पैंक्रियास या अग्न्याशय मानव शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, क्योंकि यह हमारे शरीर को मिलने वाली ऊर्जा की चाबी है। 19वीं सदी के आरंभ तक पैंक्रियास के वास्तविक काम के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था। इसकी खोज सर्वप्रथम हिरोफिलस (Herophilus) नामक ग्रीक सर्जन द्वारा की गयी थी। बाद में ही इस बात का पता चल पाया कि पैंनक्रियास से निकलने वाले जूस इंसान के जीवन और शरीर के लिए कितने अनिवार्य हैं। आज हम आपको पैंक्रियास की संरचना और कार्यों के बारे में बताएंगे क्योंकि शरीर का यह अंग ही हमारे शरीर की ऊर्जा और शक्ति को मुक्त करने के लिए जिम्मेदार है।

पैंक्रियास ग्रीक भाषा का शब्द है, Pan  इसमें पेन का अर्थ है “All (समस्त)” और Kreas का अर्थ है “flesh (मांसल)”, इस तरह Pancreas का अर्थ है “पूर्ण रूप से मांसल”।  पैंक्रियास पेट में ड्युडेनम का सिरहाना लगा कर स्पाइन पर बड़े आराम से लेटे हुए कॉमा के आकार की एक ग्रंथि है। स्टमