और अमृत तुल्य भोजन है, क्योंकि यह जीरो कार्ब भोजन है। चैंकियेगा नहीं, यह सत्य है। मैं आपको समझाता हूँ। 14 ग्राम अलसी में 2.56 ग्राम प्रोटीन, 5.90 ग्राम फैट, 0.97 ग्राम पानी और 0.53 ग्राम राख होती है। 14 में से उपरोक्त सभी के जोड़ को घटाने पर जो शेष (14-{0.97+2.56+5.90+0.53}=4.04 ग्राम) 4.04 ग्राम बचेगा वह कार्बोहाइड्रेट की मात्रा हुई। विदित रहे कि फाइबर कार्बोहाइड्रेट की श्रेणी में ही आते हैं। इस 4.04 कार्बोहाइड्रेट में 3.80 ग्राम फाइबर होता है जो न रक्त में अवशोषित होता है और न ही रक्तशर्करा को प्रभावित करता है। अतः 14 ग्राम अलसी में कार्बोहाइड्रेट की व्यावहारिक मात्रा तो 4.04-3.80=0.24 ग्राम ही हुई, जो 14 ग्राम के सामने नगण्य मात्रा है इसलिये आहार शास्त्री अलसी को जीरो कार्ब भोजन मानते हैं। 

डायबिटीज में 20 ग्राम पिसी अलसी सुबह और 20 ग्राम पिसी अलसी को आटे में मिलाकर रोटियां बनवाकर खाएं। रोज 30 एमएल अलसी के कोल्डप्रेस्ड ऑयल को सुबह नाश्ते में पनीर या दही में मिलाकर सेवन करें। रिफाइंड तेल तथा वनस्पति बिलकुल बंद करें और बाजार में बने व्यंजनों से पूर्ण परहेज करें। बेहतर हो कि आप छोटे एक्सपेलर से अपना तेल खुद बनाएं। इस उपचार से धीरे-धीरे दवाइयां बंद हो जाती हैं और इंसुलिन भी छूट जाती है।

कब्जासुर का वध करती है अलसी

अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील (म्यूसिलेज) और अघुलनशील दोनों ही तरह के फाइबर होते हैं, अतः अलसी कब्ज़ी, पाइल्स, बवासीर, फिश्चुला, डाइवर्टिकुलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती है। कब्ज़ी में अलसी के सेवन से पहले ही दिन से राहत मिल जाती है। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि कब्ज़ी के लिए यह अलसी इसबगोल की भुस्सी से भी ज्यादा लाभदायक है। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती और यदि पथरियां बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियां तो घुलने लगती हैं।

अलसी की माया से सुंदर बने काया 

यदि आप त्वचा, नाखून और बालों की सभी समस्याओं का एक शब्द में समाधान चाहते हैं तो मेरा एक ही उत्तर होता है “ओमेगा-3”। अलसी ओमेगा-3 फैट का खजाना है। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान फ्री रेडिकलस् से होता है। हवा में मौजूद फ्री रेडिकलस या ऑक्सीडेंट्स त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुर्रियों व झाइयों का रूप ले लेती है, त्वचा में रूखापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। अलसी के शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट्स, ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। स्वस्थ त्वचा जड़ों को भरपूर पोषण देकर बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाती हैं।

अलसी एक उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। नियमित अलसी खाने से एड़ियां मुलायम और चिकनी हो जाती हैं। पिसी हुई अलसी को थोड़े दूध में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा सोने की तरह चमकने लगता है। अलसी त्वचा की बीमारियों जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, सूखी त्वचा, खुजली, सोरायसिस, ल्यूपस आदि में काफी असरकारक है।

 अलसी बने
सहेली त्वचा बने नवेली

अलसी बालों का पोषण है, श्रृंगार है, सहेली है और ब्युटीशियन है। अलसी बालों के कई रोग जैसे बालों का सूखा व पतला होना, बाल झड़ना, डेंड्रफ आदि में काफी असरकारक है। अलसी सेवन करने वाली स्त्रियां लंबे, घने और काले केश की स्वामिनी बनती है और उनके बालों में न कभी रूसी होती है और न ही वे झड़ते हैं।

 अलसी का हो निवेश स्वस्थ बने केश

अलसी नाखूनों को मजबूत, सुंदर और सुडौल बनाती है। अलसी युक्त भोजन खाने व इसके तेल की मालिश से त्वचा के दाग, धब्बे, झाइयां व झुर्रियां दूर होती हैं। अलसी आपको युवा बनाए रखती है। आप अपनी उम्र से काफी छोटी दिखती हो

जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ अलसी

अलसी आर्थाइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ऑस्टियोआथ्र्राइटिस आदि का उपचार है। अलसी इम्युनिटी को मजबूत बनाती है। अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैटी एसिड और लिगनेन प्रदाहरोधी हैं तथा अलसी दर्द और जकड़न में राहत देते हैं। अलसी का तेल भी कॉटेज चीज़ या पनीर में मिला कर लिया जा सकता है।

अलसी – माइंड के सरकिट का सिम कार्ड

सुपरस्टार अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी खाने से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है और पति पत्नि झगड़ना छोड़कर गार्डन में ड्यूएट गाते नजर आते हैं। अलसी आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है। 

अलसी माइंड के सरकिट का सिम कार्ड है। यहाँ S का मतलब सेरीन या शांति, I का मतलब इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और M का मतलब मेमोरी तथा C का मतलब कंसंट्रेशन या क्रियेटिविटी, A का मतलब अलर्टनेस,  R का मतलब रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी और D का मतलब डिवाइन  है। अलसी खाने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं में अच्छे नंबर प्राप्त करते हैं और उनकी सफलता के सारे द्वार खुल जाते हैं। अलसी आपराधिक प्रवृत्ति से ध्यान हटाकर अच्छे कार्यों में लगाती है और आतंकवाद का भी समाधान है। 

उम्मीदों के दीप जलाता डॉ. बडविग का कैंसर उपचार

1031 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने सिद्ध किया कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाना है और यदि कोशिका को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव नहीं है। इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया था। वारबर्ग ने यह भी बताया कि दो तत्व (पहला सल्फर युक्त प्रोटीन है जो कॉटेज चीज में मिलता है और दूसरा कुछ अज्ञात फैटी एसिड्स हैं जिन्हें कोई नहीं पहचान पा रहा था) ऑक्सीजन को कोशिका में पहुँचाने का काम करते हैं।

डॉ. जोहाना बडविग जर्मनी की विश्व विख्यात कैंसर वैज्ञानिक थी। उन्होंने 1949 में एक पेपर-क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की, जिससे उन अज्ञात फैटी एसिड्स को पहचान लिया गया। वह फैट्स ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स के क्लाउड्स से भरपूर अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 परिवार का मुखिया) और लिनोलिक एसिड (ओमेगा-6 परिवार का मुखिया) कहलाए गए। ये फैट्स हमारे शरीर में नहीं बनते और इन्हें असेंशियल फैटी एसिड्स का दर्जा दिया गया। ये अलसी के तेल में भरपूर मात्रा में होते हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि इलेक्ट्रोन युक्त ये असेंशियल फैटी एसिड्स कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करने की अपार क्षमता रखते हैं। जैसे ही ऑक्सीजन कोशिका में पहुँचने लगती है कैंसर हील होने लगता है।

जब बडविग ने उन दोनों तत्वों को पहचान लिया जो ऑक्सीजन को कोशिका में पहुँचाते हैं, तो उन्होंने सोचा कि अब मैं कैंसर को ठीक कर सकती हूँ। बस फिर क्या था कैंसर के 640 मरीजों को अलसी का तेल और कॉटेज चीज देना शुरू किया गया। तीन महीनें बाद जैसे चमत्कार हो गया, मरीजों की गांठे छोटी हो गई, हीमोग्लोबिन बढ़ गया और उनका ऐनर्जी लेवल भी बढ़ गया। इस तरह उत्साहित बडविग ने कैंसर का एक नेचुरल क्यौर विकसित किया, जिससे उन्हें हर तरह के कैंसर में, हर स्टेज के कैंसर में 90 प्रतिशत प्रामाणिक सफलता प्राप्त हुई।

यह एक रॉ ऑर्गेनिक डाइट है। इसमें चीनी, घी, मक्खन, नॉनवेज और बाजार में उपलब्ध ट्रांस फैट्स से भरपूर सभी वनस्पति और रिफाइंड तेलों से परहेज रखा जाता है। डिटॉक्स उपचार किए जाते हैं। यह क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान माना गया है। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज संभव नहीं, सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। डॉ. जोहाना का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए 7 बार चयनित हुआ पर उन्होंने अस्वीकार कर दिया क्योंकि उनके सामने शर्त रखी जाती थी कि वह कीमा और रेडियोथेरेपी को अपने उपचार में शामिल करे जो उन्हें मंजूर नहीं था।

बॉडी बिल्डिंग के लिए “बैस्ट ऑफ द बैस्ट”

अलसी बॉडी बिल्डिंग के लिए आवश्यक व संपूर्ण आहार है। अलसी में 20 प्रतिशत बहुत अच्छे प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन से  मांस-पेशियों का विकास होता है। अल्फा-लेनोलेनिक एसिड स्नायु कोशिका में इंसुलिन की संवेदनशीलता बढ़ाते है, स्टिरोयड हार्मोन का स्त्राव  बढ़ाते हैं, स्वस्थ कोष्ठ भित्तियों का निर्माण करते हैं, हार्मोन्स का स्त्राव नियंत्रित करते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित करते हैं, हार्मोन्स को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करते हैं, बी.एम.आर. बढ़ाते हैं, कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाते हैं, रक्त में फैट को गतिशील रखते हैं, नाड़ी और स्वायत्त नाड़ी तंत्र को नियंत्रित करते हैं, नाड़ी-संदेश प्रसारण का नियंत्रण करते हैं और हृदय की पेशियों को सीधी ऊर्जा देते हैं। कसरत के बाद मांस पेशियों की थकावट चुटकियों में ठीक हो जाती है। बॉडी बिल्डिंग पत्रिका मसल मीडिया 2000 में प्रकाशित आलेख “बेस्ट ऑफ द बेस्ट” में अलसी को बॉडी के लिए सुपर फूड माना गया है। मि. डेकन ने अपने आलेख ‘ऑस्क द गुरु’ में अलसी को नम्बर वन बॉडी बिल्डिंग फूड का खिताब दिया।

 

 

मिलियन डॉलर बेबी में बॉक्सिंग करते हुए हिलेरी स्वांक

हॉलीवुड की विख्यात दुबली-पतली अभिनेत्री हिलेरी स्वांक को क्लाइंट ईस्टवुड द्वारा निर्देशित फिल्म “मिलियन डॉलर बेबी” फिल्म के लिए में मस्कुलर बॉडी बनानी थी और 10 पाउंड लीन वेट बढ़ाना था। समय सिर्फ 9 सप्ताह था। उनके फिटनेस कोच ग्रांट रोबर्ट्स ने उन्हें वर्क आउट करनाया और प्रोटीन के साथ 9 टेबलस्पून अलसी तेल रोज दिया। हिलेरी ने शानदार मसल्स बनाई और लीन वेट 20 पाउंड बढ़ा। तभी उस फिल्म ने चार ऑस्कर जीते। अलसी हमारे शरीर को भरपूर ताकत प्रदान करती है, शरीर में नई ऊर्जा का प्रवाह करती है तथा स्टेमिना बढ़ाती है।

अन्य रोग

अलसी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। ओमेगा-3 से भरपूर अलसी यकृत, गुर्दे, एडरीनल, थायरायड आदि ग्रंथियों को ठीक से काम करने में सहायक होती है। अलसी ल्यूपस नेफ्राइटिस और अस्थमा में राहत देती है। ओमेगा-3 से हमारी नज़र अच्छी हो जाती है, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं। आँखों में अलसी का तेल डालने से ऑखों का सूखापन दूर होता है। अलसी एंलार्ज प्रोस्टेट, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, प्रिमेच्यौर इजेकुलेशन, इंपोटेंसी आदि के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

सेवन का तरीका

हमें प्रतिदिन 30-50 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। अलसी को कभी रोस्ट नहीं करें, हां इसे पकाया या बेक किया जा सकता है। अलसी को रोज मिक्सी में पीसकर, आटे में मिलाकर रोटी, परांठा आदि बनाकर खाएं। आप अलसी को पीसकर अमूमन सात दिन तक रख सकते हैं। इसकी ब्रेड, केक, कुकीज़, आइसक्रीम, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं।

इसे आप सब्जी, दही, दाल, सलाद आदि में भी डाल कर ले सकते हैं। अलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के जीवन में चमत्कारी कायाकल्प हो जाता है। याद रखें बाजार में उपलब्ध रोस्टेड अलसी कभी प्रयोग में नहीं लें। वे इसे लोहे के बड़े पात्र या कड़ाही में बड़ी तेज़ आंच पर रोस्ट करते हैं, जिससे अलसी के सारे पौष्टिक तत्व जल जाते हैं। 

अलसी का तेल

अलसी तेल (फ्लेक्स ऑयल) अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैट) से भरपूर दुनिया का श्रेष्ठतम फैट है, जिसमें सजीव, ऊर्जावान और गतिशील इलेक्ट्रोन्स होते हैं। ये इलेक्ट्रोन्स हमें स्वस्थ और दीर्घायु जीवन प्रदान करते हैं। यही अमरत्व घटक हैं जो हमें मानुष बनाते है। यह हृदय हितैषी है, कॉलेस्टेरोल को नियंत्रण में रखता है, दिल के ब्लॉक खोलता है और हार्ट अटेक के कारण पर अटेक करता है। यह डायबिटीज को टर्मिनेट करती है। यह इम्यूनिटी का आधार है और अनेक ऐलर्जिक रोग जैसे सोरायसिस, एग्जीमा आदि का उपचार है। यह जोड़ के हर रोग का तोड़ है और मेनोपॉज की तकलीफें जैसे हॉट फ्लशेज, डिप्रेशन, पति पर अचानक खुंदक आना आदि पर पॉज़ लगाता है। लिनोलेनिक एसिड माइंड के सर्किट का सिमकार्ड है, मेमोरी बढ़ाता है, विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करता है और सफलता के सारे द्वार खोल देता है।अलसी का तेल (फ्लेक्स ऑयल) ठंडी विधि (Cold pressed) द्वारा निकला हुआ ही प्रयोग करें। मेरी जानकारी के अनुसार भारत में प्रानोफ्लेक्स (हैल्थ फर्स्ट) कंपनी ही अच्छा और कोल्ड-प्रेस्ड अलसी तेल बनाती हैं। कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल्स बनाने में प्रानोफ्लेक्स (हैल्थ फर्स्ट) कंपनी का कोई जवाब नहीं है। यह कंपनी सभी तेल बनाती है। इनकी वर्ल्ड क्लास क्वालिटी का लोहा पूरी दुनिया मानती है। बाजार में मिलने वाले अन्य ब्रांड्स का फ्लेक्स ऑयल कभी नहीं खरीदें। इनके पास फ्लेक्स ऑयल बनाने की सही तकनीक नहीं है। जब गलत तकनीक से तेल बनता है तो वह ऑक्सीडाइज़ हो जाता है, उसमें टॉक्सिंस बन जाते हैं, उसके औषधीय गुण खत्म हो जाते हैं और आपको फायदे की जगह नुकसान पहुँचाने लगताा है। अलसी का तेल एक खास ठंडी विधि द्वारा बनाया जाता है।जब मैंने यह लेख लिखा और इसे प्रकाशित करवाया तो यह बहुत वायरल हुआ और आज तक वायरल है। बस फिर कुकुरमुत्तों की तरह बहुत सारी कंपनियां बाजार में आई और बिना सही टेक्नोलॉजी हासिल किए फ्लेक्स ऑयल बनाने लगी। बहुत सारी कंपनियां अलसी को बड़ी लोहे की कड़ाहियों में हाई टेंप्रेचर पर रोस्ट करके बेचने लगी। कई हैल्थ एक्सपर्ट्स, वेब साइट्स और यूट्यूबर्स अलसी के बारे में गलत जानकारियां दे रहे हैं। कल ही मैं बाबा रामदेव जी का एक वीडियो देख रहा था, जिसमें वह कॉमेडियन की तरह हंस-हंस कर रोस्टेड अलसी की वकालत कर रहे थे। जबकि सागर म.प्र. में मेरे चाचा श्री राज कुमार ठाकुर के घर पर मेरी रामदेव जी मुलाकात हुई थी और मैंने उन्हें सब कुछ समझाया था और मेरी पुस्तक अलसी महिमा की 150 प्रतियां भी भैंट की थी।अलसी का तेल 42 डिग्री सेल्सियस पर खराब हो जाता है, इसलिए इसे कभी भी गर्म नहीं करना चाहिए और हमेशा फ्रिज में ही रखना चाहिए। फ्रिज में यह 8-9 महीने तक खराब नहीं होता है। यह तेल उष्मा, प्रकाश व ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर खराब हो जाता है। इसलिए नामी कंपनियां तेल को गहरे रंग की बोटल्स में नाइट्राजेन भरकर पैक करती हैं।

फ्लेक्स ऑयल कैसे और कितना प्रयोग करें

आपको रोजाना 15-30 एम. एल. (2 टेबलस्पून) अलसी का तेल खाना चाहिए। इसे आप कॉटेज चीज़ (एक क्रीम जैसा पनीर जिसे आप घर पर बना सकते हैं) या दही में ब्लेंड करके उसमें कटे हुए फल आदि मिलाकर सेवन कर सकते हैं। कॉटेज चीज़ सल्फरयुक्त प्रोटीन होते हैं जो अलसी तेल की गुणवत्ता और उपयोगिया बढ़ाते हैं। अलसी तेल और पनीर से बने व्यंजन को ओमखंड कहते हैं। पनीर और ओमखंड की वीडियो हमारे इस पेज https://gobudwig.com/budwig-hindi-p/ पर देख सकते हैं। तेल और प्रोटीन की ब्लेंडिंग होने पर लाइपो-प्रोटीन नामक पदार्थ बनता है, जो पानी में घुलनशील होता है, तथा सीधा कोशिका में पहुँच कर उसकी भित्ति की संरचना का हिस्सा बनता है और अपने इलेक्ट्रोन्स की शक्ति से ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करता है। ऑक्सीजन मिलते ही कोशिका में ऊर्जा बनने लगती है और सारे काशिकीय विकार ठीक हो जाते हैं।

यदि आप एक टेबलस्पून फ्लेक्स ऑयल प्रयोग कर रहे हैं तो उसे आप सीधा सलाद, चटनी, उपमा, पोहा, चावल, पुलाव, सूप, सब्जी, दाल या किसी भी व्यंजन में ऊपर से मिला सकते हैं। बस गर्म नहीं करना है। फ्लेक्स ऑयल को रोटी, परांठे या ब्रेड पर भी स्प्रेड किया जा सकता है।अलसी तेल से आप इलेक्ट्रोनिक घी बना सकते हैं। इसमें घी की खुशबू है, स्वाद लाजवाब है और ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स का जलवा है। यह अलसी तेल और घी का दिव्य संगम है। इसे दो मिनट तक गर्म कर सकते हैं और इसे बटर की तरह प्रयोग में लिया जा सकता है। इसे परांठे, रोटी या ब्रेड पर स्प्रेड कर सकते हैं। पुलाव या सूप में मिला सकते हैं। इसकी रेसिपी और यहां https://gobudwig.com/electro-ghee/ देख सकते हैं। कैंसर के मरीजों में नियम अलग हैं, उन्हें बडविग के निर्देशों का पालन करना है।

श्री सुरेश ताम्रकर जी के प्रयास से पब्लिश हुई अलसी महिमा

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

अलसी के स्टार प्रचारक डा.ओ.पी. वर्मा ने अलसी को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एक और उम्दा काम कर डाला। स्वयं के खर्च से अलसी महिमा नामक एक पुस्तिका प्रकाशित करवाई है। 15 जनवरी को आपका मध्यप्रदेश की राजधानी में अलसी पर व्याख्यान है, इस अवसर पर यह पुस्तिका भी जारी की जाएगी। पुस्तिका की पाँच हजार प्रतियाँ निशुल्क वितरित करने की उनकी योजना है। जैसे भागीरथ ने तपस्या कर मानव कल्याण के लिए धरती पर गंगा को बुलाया था, उसी तरह डा. वर्मा भारत की प्राचीन अलसी संपदा को समाज में पुनः गरिमा दिलाने के कार्य में जुटे हैं। आज के स्वार्थ प्रधान युग में ऐसे परमार्थी चिकित्सक बिरले ही मिलते हैं। वे चाहते हैं कि अलसी अपना कर जैसे वे स्वस्थ हुए वैसे सभी सुखी हों, स्वस्थ हों, निरोगी हों, निरामय हों।
– सुरेश ताम्रकर वरिष्ठ पत्रकार नई दुनिया, इंदौर

छोटा सा दान करके हमारी शक्ति बढ़ाइए - उषा वर्मा
अलसी चेतना से बड़ा कोई कर्म नहीं
दान से बड़ा कोई धर्म नहीं

32 thoughts on “अलसी – चिकित्सकीय गुणों से भरपूर असली हीरा”

  1. Comments, interesting stories and testimonials about this article

    आप सबको मालूम है कि अलसी महिमा मेरी सबसे सफल और बैस्ट सेलर पुस्तक है। 2020 में यह अलसी महिमा का नया और विस्तृत संस्करण है। यह ई-पुस्तक आपकी किंडल लाइब्रेरी होनी ज़रूरी है। इसे नए सिरे से लिखा गया है। कुछ नए चेप्टर जैसे सॉवरक्रॉट, ट्रांस फैट, कोकोनट ऑयल, शानदार ग्राफिक्स आदि जोड़े गए हैं। दोस्तों, आप इस पुस्तक को खरीदें और निर्देशानुसार अलसी का सेवन करना शुरू करें। यह आपके स्वास्थ्य को एकदम से लिफ्ट करा देगी और आप एक लंबा सुखद, स्वस्थ और सम्पन्न जीवन पाएंगे। अलसी न सिर्फ आपकी उम्र लंबी करती है, रोगमुक्त रखती है बल्कि आपको करोड़पति भी बना सकती है। इसके हमारे पास बहुत उदाहरण हैं। अलसी आपको बुद्धिमान, बलवान, चरित्रवान, सदाचारी, सच्चिदानंद, संजीदा, सहनशील, दिव्य बनाती है। आप सही मायने में मानुष बनते हैं। – ओम वर्मा

    अलसी के स्टार प्रचारक डा. ओ.पी. वर्मा ने अलसी को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एक और उम्दा काम कर डाला। स्वयं के खर्च से अलसी महिमा नामक एक पुस्तिका प्रकाशित करवाई है। 15 जनवरी को आपका भोपाल में अलसी पर व्याख्यान है, इस अवसर पर यह पुस्तिका भी जारी की जाएगी। पुस्तिका की पाँच हजार प्रतियाँ निशुल्क वितरित करने की उनकी योजना है। जैसे भागीरथ ने तपस्या कर मानव कल्याण के लिए धरती पर गंगा को बुलाया था, उसी तरह डा. वर्मा भारत की प्राचीन अलसी संपदा को समाज में पुनः गरिमा दिलाने के कार्य में जुटे हैं। आज के स्वार्थ प्रधान युग में ऐसे परमार्थी चिकित्सक बिरले ही मिलते हैं। वे चाहते हैं कि अलसी अपना कर जैसे वे स्वस्थ हुए वैसे सभी सुखी हों, स्वस्थ हों, निरोगी हों, निरामय हों। – सुरेश ताम्रकर वरिष्ठ पत्रकार नई दुनिया, इंदौर दिसंबर, 2009

    अलसी – चिकित्सकीय गुणों से भरपूर असली हीरा”

    अलसी की महिमा बड़ी निराली

    अलसी पर मेरा लेख 2009 में पहली बार निरोगधाम पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, और यह लेख पहले दिन ही वायरल हो गया था और आजतक वायरल है। फिर यह लेख देश की सभी पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज पेपर्स में प्रकाशित होता रहा। यह कई भाषाओं में ट्रांसलेट हुआ है। इस लेख को पढ़कर मुझे हजारों पाठकों ने फोन किए हैं। इस लेख की सार्थकता से संबंधित अनेक रोचक घटनाएं और कहानियां बनी हैं।

    निरोगधाम ने इस लेख को एटमबम की उपाधि दी थी और बताया था कि बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियो, अफसरों और उद्योगपतिओं ने हमें फोन कर के यह प्रति मंगवाई थी और हमारा यह अलसी अंक अब तक का सबसे अधिक बिकने वाला एडीशन रहा। आज हमारे पास इसकी एक भी प्रति नहीं है।

    धमतरी के एक रिटायर्ड टीचर केशवराम भक्त नें अपने हाथ से लिखकर इस लेख की 1000 प्रतियां लोगों को पोस्ट की। वे आजतक अलसी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

    एक दिन रायपुर एक वकील साहब को फोन आया, कहने लगे कि मैंने अभी-अभी निरोगधाम खरीदी और वहीं पर खड़े-खड़े ही आपका पूरा लेख पढ़ लिया। नौकर को फोन कर दिया है कि अलसी खरीद कर जल्दी घर पहुँचे। और मैं आपको इस महान लेख लिखने के लिए बधाई भी दे रहा हूँ।

    एक बार एक सज्जन का फोन आया कि उन्हें अहा जिंदगी में प्रकाशित यह लेख इतना अच्छा लगा कि इन्होंने अहा जिंदगी के इस अंक की 30 प्रतियां और 30 किलों अलसी खरीद ली है और इन्हें ये अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भेंट कर रहे हैं।
    एक बार मुंबई के एक उद्योगपति केशवलाल आर शाह ने मुझे फोन किया और कहा कि मैं 3 साल से रोज एक चम्मच अलसी खा रहा था और मुझे कोई फायदा नहीं हुआ, फिर आपका लेख पढ़कर 30 ग्राम अलसी खाना शुरू किया और मुझे तीसरे दिन ही बहुत फायदा लगने लगा। 10-15 दिन की जद्दोजहद के बाद इनको मेरा नंबर मिला और मुझे फोन किया। फिर 7-8 महीने तक तो ये मुझे रोज फोन करते और रोज नया सवाल पूछते। मुझे तो ऐसा लगता था जैसे इनको अलसी पर पी.एच.डी. करनी है। इनका एक खास वाक्य था जो ये रोज बोलते थे कि अगर आपका बिना अस्पताल जाए मरना है तो रामदेव जी का योगा करो, सैंधा नमक वापरौ और ओ.पी.वर्मा की 30 ग्राम अलसी खाओ।

    अजमेर के एक रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉ ओ.पी.टंडन साहब उम्र 76 वर्ष की पत्नि का फोन आया। उन्होंने अलसी के लेख की 45 मिनट तक तारीफ की फिर डॉ टंडन से बात करवाई, उन्होंने भी मझे बहुत आशीर्वीद दिया। तब से लेकर आजतक दीवाली और न्यू ईयर पर ये मुझे जरूर फोन करते हैं। 4 जनवरी 2013 को डॉ टंडन का फोन आया था और नये साल की बधाई देने के बाद ये बोले कि यार वर्मा अलसी खाने से मेरे सिर के सारे बाल काले हो गए हैं। यह सुनकर मैं खुद अचंभित था।
    कुछ ही दिनों बाद जयपुर की एक प्रशंसिका सरोज सोनी नें मुझे फोन करके बताया कि मेरे भैया ने अपने एक ज्वेलर दोस्त को (46 वर्ष) डायबिटीज के लिए अलसी खाने की सलाह दी। तो 15-20 दिनों बाद उनकी मूँछें काली होनी शुरू हो गई।

    एक बार सागर विश्विद्यालय के एम.बी.ए. कॉलेज के प्रिंसिपल ठाकुर यशवंत सिंह के आग्रह पर उनके कॉलेज में एक लेक्चर दिया। अलसी पर लेक्चर दो घंटे चला। उनके स्टूडेंट्स ने लेक्चर की बहुत तारीफें की और कहने लगे कि हम इस कॉलेज में 2 साल से पढ़ रहे हैं, लेकिन इतना बढ़िया लेक्चर आजतक नहीं हुआ। स्टूडेंट्स के खास आग्रह पर हमनें 1 महींने बाद फिर एक लेक्चर और दिया।

  2. आज मैं गमोह के जय प्रकाश नारायण का पत्र साझा कर रहा हूँ। अलसी ने इनका जीवन ही बदल दिया। इन्होंने मुझे कई बार फोन भी किया था और डिटेल में अलसी का फीडबेक दिया था, यह लेटर तो सिर्फ ट्रेलर है …
    जय प्रकाश नारायण श्रीवास्तव
    आदरणीय वर्मा साहब,
    सादर नमस्कार,
    यह एक मात्र संयोग है कि “निरोगधाम पत्रिका जनवरी 2010” में आप का एक लेख के माध्यम से आप के प्रति मुझे ऐसा लगवा हो गया है, जिसका वर्णन करना शब्दों के माध्यम से नहीं है। आशा करता हूँ कि यह संबंध भविष्य में और अधिक गहरा होता चला जायगा। ईश्वर से मेरी यह कामना है।
    वास्तव मैं आप का यह लेख मेरे जीवन की परिभाषा ही बदल दी है। जहाँ मैं अनेक रोगों से ग्रस्त या अपने जीवन से निराश हो चला था वही आज मैं 53 वर्ष का होकर 25 वर्ष की जवानी का आनंद उठा रहा हूँ यानि कि मृत शरीर में ऐसा ऊर्जा का संचार हो रहा है, जिसका मैं कभी कल्पना भी नहीं किया था। चौतरफा आंनद की अनुभूति हो रही है मैं अपनी इस खुशी का इजहार किस माध्यम से करूं, यह मैं स्वयं नहीं सोच पा रहा हूँ। उचित अवसर की प्रतिक्षा में हूँ जब मैं आप से रू-ब-रू हो सकूँ। और अपने मुह से अपना इजहार कर सकूँ। आप के लेख का परिणाम है कि 100 वर्ष तक जीने कि इच्छा हो रहीं है। साथ-साथ बहुतों को जीने का गुरू भी बता रहा हूँ।
    आप का अपना
    जय प्रकाश नारायण श्रीवास्तव
    Rly-Qtr-No-568/B
    TRS Colony Gamoh
    Dist-Dhanbad (Jharkhand)

  3. दूसरा पत्र धमतरी छ.ग. के श्री केशवराम भक्त का है, जिन्होंने यह पत्र 1000 व्यक्तियों को हाथ से लिखकर भेजा…
    केशव राम भक्त
    श्रद्धेय डॉ. श्रीमान ओ. पी. वर्मा साहब,
    नमस्ते,
    विगत एक-ढ़ेड वर्षों से मैंने कुछ पत्रिका जैसे सृजन कर्म, निरोगधाम, सेहत, योग संदेश, अहॉ जिन्दगी, के साथ पेन्शन चिन्तन जुलाई 2010 में आरोग्यवर्द्धक, आयुवर्द्धक, दिव्य भोजन, प्रकृति का अनुपम आहार सुपर फूड विषेशण से सुसज्जित “अलसी” के संबंध में पढ़ा तो मेरे मन में समझने जानने सोचने पर विवश कर दैविक, अनुपम सुपर आहार खाने की प्रेरणा अंतर्मन से हुई और मैंने इसे अप्रेल 2010 से खाना प्रांरभ पत्रिकाओं में लिखि विधि अनुसार कर दिया। इसे स्वतः खाना शुरू किया, किसी की प्रेरणा से नहीं।
    दिसम्बर 2010 की स्थिति में उदरस्थ सभी विकार नष्ट हो गया। कब्ज़ है ही नहीं, बवासीर सूखकर छोटी सी गाँठ भर रह गया। ब्लड शुगर नियंत्रण हो गया। शरीर में चुस्ती, फुर्ती, उमंग, उत्साह एवं स्टेमिना का अनुभव नवयुवक जैसा है, 69 वर्ष की उम्र में भी भूख, भोजन, निद्रा पहले की अपेक्षा बढ़ गई। लोगों का कहना है कि चेहरे की चमक के अनुसार आप रिटायर भी नहीं हुए है, ऐसा लगता है।
    विधि अनुसार अलसी खाने के बाद शरीर में जिस प्रभाव का अनुभव किया हूँ, ऐसी चुस्ती, फुर्ती, स्वस्थ निरोगी जीवन यापन मेरे पेन्शनर बंधु भी करें की भावना ले कर अलसी खाने के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया हूँ।
    आज की तारीख में मैंने कहाँ-कहाँ अलसी खाने के लिए प्रचार कर चुका हूँ, मात्र दो-तीन पत्र इस पत्र के साथ सलंग्न कर रहा हूँ। व्यक्तिगत लोगों से मिलकर पंपलेट एवं खाने की विधि एंव लाभ अब तक हजारों व्यक्तियों को दे चुका हूँ।
    मैं अपना अनुभव लिख चुका हूँ। रोहीत कुमार चन्द्रकार ब्लड-शुगर से पीडि़त था। शुगर के कारण किडनी खराब हो गया था। दोनों पैरों में सूजन थी। बी.पी. बड़ा हुआ था। अलसी खाने से अब 90% बीमारी ठीक हो गयी है, जबकि रोहीत कुमार चन्द्रकार पिछले दो साल से रायपुर के माने हुए अस्पताल में चिकित्सा करवा रहे थे।
    सबका स्वस्थ जीवन, निरोगी काया बना रहे की भावना को साकार करने हेतु आगे भी प्रचार-प्रसार करता रहूंगा।
    केशव राम भक्त
    से. नि. प्रधान अघ्यापक
    धमतरी छत्तीस गढ़
    मो. 09479205714

  4. वशिष्ट मुनि की गुफा में भी पहुँची अलसी
    दोस्तों, जो अलसी लुप्त हो चुकी थी, जिसका नाम भी लोग भूल चुके थे। उसे मेरे इसी लेख ने हर घर में पहुँचा दिया है, यहाँ तक कि ऋषिकेश से आगे वशिष्ट मुनि की गुफा में भी अलसी पहुँच चुकी है, पढ़िए यह संस्मरण…

    एक बार गीता भवन, ऋषिकेश के ट्रस्टी श्री रामस्वरूप केजरीवाल साहब ने मुझसे मिलने की इच्छा जताई और हमें आमंत्रित किया। केजरीवाल जी की उम्र 82 वर्ष थी, इसलिए मैंने उनका निमंत्रण कुबूल कर लिया और मैं राधेश्याम को साथ लेकर हरिद्वार पहुँचा। स्टेशन पर रामस्वरूप जी का ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहा था। एक घंटे में हम गीता भवन ऋषिकेश पहुँच गए। रामस्वरूप केजरीवाल ने उनके निवास के बिलकुल पास ही हमारे ठहरने और खाने पीने की बहुत अच्छी व्यवस्था की थी। गीता भवन में हम 4 दिन रहे। रामस्वरूप केजरीवाल से अलसी और बडविग प्रोटोकोल पर विस्तार से रोजाना चर्चा होती थी। केजरीवाल सुबह 4 बजे उठ कर घूमने जाते थे और अश्वगंधा, गूलर, नीम, गिलोय और तुलसी के ताजा पत्ते तोड़कर लाते थे। फिर उनका ज्यूस निकाल कर हमारे कमरे में दस्तक देते और तीन बार डॉक्टर साहब की जय हो बोलते थे। और हमे ज्यूस पिलाकर लौट जाते थे। 15 मिनट बाद वो गाजर के ज्यूस में अलसी मिलाकर लाते थे और फिर से तीन बार डॉक्टर साहब की जय हो बोलते थे। यह उनका रोज का काम था। मैंने उनसे कहा भी कि आप हमसे बहुत बड़े हो आप हमारी जय मत बोलो। इस सबके बाद उनका कुक आठ बजे हमारी बेड टी लेकर आता था। आखिरी दिन केजरीवाल साहब ने हमें कहा कि आज हमे अलसी के व्यंजन बनाना सिखाओ। तो फिर राधेश्याम ने उड़द की दाल और अलसी के बाफले बनाए। बाफलों और दाल को तलने के लिए जो घी इस्तेमाल हुआ वो उनकी बहुत ही बढ़िया नस्ल की देसी गायों के दूध से बनाया गया था। इन गायों को वे मेडीकल काउ कहते थे। राधेश्याम ने बहुत ही स्वादिष्ट दाल बाफले बनाए, मेडीकल काऊ के घी ने इस डिनर में चार चांद लगा दिए।

    एक दिन हम ऋषिकेश से 25 किलोमीटर आगे गंगा के किनारे पर स्थित मुनि वशिष्ट की गुफा देखने गए। गुफा में एक शिवलिंग था और कोई लाइट नहीं थी, सिर्फ एक दीपक जलता रहता है। मुनि वशिष्ट ने इसी गुफा में कई वर्षों तक तपस्या की थी। गुफा के पास ही एक मंदिर था और वहाँ पर एक 104 वर्ष के साधु बाबा 30 साल से यहीं रह रहे थे। हम भी साधुबाबा से मिले, कुछ और लोग भी साधुबाबा से मिलने आए थे। साधुबाबा ने हम सबको चाय पिलाई। हमने उन्हें अलसी महिमा की कुछ प्रतियां भेट की। तो अलसी की चर्चा शुरू हो गई। साधुबाबा ने कहा कि मैं भी 2-3 साल से नियमित अलसी खाता हूँ, उन्होंने हमें अलसी का डिब्बा और मिक्सी भी दिखाई। राधेश्याम कहने लगा कि सर अपनी अलसी हिमालय में मुनि वशिष्ट की गुफा में भी पहुँच गई। हमे गुफा के पास बिच्छू बूटी (Stinging nettle) के पौधे भी दिखाई दिए। हम बिच्छू बूटी के पत्ते भी तोड़कर साथ लाए, जिसका हमने सलाद और हर्बल टी तैयार की।

    जब मेरी रामस्वरूप जी केजरीवाल से पहली बार फोन बात हुई और उन्होंने अपनी उम्र 82 वर्ष बतलाई (हालांकि जब मिले तो वह लगते 72 वर्ष के लगते थे) और मामला गीता भवन का था (गीता भवन से मेरे मदर फादर भी जुड़े हुए थे, जब भी ऋषिकेश जाते थे तो गीता भवन जरूर जाते थे) और ऋषिकेश जाना था, तो मैंने तुरंत हामी भर दी। मैंने उनसे कोई शुल्क भी नहीं मांगा, हां मैंने इतना जरूर कहा कि हम हरिद्वार तक तो आ जाएंगे, लेकिन स्टेशन पर आपकी गाड़ी हमें लेने आएगी और हमारे रहने की व्यवस्था बढ़िया होनी चाहिए।

    फिर मैंने उषा से कहा कि तुम भी साथ चलो तो उसने मना कर दिया और कहा कि आप अकेले भी मत जाओ साथ में राधेश्याम को ले जाओ। तो हमने रिजर्वेशन करवाया और दोनों हरिद्वार के लिए निकल लिए। रास्ते में सूटकेस में से चार्जर निकालते समय राधेश्याम ने निकॉन का एक कॉम्पेक्ट कैमरा (जो नया ही खरीदा था) शायद बाहर गिरा दिया।

    हमें विदा करते समय रामस्वरूप जी ने एक नोटों का लिफाफा थमा दिया, मैंने मना भी किया पर वे नहीं माने। कोटा आने पर जब हमने पूरी बातें उषा को बतलाई तो उसे नहीं जाने का अफसोस हुआ और कहा कि उसे भी ऋषिकेश जाना चाहिए था। मैंने उषा को कहा कि सुबह मुझे बेड टी देते समय “डॉक्टर साहब की जय हो” बोला करो, क्योंकि हमारे कान यह सुनने के आदी हो चुके हैं। “डॉक्टर साहब की जय हो” सुने बिना कई दिनों तक सच में चाय गले से नहीं उतरती थी।

    मुनि वशिष्ट की गुफा

  5. न दवा न दुआ और न जादू मंतर
    अलसी करती है डिप्रेशन को छू मंतर

    दोस्तों,

    हिरण मगरी, उदयपुर में मेरे एक अभिन्न मित्र श्री जयंती जैन साहब (सेल्स टेक्स के कमिश्नर हैं) रहते हैं, जो हमेशा मेरे काम की सराहना करते हैं, प्रोत्साहन देते हैं और रिसर्च में भी सहभागी है। उन्होंने कई मोटीवेशनल और हैल्थ पर पुस्तकें जैसे उठो जागो, असाध्य रोगों का सामना कैसे करें आदि लिखी हैं। उनकी शख़्सियत ही ऐसी है कि जो उनसे एक बार मिल लेता है, वह उनका हमेशा के लिए मुरीद बन जाता है। हमारी अलसी चेतना यात्रा की शुरूआत भी उनके घर से ही हुई थी। बार उनकी भतीजी (जिसकी शादी मुंबई में हुई है) को डिप्रेशन हो गया, तो उन्होंने अपने ब्रदर को कहा कि आप मुंबई जाओ और बिटिया को अलसी और अलसी का तेल खिलाओ, जिससे उसका डिप्रेशन ठीक हो सके। वह तुरंत मुंबई गए, बिटिया को नियमित अलसी और अलसी का तेल खिलाना शुरू किया और दोनों बाप बेटी नियमित रूप से रोज अलसी चालीसा का पाठ भी करते थे। कुछ ही दिनों में उसका डिप्रेशन ठीक हो गया और यह बात मुझ तक भी पहँची।

    फिर थोड़े समय बाद श्री जयंती जैन साहब की बिटिया की शादी थी। बहुत खुशी का मौका था। लड़का बहुत होनहार था और अमेरिका में जॉब करता था। मेरे लिए एक खास निमंत्रण था। मुझे हिदायत दी गई थी कि मुझे हर हाल में पहुँचना है। मैंने बस से जाने का निर्णय किया। इधर बस उदयपुर पहुँची, इधर कमिश्नर साहब का फोन आया कि मैं आपको लेने बस स्टेंड आता हूँ। सुबह का समय था, इसलिए मैंने उन्हें मना किया और कहा कि आप मत आओ, मैं टेक्सी से घर पहुँचता हूँ। सुबह के 5 बजे थे। 9 बजे तक हम बड़े आराम से बैठ कर गपशप करते रहे, भाभी जी ने हमें लज़ीज नाश्ता चाय वगैरह करवाया। इसी बीच हम नहा-धोकर तैयार भी हो गए। वह इतने निश्चिंत और बिंदास थे कि लग ही नहीं रहा था कि शाम को उनकी बेटी की शादी है और उन्हें कन्यादान करना है। उन्होंने कहा कि चलो मेरिज गार्डन में रिसेप्शन की तैयारियां देख कर आते हैं। जब हम मेरिज गार्डन से लौट रहे थे, तो हमें एक परिचित बंदा मिला और कुछ बातें हुई। उसने कहा कि वह मेरे लिए गाड़ी और ड्राइवर भेज देता है जो दिन भर मेरे साथ रहेगा। मुझे भी यह ऑप्शन सही लगा, क्योंकि दिन भर मुझे कोई काम तो था नहीं मौसम भी बड़ा सुहाना था बादल भी छाए हुए थे। इसलिए मैं दिन भर उदयपुर की सैर करता रहा, उसके ऑफिस भी गया, कुछ पुराने दोस्तों से भी मिला। मैं फतेह सागर, नेहरू गार्डन, सुखाड़िया सर्किल, सहेलियों की बाड़ी, चेटक सर्किल, गुलाब बाग आदि जगह घूमा।

    शाम को रिसेप्शन में उनकी भतीजी से मेरी मुलाकात हुई, वह मुझसे मिलने के लिए बहुत आतुर थी। उसने बताया कि जैसे अंकल ने कहा, मैंने वैसे वैसे ही अलसी और अलसी का तेल का सेवन किया। 10-12 दिनों में ही मुझे बहुत चमत्कारी तरीके से डिप्रेशन में फायदा हुआ, मैंने कोई दवाई भी नहीं खाई। मेरा आत्मविश्वास और सकारात्मकता एकदम बढ़ गई। वह मुझे बार बार धन्यवाद दे रही थी और उसने पता नहीं क्या क्या कहा, मुझे तो पूरी बातें याद भी नहीं है। उसने बताया कि अलसी और अलसी का तेल ही डिप्रेशन का सबसे बढ़िया इलाज है। उस पूरी महफिल में वह सबसे ज्यादा मुस्कुरा रही थी, हंस रही थी, और चहक चहक कर सबसे बातें कर रही थी। उसे देख कर कोई कह ही नहीं सकता था कि यह लड़की कभी डिप्रेशन की मरीज रही होगी।

    कमिश्नर साहब ने उनके कई दोस्तों से भी मिलवाया, सभी मुझसे अलसी के बारे डिसकस करना चाहते थे, कुछ पूछना चाहते थे। वह महफिल शादी का रिसेप्शन कम और अलसी की गोष्ठी अधिक लग रही थी।

    Swasthya Setu

  6. यदि कृष्ण आज पैदा हुए होते तो गोपियों यही कहते
    इलेक्ट्रोन की प्यास स जियो घणो घबराय
    थोड़ो माखन दे सखी अलसी तेल मिलाय

    उस जमाने में तो दूध दही और माखन में भी बहुत ओमेगा-3 फैट होता था क्योंकि गाएं ओमेगा-3 फैट से भरपूर ताजा चारा खाती थी, लेकिन आज के दूध माखन में ओमेगा-3 फैट नहीं होता इसलिए अलसी तेल मिलाना जरूरी है….

  7. फ्लेक्स ऑयल कैसे और कितना प्रयोग करें?
    अलसी तेल (फ्लेक्स ऑयल) अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैट) से भरपूर दुनिया का श्रेष्ठतम फैट है, जिसमें सजीव, ऊर्जावान और गतिशील इलेक्ट्रोन्स होते हैं। ये इलेक्ट्रोन्स हमें स्वस्थ और दीर्घायु जीवन प्रदान करते हैं। यही अमरत्व घटक हैं जो हमें मानुष बनाते है। यह हृदय हितैषी है, कॉलेस्टेरोल को नियंत्रण में रखता है, दिल के ब्लॉक खोलता है और हार्ट अटेक के कारण पर अटेक करता है। यह डायबिटीज को टर्मिनेट करती है। यह इम्यूनिटी का आधार है और अनेक ऐलर्जिक रोग जैसे सोरायसिस, एग्जीमा आदि का उपचार है। यह जोड़ के हर रोग का तोड़ है और मेनोपॉज की तकलीफें जैसे हॉट फ्लशेज, डिप्रेशन, पति पर अचानक खुंदक आना आदि पर पॉज़ लगाता है। लिनोलेनिक एसिड माइंड के सर्किट का सिमकार्ड है, मेमोरी बढ़ाता है, विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करता है और सफलता के सारे द्वार खोल देता है।
    अलसी का तेल (फ्लेक्स ऑयल) ठंडी विधि (Cold pressed) द्वारा निकला हुआ ही प्रयोग करें। मेरी जानकारी के अनुसार भारत में प्रानोफ्लेक्स (हैल्थ फर्स्ट) कंपनी ही अच्छा और कोल्ड-प्रेस्ड अलसी तेल बनाती हैं। कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल्स बनाने में प्रानोफ्लेक्स (हैल्थ फर्स्ट) कंपनी का कोई जवाब नहीं है। यह कंपनी सभी तेल बनाती है। इनकी वर्ल्ड क्लास क्वालिटी का लोहा पूरी दुनिया मानती है। बाजार में मिलने वाले अन्य ब्रांड्स का फ्लेक्स ऑयल कभी नहीं खरीदें। इनके पास फ्लेक्स ऑयल बनाने की सही तकनीक नहीं है। जब गलत तकनीक से तेल बनता है तो वह ऑक्सीडाइज़ हो जाता है, उसमें टॉक्सिंस बन जाते हैं, उसके औषधीय गुण खत्म हो जाते हैं और आपको फायदे की जगह नुकसान पहुँचाने लगताा है। अलसी का तेल एक खास ठंडी विधि द्वारा बनाया जाता है।
    जब मैंने यह लेख लिखा और इसे प्रकाशित करवाया तो यह बहुत वायरल हुआ और आज तक वायरल है। बस फिर कुकुरमुत्तों की तरह बहुत सारी कंपनियां बाजार में आई और बिना सही टेक्नोलॉजी हासिल किए फ्लेक्स ऑयल बनाने लगी। बहुत सारी कंपनियां अलसी को बड़ी लोहे की कड़ाहियों में हाई टेंप्रेचर पर रोस्ट करके बेचने लगी। कई हैल्थ एक्सपर्ट्स, वेब साइट्स और यूट्यूबर्स अलसी के बारे में गलत जानकारियां दे रहे हैं। कल ही मैं बाबा रामदेव जी का एक वीडियो देख रहा था, जिसमें वह कॉमेडियन की तरह हंस-हंस कर रोस्टेड अलसी की वकालत कर रहे थे। जबकि सागर म.प्र. में मेरे चाचा श्री राज कुमार ठाकुर के घर पर मेरी रामदेव जी मुलाकात हुई थी और मैंने उन्हें सब कुछ समझाया था और मेरी पुस्तक अलसी महिमा की 150 प्रतियां भी भैंट की थी।
    अलसी का तेल 42 डिग्री सेल्सियस पर खराब हो जाता है, इसलिए इसे कभी भी गर्म नहीं करना चाहिए और हमेशा फ्रिज में ही रखना चाहिए। फ्रिज में यह 8-9 महीने तक खराब नहीं होता है। यह तेल उष्मा, प्रकाश व ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर खराब हो जाता है। इसलिए नामी कंपनियां तेल को गहरे रंग की बोटल्स में नाइट्राजेन भरकर पैक करती हैं।
    फ्लेक्स ऑयल कैसे और कितना प्रयोग करें
    आपको रोजाना 15-30 एम. एल. (2 टेबलस्पून) अलसी का तेल खाना चाहिए। इसे आप कॉटेज चीज़ (एक क्रीम जैसा पनीर जिसे आप घर पर बना सकते हैं) या दही में ब्लेंड करके उसमें कटे हुए फल आदि मिलाकर सेवन कर सकते हैं। कॉटेज चीज़ सल्फरयुक्त प्रोटीन होते हैं जो अलसी तेल की गुणवत्ता और उपयोगिया बढ़ाते हैं। अलसी तेल और पनीर से बने व्यंजन को ओमखंड कहते हैं। पनीर और ओमखंड की वीडियो हमारे इस पेज https://gobudwig.com/budwig-hindi-p/ पर देख सकते हैं। तेल और प्रोटीन की ब्लेंडिंग होने पर लाइपो-प्रोटीन नामक पदार्थ बनता है, जो पानी में घुलनशील होता है, तथा सीधा कोशिका में पहुँच कर उसकी भित्ति की संरचना का हिस्सा बनता है और अपने इलेक्ट्रोन्स की शक्ति से ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करता है। ऑक्सीजन मिलते ही कोशिका में ऊर्जा बनने लगती है और सारे काशिकीय विकार ठीक हो जाते हैं।
    अलसी तेल से आप इलेक्ट्रोनिक घी बना सकते हैं। इसमें घी की खुशबू है, स्वाद लाजवाब है और ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स का जलवा है। यह अलसी तेल और घी का दिव्य संगम है। इसे दो मिनट तक गर्म कर सकते हैं और इसे बटर की तरह प्रयोग में लिया जा सकता है। इसे परांठे, रोटी या ब्रेड पर स्प्रेड कर सकते हैं। पुलाव या सूप में मिला सकते हैं। इसकी रेसिपी और यहां https://gobudwig.com/electro-ghee/ देख सकते हैं।
    फ्लेक्ससीड ऑयल के जानदार वीडियो देखने के लिए क्लिक करें

  8. गणित पढ़ने का आसान तरीका रिवर्स इंजिनियरिंग
    दोस्तों, आज हम हमारे एक क्लास फैलो और मित्र श्याम सुंदर माहेश्वरी की बात करते हैं। हम चार साल साथ पढ़े, नवीं से बारहवीं तक। वह पढ़ाई में भी अच्छा था। हां गणित और फिजिक्स में डाउन था। वह अक्सर कनफ्यूज हो जाता था और दूसरों को भी कनफ्यूज कर देता था। इसलिए उसे सब सल्फेट कहते थे। दिल का बहुत अच्छा था। बाद में उसने साइंस छोड़ दी थी और ग्रेजुएशन करके सेल टेक्स इंस्पेक्टर बन गया था। फिर आगे भी प्रोमोशन हुए परंतु हमें ज्यादा जानकारी नहीं है।
    उसकी एक खूबी थी कि वह किसी भी चीज को रटने में मास्टर था। काश हममे भी यह महान गुण होता। इस पर एक घटना याद आ रही है। हमारे सोशल स्टडीज के टीचर अक्सर क्लास में कहते थे कि कल अमुक चेप्टर पढ़ाऊँगा इसलिए पढ़कर आना। दूसरे दिन फिर किसी एक स्टूडेंट को खड़ा करते और कहते कि सुनाओ क्या पढ़कर आए हो। वह नहीं बता पाता तो दूसरे स्टूडेंट को खड़ा करके पूछा जाता। जब कोई नहीं बता पाता तो अंत में श्याम सुंदर से पूछा जाता। श्याम सुंदर जी खड़े होते और एक ही सांस में पूरा चेप्टर सुना देते, जैसे थ्री इडियट्स फिल्म में चतुर मशीन की डेफिनेशन बताता है। टीचर उसे शाबासी देते और हमें पढ़ने की नसीहत मिलती। वह टीचर हमें डांटते और कहते कि पढ़ाई नहीं करोगे तो जिंदगी भर वैजयंती माला के यहाँ बर्तन साफ करना पड़ेगा।
    श्याम सुंदर की दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह गणित को रिवर्स इंजिनियरिंग की टेकनीक से पढ़ता था। वह उलटा चलता था यानि वह पहले सवाल के आंसर्स रटता था। उसे मेथ्स की पूरी किताब के सवालों के जवाब रटवां याद थे। यहां तक कि फिजिक्स के न्युमेरीकल्स के भी आंसर्स उसे रटवां याद थे, हां उसे सॉल्व करना उसके लिए बड़ी टेढ़ी खीर हुआ करता था। अब वह दिमाग लगाता था कि सवाल से यह जवाब कैसे लाया जाएं, यह काम उसके लिए बहुत मुश्किल हुआ करता था। जुगाड़-तुगाड़ करके कुछ सवाल तो सही कर लेता था, लेकिन ज्यादातर सवालों के जवाब देख कर हमें बहुत हंसी आती था।

    Srinagar

    एक बार वे मुझे मिला और कहा कि यार अभी अभी मेरी शादी हुई है, घर पर जरूर आना। तो हम दोनों पति-पत्नी उसके घर पहुँच गए। उसकी पत्नी से परिचय हुआ, बातचीत हुई। मैंने कहा यार तुम्हारी अभी अभी शादी हुई है, तुम यहाँ कोटा में क्या कर रहे हो, भई, कश्मीर शिमला वगैरह जाओ, हनीमून मनाकर जाओ। तो उसकी पत्नी बोली भाई साहब मैं तो कबसे कह रही हूँ कि कहीं घूमने चलते हैं, पर ये सुनते ही नहीं हैं। मैंने कहा कि चलो हम चारों कश्मीर चलते हैं, बड़ा मजा आएगा, उसकी पत्नी बहुत खुश हुई। श्याम सुंदर को हां भरनी पड़ी। सारा प्रोग्राम बन गया। मैंने दूसरे दिन ही टिकिट बुक करवा लिए, श्री नगर में हाउसबोट में रिजर्वेशन करवा लिया और सारी तैयारियां शुरू हो गई। लेकिन 3-4 दिन बाद बंदा मेरे पास आया और कहने लगा कि ये दिक्कत है, वो दिक्कत है… इसलिए अभी तो प्रोग्राम पोस्टपोन कर देते हैं, बाद में फिर कभी बना लेगे। मुझे पहले ही उस पर शक था कि वह कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर करेगा, खैर मैंने कहा कि कोई बात नहीं, प्रोग्राम बन गया है तो हम जा ही रहे हैं, तुम जाओ या ना जाओ। मुझे नहीं लगता कि वो जीवन में कभी कश्मीर जा पाया होगा। लेकिन हम तो 10-12 दिन जम्मू, श्रीनगर, गुलमर्ग, पहलगांव आदि हिल स्टेशन्स पर घूम के आए और बड़ा मजा आया। काश, श्याम सुंदर भी हमारे साथ होता। ….

  9. एक चांदी के टुकड़े की कहानी

    हायर सेकंडरी स्कूल परीक्षा में पूरे राजस्थान में  सेकंड रैंक लाने के उपलक्ष में सिल्वर मेडल प्रपाप्त करते हुए

    1967 हायर सेकंडरी का एग्जाम देने के बाद मुझे लग रहा था कि एग्जामिनर मेरी हैंड राइटिंग ठीक से पढ़ नहीं पाएगा, तो फिर नंबर भी कैसे देगा। इसलिए टेंशन भी था और दिल धक-धक करता था। क्योंकि हमें सब आता था, इसलिए हम जल्दी-जल्दी लिखते रहे लिखते रहे और हैंड राइटिंग बिगड़ गई। उधर स्कूल के प्रिंसिपल साहब भारत भूषण जी गुप्ता (जो मुझे महाराज कहते थे) और घर के प्रिसिपल साहब यानी मेरे बाप श्री प्रभुलाल जी दोनों मुझसे उम्मीद लगाकर बैठे थे कि मेरे फर्स्ट या सेकंड रैंक आए। करते भी क्यों नहीं, उन्होंने भी हमारे लिए किया भी बहुत कुछ था, कई तरह से प्रोत्साहन भी दिया। वो सचमुच बहुत अच्छे टीचर और प्रिसिपल थे। इसीलिए उन दिनों हमारा मल्टी परपज़ हायर सेकंडरी स्कूल गुमानपुरा कोटा पूरे राजस्थान में फर्स्ट आया था। विदित रहे यह सरकारी स्कूल था।
    पिछले साल जब सेकंडरी की बोर्ड परीक्षा में हमारे छठवीं रैंक आई तो भारत भूषण जी ने मुझे ऑफिस में बुलाया, हम डरते डरते गए। उन्होंने हमें कहा कि मैं लाइब्रेरी में जाऊँ और लाइब्रेरी में जो भी बुक्स मुझे पसंद आए मैं लाइब्रेरियन को बता दूँ। वो मुझे इश्यु कर देगा और एक अलमारी में रख कर चाबी मुझे दे देगा। बस मैं लाइब्रेरी गया और एक बड़ी अलमारी भर कर करीबन 300 किताबें मुझे साल भर के लिए इश्यु कर दी गई। श्री भारत भूषण जी के काम ऐसे ही होते थे।
    अब आप बताओ मेथ्स वाले स्टूडेंट को तो मेथ्स में 100 में से 100 मिल सकते हैं पर बायो में तो 100 में से 100 नहीं मिल सकते हैं ना। खैर, रिजल्ट आया और पूरे राजस्थान में हमारे सेकंड रैंक आई, सबने बधाइयां दी, स्कूल की मेगजीन में फोटो छपा, अखबार में फोटो छपा। स्कूल के प्रेयर हॉल में टंगे बोर्ड पर हमारा नाम लिखवाया गया। फिर 6 महीने बाद राजस्थान बोर्ड ने हमें लेटर लिख कर मेडल देने के लिए हमें अजमेर बुलाया और चांस की बात देखिए कि श्री वो मेडल मुझे भारत भूषण गुप्ता साहब ने ही अपने हाथों से पहनाया और गले लगाकर आशीर्वाद दिया (क्योंकि तब वे राजस्थान बोर्ड के सेक्रेट्री बन चुके थे। मेडल लेने के बाद हमने अजमेर के ही एक बढ़िया स्टूडियों में सूट पर मेडल लगाकर फोटो खिंचवाया (जो मैं संलग्न कर रहा हूँ)। फोटो खिंचवाने के बाद हमने अजंता टॉकीज में देवआनंद की ज्वेल थीफ पिक्चर देखी और दूसरे दिन कोटा रवाना हो गए।
    कई बार लोग मुझसे मिलने, मेरी एक झलक पाने या परिचय करने के लिए आते थे और मिलकर गर्व महसूस करते थे। मैं भी गौरवान्वित महसूस करता था। मेरे लिए यह सब बहुत फक्र की बात थी। इस मेडल को प्राप्त करने के उपलक्ष में ईनाम स्वरूप 5 साल तक 100 रुपये महीने नेशनल स्कॉलरशिप और 30 रुपया महीने राजस्थान बोर्ड से 3 साल तक स्कॉलरशिप प्राप्त हुई। उस वक्त यह बहुत पैसे हुआ करते थे, उन दिनों शायद एक टीचर की सेलेरी इतनी ही हुआ करती थी। हमारे बापजी ने इस पैसे का हिसाब हमसे कभी भी नहीं पूछा (जबकि हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी) और इस पैसे से हमने बड़े ऐश किए। यह कहानी आप अपने बच्चों को जरूर पढ़वाइए। उन्हें प्रेरणा मिलेगी।

  10. गणित का पोस्टमार्टम
    मेरे पिछले पोस्ट पढ़कर कई दोस्तों ने कहा कि मैं अपने जीवन में घटी रोचक घटनाओं का ज़िक्र करता रहूँ। तो चलिए आज हम गणित की बात करते हैं। मैंने हायर सेकंडरी स्कूल, चेचट जिला कोटा से आठवीं क्लास पास कर ली थी (क्योंकि तब मेरे फादर की पोस्टिंग चेचट में थी) और हम हमारे गांव सांवन भादों (जो कोटा से 60 किलोमीटर दूर है) में गर्मी की छुट्टियां मना रहे थे। नवीं क्लास से मुझे मल्टीपरपज हायर सेकंडरी स्कूल कोटा में पढ़ना था, क्योंकि चेचट में साइंस फैकल्टी नहीं थी। दरअसल मेरी दादी चाहती थी कि मुझे डॉक्टर बनाया जाए, क्योंकि हमारे गांव सावन भादों में न कोई डॉक्टर था न कोई दवाखाना।
    एक दिन मेरे बाबूजी कहा कि यार मैं छुट्टियों में तुझे नवी और दसवीं की गणित पढ़ा देता हूँ। मैं भी बहुत खुश हुआ क्योकिं गणित बढ़ना बहुत अच्छा लगता था। बस दूसरे दिन से मेरी क्लास शुरू हो गई। उन्होंने इतना धांसू पढ़ाया कि मेरी तबियत प्रसन्न हो गई, मुझे पहली बार अहसास हुआ कि प्रभुलाल जी (मेरे बाबूजी) कितने बेहतरीन टीचर हैं, क्योंकि उससे पहले उन्होंने मुझे कभी नहीं पढ़ाया था। हाँ उन्हें पढ़ाते हुए जरूर देखता था। बाबूजी से मेरा अटेचमेंट बहुत ज्यादा था। मैं एक भी दिन उनसे दूर नहीं रह पाता था। सचमुच वह एक आदर्श पिता और टीचर थे।

    गणित की पढ़ाई चल रही थी। ज्योमेट्री और एलजेब्रा मेरे लिए बिलकुल नये विषय थे। उन दिनों ज्योमेट्री और एलजेब्रा नवीं क्लास से ही शुरू होते थे। खैर, 10-15 दिनों में बाबूजी ने पूरी गणित घोल कर मुझे पिला दी। उसके बाद तो जैसे गणित मेरे लिए एक आसान और ट्रांसपेरेंट विषय हो गया। ट्रांसपेरेंट का मतलब यह है कि सवाल पढ़ते ही उसका पूरा जवाब आंखों के सामने उभर आता है। इसके बाद अब मुझे गणित पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी। गणित की क्लास में तो मैं इधर-उधर देखता रहता था, कुछ सोचता रहता था, क्योंकि मुझे सब कुछ याद था। पूरी गणित की लॉग एक्टिंग इंट्रावीनस ड्रिप मुझे लग चुकी थी। हाँ मेथ्स टीचर जो होमवर्क देते थे, वह बूस्टर डोज़ तो मुझे लेना ही पड़ता था। पूरे दो साल तक यही सिलसिला चलता रहा।
    समय निकलता गया और दसवीं क्लास के हाफ ईयरली एग्जाम में गणित में मेरे 70 में से सिर्फ 52 नंबर आए। आने तो 70 ही चाहिए थे। अब हमारे प्रिंसिपल साहब श्री भारत भूषण जी का बुलावा तो आना ही था। उन्होंने कहा कि महाराज ये क्या है, गणित में 70 में से 52 नंबर!! लेकिन तुरंत मेरे मुँह से बड़े शांत अदाज़ में यह डायलॉग निकला, “सर आप चिंता मत करो, बोर्ड के एग्जाम में मेरे 50 में से 50 नंबर आएंगे“। आत्म विश्वास से भरा मेरा जवाब सुनकर वो बस मुस्कुराए। वह कुछ बोल नहीं सके। वो सब जानते थे, कौन कितने पानी में है। वह अपने हर स्टूडेंट्स पर पैनी नजर रखते थे। कोई गलती करे तो डांटते भी थे। अच्छा काम करे तो प्रोत्साहित भी भरपूर करते थे। किसी भी टेस्ट या एग्जाम में किसी भी कोई स्टूडेंट के 75 प्रतिशत से अधिक मार्क्स लाता तो वह अपने सिगनेचर करके उसे बधाई पत्र देे थे। आखिर वह भारत भूषण गुप्ता थे।
    अब आई दसवीं बोर्ड की परीक्षा (मार्च, सन् 1966), मेरे एग्जाम का सेंटर हायर सेकंडरी स्कूल रामपुरा बाजार, कोटा में आया। एग्जाम में मेरी सीट एक बड़े हॉल में थी। उस दिन गणित का पेपर था, गणित में पहले एक ऑब्जेक्टिव पेपर (जिसमें हर प्रश्न के 4 ऑप्शन्स होते थे और एक सही होता था) दिया जाता था, जिसमें 24 प्रश्न होते थे और आधे घंटे में उसे सॉल्व करके देना होता था। मैंने सवालों के जवाब भरना शुरू किया, अट्ठारहवें सवाल पर मैं अटक गया। चारों में से एक भी ऑप्शन सही नहीं लग रहा था। मैं उस प्रश्न को छोड़कर आगे बढ़ गया। लगभग 15 मिनट में मैंने बाकी सारे प्रश्न कर लिए थे, अब मैंने उस प्रश्न को दोबारा ध्यान से पढ़ा, सीधा उलटा करके देखा, और मेरी ट्रांसपेरेंट नजर उस प्रश्न पर डाली तो दिखाई दिया कि अरे यह तो प्रश्न ही गलत है। मैंने तुरंत पूरे आत्मविश्वास से प्रश्न को पेन से काटकर सुधारा और सही जवाब भर दिया।
    फिर मैंने सोचा कि इस हॉल में जितने भी स्टूडेंट बैठे हैं, वो तो यह सब नहीं कर पाएंगे और सबका एक नंबर कट जाएगा। किसी में इतना दम नहीं था। इसलिए मैंने इनविजिलेटर को बुलाया और उन्हें सारी बात समझाई और कहा कि वे इस प्रश्न में सुधार करवा दें ताकि हॉल में बैठे अन्य स्टूडेंटेस इस प्रश्न को कर सकें। इनविजिलेटर महोदय ने मुझे घूरकर आश्चर्य से देखा, फिर 3 अन्य टीचर्स से सलाह-मशवरा किया और जब सभी को लगा कि मैं ठीक कह रहा हूँ, तो उन्होंने सारे स्टूडेंट्स के प्रश्न-पत्र में करेक्शन करवा दिया।
    जैसे ही एग्जाम खत्म हुए, मैं हमेशा की तरह गाँव में छुट्टिया मनाने पहुँच गया। किसी कारणवश बाबूजी और मां कोटा में ही थे। फिर जैसे ही दसवीं बोर्ड का रिजल्ट आया, पूरे राजस्थान की मेरिट लिस्ट मेरी छठी पोजीशन थी। बाबूजी नें तुरंत मुझे पोस्टकार्ड से यह सूचना दी (क्योंकि हमारे गांव में टेलीग्राफ ऑफिस या फोन नहीं था) और तुरंत कोटा बुलाया। उन दिनों पोस्टकार्ड एक दिन में मिल जाता था। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैंने तुरंत मेरे नानाजी श्री रामचंद्र जी मधुबन (मैं नाना जी से बहुत प्यार करता था) को एक पोस्टकार्ड भेजा, जिसमें मैंने लिखा कि बहारों फूल बरसाओ मेरे पोजीशन आई है। उन दिनों राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला की सूरज फिल्म का यह गीत (बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है) बहुत पॉपुलर हो रहा था। कोटा आते ही बाबूजी ने बधाई दी, मां बहुत खुश थी। स्कूल की मेगजीन में फोटो छपा, अखबार में फोटो छपा। और हाँ गणित में 50 में से 50 नंबर ही आए थे।
    हमारे स्कूल का जलवा ही अलग था, राजस्थान का नंबर वन स्कूल जो ठहरा। इसी साल हमारे स्कूल के गणित फैकल्टी के एक स्टूडेंट अशोक के हायर सेकंडरी एग्जाम में पूरे राजस्थान में फर्स्ट पोजीशन आई थी। हम सबका सिर गर्व से तना हुआ था। इसलिए बाबूजी और भारत भूषण जी दबे स्वर में कभी कभी कह जाते थे कि अगर मेरे भी फर्स्ट रैंक आती तो और अच्छा रहता। अगले वर्ष तो बस ओम को फर्स्ट रैंक लानी ही है। सबने मुझ पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया था। मैं कहता था कि मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ। 6 नंबर कितना शुभ है। यह वर्ष सन् 1966 है, मेरा जन्म दिन 6 अक्टूबर है और रैंक भी छठी आई है। लेकिन मेरी कौन सुनता। छठी रैंक प्राप्त होने के उपलक्ष में मुझे राजस्थान बोर्ड की तरफ से 22 रुपये महीने की स्कॉलरशिप अलग से प्राप्त हुई। साथ ही नेशनल स्कॉलरशिप मिलती ही थी।
    यह 56 साल पुराना संस्मरण है, लेकिन लगता है जैसे बस कल की ही बात हो, जिसकी एक-एक बात मुझे आज भी याद है। मैं यह तो मानता हूँ कि मैंने भी थोड़ी-बहुत पढ़ाई की होगी लेकिन इस सफलता का असली श्रेय तो मल्टीपरपज स्कूल, हमारे श्री भारत भूषण जी गुप्ता, मेरे पिता मेरे टीचर मेरे पथ-प्रदर्शक मेरे आदर्श श्री प्रभुलाल जी वर्मा और मेरे बायोलॉजी के टीचर परिहार साहब, हरि गोविंद जी (केमिस्ट्री के टीचर जो हमारे क्लास टीचर भी थे), ऐजाज़ साहब, और अन्य सभी टीचर्स (जिनका नाम अभी याद नहीं आ रहा है) को जाता है। मैं तो सिर्फ मिट्टी का एक ढेला था, उसे ढालकर इन्होंने ही उसे एक मूर्ति बनाई। उनके बिना यह सब नामुमकिन था। मैं उन सबको आज भी नमन करता हूँ। यह पोस्ट लिखते-लिखते मेरी आँखें नम हो गई हैं आंसू छलकने लगे हैं।

    1. उन दिनों एक और बात होती थी। हम गोरधनपुरा रहते थे और मैं पैदल ही स्कूल जाता था। हमारे साहब भारत भूषण जी गुप्ता स्टेशन से लेम्ब्रेटा स्कूटर से आते थे। कभी कभी वे मुझे रास्ते में मिल जाते थे, तो वे मुझे अपने स्कूटर पर पीछे बिठा लेते थे। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी। उनके साथ लेम्ब्रेटा स्कूटर पर पीछे बैठने में जो आनंद मिलता था, वो आज मर्सडीज़ में बैठने पर भी नहीं मिलता। आज ये पुराने संस्मरण याद आ गए, तो आपके साथ शेयर कर रहा हूँ।

  11. मेरी स्थूलता नियंत्रण की कहानी, सुनिए मेरी जुबानी…,

    Hard to believe...

    मैंने हाल ही में 16 किलो वजन कम किया है। इससे मेरे सभी मित्र, प्रशंसक और परिजन अचंभित हैं। कई लोग तो मुझे पहचान भी नहीं पा रहे हैं, क्योंकि वजन भी कम हुआ है और मैंने दाढ़ी भी रख ली है। सभी जानना चाहते हैं कि मैंने वजन कम करने के लिए क्या-क्या किया है और आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे है?
    दोस्तों, मेरा वजन बढ़कर 86 किलो हो गया था, जिसे कम करना जरूरी था। फिर हम 12 वर्ष बाद होने जा रहे बाहुबली महावीर भगवान के महामस्ताभिषेक में शामिल होने के लिए श्रवणबेलगोल, कर्नाटक गए। श्रवणबेलगोल बहुत पवित्र और धार्मिक स्थान है। पूरे विश्व से लाखों व्यक्ति इस मौके पर यहाँ आ रहे थे। 23 फरवरी, 2018 को वहाँ से लौटने के बाद मुझे लगा जैसे मेरे वजन कम करने का समय आ गया है। मैं आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर था। मन में दृढ़ निश्चय और तीव्र इच्छा शक्ति थी। फिर क्या था, मैंने मोर्निंग वाक शुरू कर दिया। शुरूआत में तो मैं 15-20 मिनट ही घूमता था, लेकिन 10-15 दिनों में तो मैं दो घंटे और फिर तीन घंटे रोज घूमने लगा। केलौरी इनटेक पर भी धीरे-धीरे ब्रेक लगाया। मैंने चाय, कॉफी, बाजार के सारे बेकरी प्रोडक्ट्स, मिठाइयाँ और नमकीन आदि छोड़ दिए। बाजार के कचौड़ी समोसे मैं पहले ही छोड़ चुका था। चाय-कॉफी छोड़ने के बाद मुझे लगा कि न तो ये चुस्ती-फुर्ती या ताजगी का अहसास करवाते हैं, न इनमें कोई नशा होता है। यहाँ तक कि इनको छोड़ने पर कोई विदड्रॉवल सिम्पटम्स भी नहीं होते। हां छोड़ने के बाद यह अफसोस जरूर हुआ कि मैं व्यर्थ ही ढेर सारी केलौरीज चाय-कॉफी के रूप में ले रहा था, जिसे आसानी से टाला जा सकता था।
    मैं रोज सुबह पौने चार बजे उठ जाता हूँ। पूरी उर्जा के साथ चार से सात बजे तक नॉन-स्टॉप घूमता हूँ। घूमकर आते ही आधा ग्लास सॉवरक्रॉट ज्यूस पीता हूँ। इससे मुझे दिनभर के लिए प्रोबायोटिक्स, विटामिन के-2, विटामिन-सी और बी ग्रुप के सारे विटामिन्स मिल जाते हैं। दिन भर दो-ढाई लीटर गुनगुना पानी पी लेता हूँ। नाश्ते में ज्यूस, सलाद, एक अलसी की रोटी या परांठा, सूप या रसीली सब्जी लेता हूँ। सारे रिफाइंड तेल बंद कर दिए हैं। थोड़ा सा कोल्ड-प्रेस्ड नारियल या सरसों के तेल प्रयोग करता हूँ। मेरी अधिकांश सब्जियां बिना फ्राई किए बनती हैं। तड़का लगाना और डीप-फ्राइंग भी लगभग बंद कर दिया है। हां, मैं रोज एक टेबलस्पून अलसी का कोल्ड-प्रेस्ड एक्स्ट्रा-वर्जन तेल सलाद, रोटी आदि के साथ नियमित लेता हूँ। लंच में फ्रूट्स, सलाद या थोड़ा सा सूप लेता हूँ। शाम को 6 बजे डिनर लेता हूँ। मेरे डिनर में अलसी की दो रोटी, एक कटोरी सब्जी, एक कटोरी दाल होती है।
    लगभग साढ़े तीन महीने में चमत्कार हो चुका था। मेरा वजन 16 किलो कम हो गया था। मुझे मेरे आत्मविश्वास और मेहनत का फल मिल चुका था। लेकिन मेरा यह रूटीन उसी तरह चल रहा है। इस दौरान 3-4 बार बाहर भी जाना पड़ा। बाहर जाते हैं तो घूमना बंद हो जाता है और खाने-पीने का रूटीन भी बिगड़ जाता है। परंतु आते ही जीवनचर्या को फिर से अनुशासित करना होता है।

  12. अलसी मैया बड़ी दयालु है, अपने भक्तों को चुटकियों में करोड़पति बना देती है। पढ़िए यह रोचक संस्मरण।

    कुछ सालों पहले पंखा, झोटवाड़ा जयपुर के मशहूर होम्योपेथी के डा. आनंद गौतम का फोन (9999572362) आया, उन्होंने मेरे लेख पढ़े थे। उन्होंने कहा कि जब भी मैं जयपुर जाऊँ तब मैं उनसे जरूर मिलूँ। इस घटना के 2-3 महीने बाद मैं जयपुर गया तो डा. आनंद गौतम से मिला। उस दिन उन्होंने मुझे वीणा जैन नाम की एक महिला से यह कहकर मिलवाया कि वह मेरी बहुत बड़ी प्रशंसिका है और अलसी का प्रचार प्रसार करती है। वह लगभग 45 साल की दुबली-पतली साधारण सी महिला थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। उसने मुझसे कहा कि उसे मेरी किताब अलसी महिमा की कुछ प्रतियां चाहिए। मैंने कहा कि मैं विद्याधर नगर में मेरी सिस्टर के यहाँ ठहरा हूँ, आप शाम को वहाँ आकर किताबें ले जाना। शाम को वह किताबें लेने आई और मुझसे कहा कि उसका घर पास ही है और मैं आपको एक चाय पिलाना चाहती हूँ। उसका प्रेम देखकर मैं मना नहीं कर सका और उसके घर चाय पीने चला गया। वीणा एक छोटे से कमरे में रहती थी। मैंने उससे पूछा कि उसका पति कहाँ है, उसका गुजारा कैसे होता है। उसने बताया कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है, उसके एक 22 साल की बेटी है जिसकी शादी हो चुकी है और उसके पास एक दूकान है जिससे उसे 800 रुपये का किराया मिल जाता है, बाकी बाजार से अलसी लाकर लोगों को बेच देती हूँ उसमें कुछ बच जाता है। मुझे उस पर बड़ी दया आई। फिर वह कभी कभी हमारी फोन कर बात हो जाती थी।

    इस घटना के 2-3 साल बाद मैंने जयपुर में अलसी पर एक सेमीनार रखा। तो मैंने डा. आनंद गौतम को भी फोन किया। वो कहने लगे कि वीणा को भी सेमीनार में बुलाओ। आपकी अलसी मैया ने उसे करोड़ पति बना दिया है। फिर मैंने वीणा को फोन लगाया, सेमीनार के लिए निमंत्रण दिया और यह भी पूछा कि आपको मैया ने कैसे करोड़ पति बनाया। अब आगे की बात उसी के शब्दों में सुनिए।

    एक बार मैं किसी रिश्तेदार की शादी के फंक्शन में गई, वहाँ भी मैं लोगों को अलसी के बारे में बता रही थी। उस फंक्शन में मेरे मामाजी भी अपने किसी दोस्त के साथ आए थे। वो बीकानेर के रहने वाले थे। थोड़ी देर बाद मेरे मामा जी ने मुझे उनके दोस्त से मिलवाया और कहा कि ये मेरे दोस्त हैं, इनकी पत्नी का देहांत हो गया है और ये तुझसे शादी करना चाह रहे हैं, तुम्हारा क्या कहना है। यह सुन कर मेरे तो होश ही उड़ गए, मैं घबरा गई। मामा जी ने कहा कि तुम शांति से 8-10 दिन सोच लो और फिर तसल्ली से जवाब देना। कोई दिक्कत नहीं है। मैंने खूब सोचा, मेरी फ्रैंड्स से भी डिसकस किया और 10 दिन बाद हाँ में जवाब दे दिया।

    फिर 16 दिन बाद हमारी शादी हो गई। एक ही झटके में अलसी मैया ने मझे सब कुछ दे दिया। मुझे बेटे बेटियां, पोते पोतियां, भरा-पूरा परिवार और प्यार करने वाला पति मिल गया। ये मेरे लिए खूब कपड़े, जेवर लेकर आते हैं, मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। मैं कहती हूँ कि मुझे सिर्फ आपका प्यार चाहिए और मुझे कुछ नहीं चाहिए।

    6 महीने पहले ये रिटायर हुए है, रिटायरमेंट की पार्टी में इनके साथ स्टेज बैठना मुझ जैसी गरीब औरत के लिए बहुत बड़ी बात थी। वो मेरी जिंदगी के सबसे हंसीन लम्हे थे। डा. साहब आपको पता है वीणा के पति राजस्थान के इरिगेशन डिपार्टमेंट में चीफ इंजिनियर के पद से रिटायर हुए हैं। (चीफ इंजिनियर पूरे राजस्थान में एक ही होता है और यह डिपार्टमेंट की सबसे बड़ी पोस्ट होती है) ऐसी है हमारी बड़े दिल वाली अलसी मैया जो दुर्गा का साक्षात पाचवां स्वरूप है।

    Alsi Maa Ki Arti (Goddess Linseed Prayer)

  13. अनिल पॉल जी की यादें ….. अलसी वार्ता
    अनिल पॉल जी के आकस्मिक निधन की सूचना से मेरे हृदय को तीव्र आघात पहुँचा हैं, मेरी आँखों के आगे से अनिल पॉल जी की सूरत नहीं हट रही हैं। उनकी सौम्य ममता मुझे देख कर मुस्कुरा रही हैं।
    मृत्यु पर किसी का वश नहीं चला हैं, क्योंकि यह एक कटु सत्य हैं कि जो इस संसार में आया हैं, उसे एक दिन यहाँ से जाना ही हैं। अनिलजी की मृत्यु हमारे लिए अपूरणीय क्षति हैं। भगवान उनकी दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
    दोस्तों, 2010 उन्होंने आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दिव्य भोजन अलसी पर मेरा यह इंटरव्यु किया था। यह 2 पार्ट में है। यह वह दौर था जब मेरा अलसी पर लेख निरोगधाम में पब्लिश हुआ था, जो सुपर वायरल हुआ और आज तक वायरल है। पहली बार लोगों को महान अलसी के गुणों के बारे में पता चला था, पहली बार मैंने लोगों को अलसी की सही मात्रा बताई थी। पहली बार पूरा भारत सही मात्रा में अलसी खाने लगा था, एंजोय करने लगा था। लोगों को अलसी खाने से बहुत फायदे हो रहे थे, लोग रोगमुक्त हो रहे थे, लोगों के जीवन बदल रहे थे और सुबह से लेकर रात तक लोग मुझे फोन कर रहे थे। एक फोन पूरा होने के पहले दूसरी घंटी बज जाती थी। मैं बहुत ऊर्जावान, उत्साहित और उत्तेजित था, मेरा मिशन पूरा हो रहा था। मुझे श्री जयंती जैन, श्री सुरेश ताम्रकर, डॉ. मनोहर भंडारी, श्री अनिल पॉल, डॉ. प्रकाश छाजेड़, श्री विजय सेठ जैसे कई महान मित्र मिल गए थे। इस पूरी अलसी चेतना में मेरी पत्नी उषा हर कदम पर मेरे साथ थी, उनके अलसी भोग लड्डू भी पूरे भारत में विख्यात हो गए थे। मेरी एक शानदार टीम बन चुकी थी। इसलिए अलसी की इस वार्ता में आपको मेरी अलग ही ऊर्जा और जोश देखने को मिलेगा। इसे नहीं देखना एक बड़ी हानि साबित होगा।
    इस इंटरव्यु में इस वीडियों में अलसी की चेतना यात्रा का भी थोड़ा जिक्र है, जिसका आगाज़ उदयपुर के श्री जयंती जैन साहब रिटायर्ड सेल्स टेक्स कमिश्नर के संस्थान स्वास्थ्य सेतु से ही हुआ था। यह उनका ही दिया हुआ जोश था, जिसने कई महीनों तक हमारे अलसी रथ को ब्रेक नहीं लगने दिया….
    आपका
    डॉ ओ पी वर्मा 🌹💐💐🙏🏻🙏🙏💐💐
    अलसी पर अनिल पॉल जी के साथ एक यादगार वीडियो पार्ट-1
    अलसी पर अनिल पॉल जी के साथ एक यादगार वीडियो पार्ट-2

  14. Flax seed Cookies
    Ingredients
    • 200g Ghee,
    • 100g sugar
    • 200g plain flour
    • 75g Flax seed powder
    • 1 tsp cinnamon (optional)
    • 25g kishmish (optional)
    Method
    STEP 1
    Heat the oven to 190C/170C. Cream the butter in a large bowl with a wooden spoon or in a stand mixer until it is soft. Add the sugar and keep beating until the mixture is light and fluffy. Sift in the flour and add the optional ingredients, if you’re using them. Bring the mixture together with your hands in a figure-of-eight motion until it forms a dough. You can freeze the dough at this point.
    STEP 2
    Roll the dough into walnut-sized balls and place them slightly apart from each other on a baking sheet (you don’t need to butter or line it). Flatten the balls a little with the palm of your hand and bake them in the oven for around 10-12 mins until they are golden brown and slightly firm on top. Leave the cookies on a cooling rack for around 15 mins before serving.

  15. wheat

    यारों मैं गेहूं हूँ
    दोस्तों मैं अलसी को छोड़ कर अलसी के चक्कर में पड़ गया था। बहुत कोशिश भी की परंतु पूरे घरवालों तक को भी अलसी नहीं खिला सका। फिर भी पूरे जमाने में अलसी के भाव बढ़ाने का इल्जाम मुझ पर लगा। इसलिए मैं पटरी पर आने की कोशिश कर रहा हूँ…
    लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा
    दोस्तों मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज
    मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज
    अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में
    टाटा, बिरला दौड़े आते हैं इक चिट्ठी में
    आधी दुनिया का मैं ही मात्र निवाला हूँ
    रागी, अरहर, मूंग, मसूर का घरवाला हूँ
    क्या बाजरा, क्या चावल व मक्का क्या रागी
    चने, मूंग, ज्वार, क्या जौ, मैं सब पर हूँ भारी
    घी में तलो, चाशनी में मिला दो, तो जलेबी हूँ
    गुलाब जामुन हूँ, लड्डू हूँ, सूडान का बसबोसा हूँ
    पेशावर की नान, मिलानो का पीज्जा हूँ
    मुंबई का रगड़ा पाव, काहिरा का ख़ुबजा हूँ
    पेस्ट्री हूँ, कुकी, केक, ब्रेड और मैं ही पाव हूँ
    किसी से भी पूछ लो, पूरी दुनिया का नवाब हूँ
    भले सेहत की दृष्टि से, विटामिन मिनरल में जीरो हूँ
    पर बेकरी और हलवाइयों के लिए तो हीरो हूँ
    जनेटिकली मोडीफाइड हूँ, खलनायक हूँ, गोरा हूँ
    लजीज हूँ और पूरी बिरादरी का अजीज हूँ
    विटामिन को अलग बेचूँ फाइबर दूं पेटसफा को
    दे दूँ बचा हुआ कचरा मॉल के मालिकों को
    हार्ट को ब्लॉक कर दूँ, डायबिटीज को कर दूँ स्टार्ट
    आलिया भट्ट को फुलाकर भारती बना दूँ स्मार्ट
    जोड़ों को जाम कर दूँ, डिप्रेशन की भी शुरूआत
    चुटकियों में लोगों का पेट खराब कर दूँ रातों रात
    गरीब की सेहत को पल भर में बदहाल कर दूँ
    अच्छे अच्छों को दो मिनट में बीमार कर दूँ
    चाहे रोम हो या पेरिस, मेरा हर जगह बजता है डंका
    दिल्ली हो, कराची हो, लंदन हो या ढाका
    लोगों की सेहत पर भी डाल देता हूँ डाका
    मुझसे डरते हैं सारे जग के ताऊ और काका

  16. दोस्तों,
    मैं आपके बढ़िया बढ़िया पोस्ट और चुटकुले पढ़ता हूँ जो मन को गुदगुदाते हैं हंसाते हैं, लेकिन इसके बदले मैं आपको बोर करता हूँ, अलसी को असली साबित करने की कोशिश करता हूँ, मजबूर हूँ मैं भी क्या करूँ मेरे पास जो है वहीं तो देता हूँ।
    लेकिन कल मैंने हमारे गुलाब की चलित चपल दूरभाष यंत्र से तस्वीर निकाली तो उसे देख कर मानस पटल पर कुछ शब्द उभरने लगे, जो बाहर आकर आपके सामने खड़े हैं…

    दोस्तों,
    इसे भूल कर भी फूल मत समझना
    यह ठाकुर परिवार की मां, बहन, बुआ, बेटी का अक्स है
    उसका चेहरा रूमाली है
    ना यह पुलाव खयाली है
    यह ममता की थाली है
    चिरौंजी के हलवे की प्याली है
    यह थिरकते जीवन का साज-ए-तरन्नुम है
    खुशियां बिखेरता जलवा-ए-तबस्सुम है
    जीवन को महकाता गुलाब है
    नहीं इसका कोई जवाब है
    कभी छेड़ता है, कभी गुदगुदाता है
    कभी टोकता है तो कभी हंसाता है
    कभी त्याग की मूरत है
    कभी प्यारी सी सूरत है
    भाभी है, बहू है और भतीजी भोली भाली है
    कभी चंचल शोख हसीना मतवाली है
    जीवन भर साथ निभाने की सुपारी है
    यह सचमुच मुहब्बत की तिजोरी है
    यह है इसीलिए हम हैं...

    ओम

  17. अमृता

    अलसी के तेल का बहुत बड़ा चमत्कार

    दोस्तों यह अमृता साहू है इसकी उम्र साढ़े पांच साल है, यह सही मायने में फ्लेक्स गर्ल है। इसके फादर अजय साहू और मम्मी माही पुणे में रहते हैं और मेरे निरंतर संपर्क में रहते हैं। जब माही प्रेग्नेंट थी तब मैंने उसे कहा था कि तुम अलसी के तेल का सेवन करो ताकि तुम्हारा चाइल्ड बहुत हैल्दी और बुद्धिमान पैदा हो और उसने मेरी बात को माना।
    जब यह पैदा हुई थी तब इसके बाल देख कर पूरे हॉस्पिटल वाले दंग थे कि इसके बाल कितने घने कितने काले हैं। मैंने माही को तब कहा था कि बहुत बुद्धिमान लड़की बनने वाली है और आज माही ने मुझे एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें आप देखेंगे कि अमृता मैथ्स के सवालों का कितनी जल्दी जल्दी सही जवाब दे रही है। यह देखकर आप भी दंग रह जाएंगे। यह मैया के तेल के अलसी के चमत्कार हैं।

  18. Suresh Tamrkar

    दोस्तों, हमारे पड़ोस में एक धमीजा जी सर रहते हैं, जो आई.एल. फैक्ट्री से रिटायर हुए हैं। वह एक जिम भी चलाते थे। मैं भी उनके जिम में जाता था। कई सालों पहले मैंने उनको मेरी अलसी महिमा भैंट की थी। उनके यहाँ विज्ञान नगर का एक युवक वर्क आउट करने आता था, वह उसे पढ़ने के लिए घर ले गया, जो उसके फादर ने भी पढ़ी।
    एक दिन शाम को विज्ञान नगर से किसी ने मुझे फोन किया और कहा कि वह मुझसे मिलना चाहते हैं मैंने कहा कल मेरे वेलनेस सैंटर आ जाएं तब उन्होंने कहा कि वह अभी आना चाहते हैं।
    तो मैंने उनको घर पर बुला लिया। उन्होंने कहा कि मेरा बच्चा धमीजा जी से आपकी अलसी महिमा पढ़ने के लिए लेकर गया था। मैंने वह किताब पढ़ी, आपने बहुत अच्छी पुस्तक लिखी है और आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मैं उनको धन्यवाद दे ही रहा था कि वह अचानक खड़े हो गए, मैं असमंजस में पड़ गया तभी उन्होंने जेब में हाथ डाला और ₹ 10000 निकालकर टेबल पर रखें, और कहा कि मेरी तरफ से यह छोटी सी भेंट स्वीकार कीजिए। तो दोस्तों यह अलसी महिमा का ही जलवा है कि जो भी उस पुस्तक को पड़ता है उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगता है।
    जब जब भी अलसी महिमा की चर्चा होती है, मैं सुरेश ताम्रकार जी के नमन करता हूं क्योंकि उन्होंने ही उस पुस्तक का संपादन और मुद्रण किया।

  19. small

    पिसनहारी के प्रकाश जैन संधिवात से मुक्त हुए
    अलसी के एक और चमत्कार से मेरे मित्र डा. मनोहर भंडारी ने विगत दिनों साक्षात्कार कराया। जबलपुर-नागपुर रोड पर जबलपुर से पाँच किलो मीटर दूर तीन सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी पर बना एक जैन तीर्थ है, पिसनहारी मांडिया। चार सौ सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहुँचना पड़ता है। डा. भंडारी जबलपुर मेडिकल कालेज में प्राध्यापक हैं और अक्सर पिसनहारी जाते रहते हैं। वहाँ एक मुनीमजी हैं जिनका नाम प्रकाश जैन है, जिनके घुटनों में दर्द रहता था। एक दिन वे बोले डाक्टर साहब कोई दवा बताइए। सीढ़ियाँ चढ़ने में बड़ी तकलीफ होती है। डा. भंडारी ने उन्हें अलसी खाने की सलाह दी। मुनीमजी ने दूसरे ही दिन से अलसी का नियमित सेवन शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद जब डाक्टर भंडारी पिसनहारी मांडिया गए तो मुनीमजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ बताया कि डाक्टर सा. आपका अलसी वाला नुस्खा तो बड़ा कारगर रहा। आपके बताए अनुसार तीस ग्राम अलसी रोज पीस कर खाता हूँ। घुटनों का दर्द गायब हो चुका है। चार सौ सीढ़ियाँ रोज तीन बार चढ़ता हूँ। अब कोई कष्ट नहीं होता जबकि पहले 1500 रुपये महीने की दवा खाने के बाद भी ज्यादा फायदा नहीं था और दो बार ऊपर मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने में भी तकलीफ होती थी। अब मैं कोई दवा नहीं खा रहा हूँ।

    दोस्तों जबलपुर के पास पहाड़ी पर बना जैन तीर्थ पिसनहारी मांडिया दिगंबर जैन पंथ का एक जाना-माना तीर्थ स्थल है। यह जैन मंदिर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज के पास ही स्थित है। अपने वास्तुशिल्प और सुंदरता के लिए जाना जाने वाला यह 500 साल पुराना पर्यटन स्थल सर्वाधिक घूमे जाने वाले जगहों में से एक है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण एक गरीब महिला द्वारा एक पवित्र जैन संन्यासी की वाणी सुनने के बाद किया गया था। उस संन्यासी की वाणी से उस महिला को विशाल मंदिर बनाने की प्रेरणा मिली। इस मंदिर में कई पत्थर है, जिसे उसी महिला ने रखा था। उस महिला के समर्पण और संकल्प को प्रदर्शित करने के लिए वे पत्थर आज भी उसी स्थान पर रखे हुए हैं। उस महिला को श्रद्धांजली देने के लिए इस मंदिर का नाम पिसनहारी की मढ़िया रखा गया। इसका अर्थ होता है- एक ऐसी महिला जो हाथों से चक्की में आटा पीस रही है। आसपास के खूबसूरत दृश्यों से घिरे इस मंदिर में हर साल सैकड़ों श्रद्धालू आते हैं।

  20. अबोहर की अचला कालरा को पंख लगे
    आदरणीय डॉ. ओ.पी.वर्मा जी,
    सादर नमस्कार।
    मेरी उम्र 60 वर्ष है। मुझे घुटनों के दर्द की गंभीर समस्या थी। मुझे घर में चलने-फिरने में बहुत दिक्कत होती थी और मैं सीढ़ियां भी नहीं चढ़ पाती थी। घर से बाहर निकलना तो संभव ही नहीं था। मैंने निरोगधाम में आपका का लेख पढ़ कर अलसी की रोटी खाना शुरू किया। मुझे कई लोगों ने कहा कि अलसी खाने से कुछ नहीं होगा और मुझे गुमराह करने की बहुत कौशिश की लेकिन मैंने अलसी खाना नहीं छोड़ा। तीन-चार महिने बाद अलसी का सेवन करने से मुझे कुछ कुछ आराम आना शुरू हुआ और चलने में भी कम दिक्कत होने लगी। अलसी की रोटी खाते हुए अब मुझे एक साल हो गया है । अब मेरे घुटनों में दर्द लगभग खत्म हो गया है और मैं सीढ़ियां भी चढ़ लेती हूँ। अब मैं एक दो किलोमीटर रोज घूमती हूँ। अलसी खाने से मेरे पति की डायबिटीज में भी बहुत फायदा हुआ है। मैं टाइम पास करने के मकसद से एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने भी जाने लगी हूँ और तनख्वाह भी नहीं लेती हूँ। मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मेरे नये पंख लग गये हो। आज मैं उड़ना चाहती हूँ। मैं सबको कहना चाहती हूँ कि अलसी से बहुत फायदा होता है। और सारा दिन आप में काम करने कि ताकत आ जाती है।
    अचला कालरा
    फोन – 1634-232932
    Street No. 7, Chook No. 1
    Old Suraj Nagri
    Abohar 152116 Panjab

  21. इस फोटो की भी कहानी है। उस वक्त मेरी उम्र 20 साल थी। हम फर्स्ट एम बी बी एस कर चुके थे। इस फोटो में मैंने मेरा पहला सूट और पहली टाई पहनी है। यह फोटो उदयपुर के श्रीमाली स्टूडियो ने खींचा था जो हमारे मेडीकल कॉलेज से बहुत दूर था। वैसे तो हमारे कॉलेज का फोटोग्राफर उदयपुर के बापू बाजार में स्थित रामा स्टूडियो था। परंतु मैं एक बढ़िया फोटो खिंचवाना चाहता था, मेरे एक सीनियर उमेश सिंघई ने कहा कि यार तू श्रीमाली स्टूडियो से फोटो खिंचवा, वो बढ़िया फोटो खींचता है।
    बस फिर क्या था, हम श्रीमाल स्टूडियो गए और फोटो खिंचवाया। 5 दिन बाद उसने प्रूफ देखने के लिए बुलवाया, प्रूफ फाइनल होने के 4 दिन बाद उसने फोटो और एन्लार्जमेंट बना कर दिए। फिर उसे शानदार और मंहगे फोटो फ्रेम में लगाकर टेबल पर सजाया गया। फोटो इतना बढ़िया था कि सभी फ्रैंड्स और सीनियर्स को बहुत पसंद आया। उसके बाद तो हमारे सभी साथी श्रीमाली स्टूडियो में फोटो खिंचवाने लगे। यही फोटो हमने लड़की वालों को भी भेजा था और पहली बार ही सीन सैट हो गया।
    — at Shrimali Studio on MB college Road Udaipur

  22. श्री ओ..पी. मित्तल जो ढाई क्विंटल अलसी लोगों को मुफ्त में बांट चुके हैं।

    जयपुर के रमेश मेडतवाल द्वारा प्रकाशित और वितरित सुपर फास्ट इलाज पुस्तिका (इस पुस्तक में अलसी से संबंधित ढ़ेर सारी जानकारी दी गई है) को भैंट कर चुके हैं। डॉ. इंडिया अंग्रेजी की पत्रिका है जिसमें अगली बार अंग्रेजी में मेरा अलसी का लेख प्रकाशित होने जा रहा है। इन्होंने अभी से इस पत्रिका की 15 प्रतियों का आर्डर कर दिया है।

    अमन आदिल जो रायपुर रहते हैं, पूरे जोश में हैं और पूरे छत्तीसगढ़ में अलसी की अलख जगाने का बीड़ा उठा चुके हैं। इनकी गतिविधियां जल्दी ही आपसे साझा करूँगा। इनकी फेसबुक आई डी http://www.facebook.com/AMANAKANSHA हैं।

  23. उदयपुर की विश्व विख्यात संस्था शिक्षांतर में अलसी पर विशाल सेमीनार

    Udaipur Seminar


    दोस्तों, दिनांक 12.3.13 को उदयपुर की विश्व विख्यात संस्था शिक्षांतर में अलसी पर विशाल सेमीनार आयोजित किया गया, जो 2 घंटे तक चला। इस सेमीनार में डॉ. ओ.पी.वर्मा ने अलसी के चमत्कारों पर विस्तार से चर्चा की। साथ ही इस सेमीनार में श्री जयंती जैन सेल्स टेक्स कमिश्नर, श्री अनिल पॉल ने भी अपने अनुभव साझा किये। समारोह के बाद सभी मेहमानों को जलपान करवाया। इस मौके पर अलसी के प्रति भावना, स्नेह और मुझसे मिलने की तमन्ना की खातिर 80 वर्षीय श्री सोहन लाल जी तिवारी नवगांव, छतरपुर म.प्र. (1000 किलोमीटर) से उदयपुर अकेले पधारे थे। हम उनका अभिवादन करते हैं, स्वागत करते हैं। शिक्षांतर के संचालक श्री मनीश जैन (he is in red shirt) को उस दिन आस्ट्रेलिया जाना था और वे अलसी की चर्चा में इतने तल्लीन हो गये थे कि उनकी पत्नि बार बार उन्हें बुला रही थी और कह रही थी कि जल्दी एयरपोर्ट निकल लो वर्ना फ्लाइट मिस हो जायेगी।

    हम हमारे परम मित्र श्री जयंती जैन साहब के घर पर एक सप्ताह रूके थे। पिछले दिनों छतरपुर म.प्र. के सोहनलाल तिवारी साहब ने मेरा अलसी पर लेख पढ़ा और बस रोज उनके फोन आने लगे। इस सेमीनार के दो दिन पहले सोहनलाल जी ने मुझे फोन किया और पूछा कि मैं कहां हूं। मैंने कहा मैं उदयपुर में हूं तो उन्होंने कहा कि मैं आपसे मिलने के लिए उदयपुर आ जाऊं मैंने कहा आ जाइए। आधे घंटे बाद उनका दोबारा फोन आया और कहा कि मैं कल शाम को उदयपुर पहुंच रहा हूं। बस उन्होंने आने की एक ही शर्त रखी थी कि हम उन्हें नाथद्वारा दर्शन जरूर करवाएंगे। दूसरे दिन शाम को हम उन्हें लेने स्टेशन पहुँचे, तभी तभी गाड़ी स्टेशन पर आकर रुकी ही थी। जैन साहब ने मुझसे पूछा कि वह कहां हैं क्या आपको दिखाई दे रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं उन्हें फोन लगाता हूं क्योंकि मैं उनसे फेस टू फेस पहली बार मिलूंगा। जयंती जैन साहब हंसने लगे कि आप उनसे पहली बार मिल रहे हो और आपका परिचय सिर्फ 15 दिन पुराना है और वह 1000 किलोमीटर दूर से सिर्फ आपसे मिलने के लिए आ रहे हैं, यह तो उनका असीम प्यार है। फिर मैंने उन्हें फोन लगाया और तभी वे छड़ी लेकर ट्रेन से उतर रहे थे और उनके साथ उनका एक नौकर भी था। हम सब मिले और बहुत सारी बातें हुई अच्छी तरह परिचय हुआ। 2 दिन बाद अनिल पाल जी जयपुर के लिए रवाना हो गए और सोहनलाल जी मेरे साथ कोटा आ गए। अगले दिन उनके नौकर के पास घर से फोन आया कि उसकी मां बीमार है, इसलिए उसे तुरंत छतरपुर भेजना पड़ा। सोहनलाल जी 2 दिन मेरे साथ कोटा में रुके। फिर मैंने उन्हें जयपुर की ट्रेन में बिठा दिया। अनिल पाल जी को मैंने फोन कर दिया था कि वह उन्हें रिसीव करने स्टेशन पर आ जाए और एक-दो दिन जब तक उनकी इच्छा हो वह जयपुर में रुके और फिर उन्हें छतरपुर की ट्रेन में बैठा दिया जाए। चित्र में वे सफेद कुर्ता पाजामा पहन कर छड़ी लेकर कुर्सी पर बैठे हैं। आप भी उन्हें नमन करें और उनसे प्रेरणा लें। हम आपके संदेश उन तक पहुँचा देंगे।



  24. जयपुर में सेमीनार

    दिनांक 4.3.13 को शाम 5 बज कर 10 मिनट पर दूरदर्शन जयपुर पर चौपाल में अलसी की सफल वार्ता के बाद दिनांक 5.3.13 को जयपुर के श्री रमेश मेडतवाल के घर पर अलसी पर विशाल सेमीनार आयोजित किया गया, जो 3 घंटे तक चला। इस सेमीनार में डॉ. ओ.पी.वर्मा ने अलसी के चमत्कारों पर विस्तार से चर्चा की। साथ ही इस सेमीनार में डॉ. बी.बी.जाजू, डॉ आनंद गौतम, श्री ओम प्रकाश गंगवाल, श्री अनिल पॉल, श्री विजय सेठ, डॉ. जोशी, डॉ. गजेंद्र सिंह, डॉ. प्रजापति (डॉ. इंडिया के संपादक) ने भी अपने अनुभव साझा किये। समारोह के बाद सभी मेहमानों को श्री रमेश मेडतवाल ने एक शानदार रेस्टोरोंट में लजीज डिनर करवाया।

  25. एक बार एक सज्जन का फोन आया कि उन्हें अहा जिंदगी में प्रकाशित यह लेख इतना अच्छा लगा कि इन्होंने अहा जिंदगी के इस अंक की 30 प्रतियां और 30 किलों अलसी खरीद ली है और इन्हें ये अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भेंट कर रहे हैं।
    एक बार मुंबई के बहुत बड़े उद्योगपति केशवलाल आर शाह ने मुझे फोन किया और कहा कि मैं 3 साल से रोज एक चम्मच अलसी खा रहा था और मुझे कोई फायदा नहीं हुआ फिर आपका लेख पढ़कर 30 ग्राम अलसी काना शुरू किया और मुझे तीसरे दिन ही बहुत फायदा लगने लगा। 10-15 दिन की जद्दोजहद के बाद इनको मेरा फोन नंबर मिला तब इन्होंने मुझे फोन किया। और फिर 7-8 महीने तक तो ये मुझे रोज फोन करते और रोज नया सवाल पूछते। मुझे तो एसा लगता था जैसे इनको अलसी पर पी.एच.डी. करनी है। इनका एक खास वाक्य था जो ये रोज बोलते थे। अगर आपका बिना अस्पताल जाए मरना है तो रामदेव जी का योगा करो, रोज सैंधा नमक वापरौ और ओ.पी.वर्मा की 30 ग्राम अलसी खाओ।

  26. अजमेर के एक रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉ ओ.पी.टंडन साहब उम्र 76 वर्ष की पत्नि का फोन आया। उन्होंने अलसी के लेख की 45 मिनट तक तारीफ की फिर डॉ टंडन से बात करवाई, उन्होंने भी मझे बहुत आशीर्वीद दिया। तबसे लेकर आजतक दीवाली और न्यू ईयर पर ये मुझे जरूर फोन करते हैं। 4 जनवरी 2013 को डॉ टंडन का फोन आया था और नये साल की बधाई देने के बाद ये बोले कि यार वर्मा अलसी खाने से मेरे सिर के सारे बाल काले हो गए हैं। यह सुनकर मैं खुद अचंभित था।
    कुछ ही दिनों बाद जयपुर की एक प्रशंसिका सरोज सोनी नें मुझे फोन करके बताया कि मेरे भैया ने अपने एक ज्वेलर दोस्त को (46 वर्ष) डायबिटीज के लिए अलसी खाने की सलाह दी। तो 15-20 दिनों बाद उनकी मूँछें काली होनी शुरू हो गई।
    एक बार सागर विश्विद्यालय के एम.बी.ए. कॉलेज के प्रिंसिपल ठाकुर यशवंत सिंह के आग्रह पर एक लेक्चर दिया। अलसी पर लेक्चर दो घंटे चला। उनके स्टूडेंट्स ने लेक्चर की बहुत तारीफें की और कहने लगे कि हम इस कॉलेज में 2 साल से पढ़ रहे हैं, लेकिन इतना बढ़िया लेक्चर आजतक नहीं हुआ। स्टूडेंट्स के खास आग्रह पर 1 महींने बाद फिर एक लेक्चर दिया।

    Budwig Wellness
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    2 years ago
    एक बार एक सज्जन का फोन आया कि उन्हें अहा जिंदगी में प्रकाशित यह लेख इतना अच्छा लगा कि इन्होंने अहा जिंदगी के इस अंक की 30 प्रतियां और 30 किलों अलसी खरीद ली है और इन्हें ये अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भेंट कर रहे हैं।
    एक बार मुंबई के बहुत बड़े उद्योगपति केशवलाल आर शाह ने मुझे फोन किया और कहा कि मैं 3 साल से रोज एक चम्मच अलसी खा रहा था और मुझे कोई फायदा नहीं हुआ फिर आपका लेख पढ़कर 30 ग्राम अलसी काना शुरू किया और मुझे तीसरे दिन ही बहुत फायदा लगने लगा। 10-15 दिन की जद्दोजहद के बाद इनको मेरा फोन नंबर मिला तब इन्होंने मुझे फोन किया। और फिर 7-8 महीने तक तो ये मुझे रोज फोन करते और रोज नया सवाल पूछते। मुझे तो एसा लगता था जैसे इनको अलसी पर पी.एच.डी. करनी है। इनका एक खास वाक्य था जो ये रोज बोलते थे। अगर आपका बिना अस्पताल जाए मरना है तो रामदेव जी का योगा करो, रोज सैंधा नमक वापरौ और ओ.पी.वर्मा की 30 ग्राम अलसी खाओ।

  27. “Happy hormones”
    Hormones are chemicals produced by different glands across your body. They travel through the bloodstream, acting as messengers and playing a part in many bodily processes.

    One of these important functions? Helping regulate your mood.

    Certain hormones are known to help promote positive feelings, including happiness and pleasure.

    These “happy hormones” include:

    Dopamine. Also known as the “feel-good” hormone, dopamine is a hormone and neurotransmitter that’s an important part of your brain’s reward system. Dopamine is associated with pleasurable sensations, along with learning, memory, motor system function, and more.
    Serotonin. This hormone (and neurotransmitter) helps regulate your mood as well as your sleep, appetite, digestion, learning ability, and memory.
    Oxytocin. Often called the “love hormone,” oxytocin is essential for childbirth, breastfeeding, and strong parent-child bonding. This hormone can also help promote trust, empathy, and bonding in relationships, and oxytocin levels generally increase with physical affection like kissing, cuddling, and sex.
    Endorphins. Endorphins are your body’s natural pain reliever, which your body produces in response to stress or discomfort. Endorphin levels also tend to increase when you engage in reward-producing activities, such as eating, working out, or having sex.

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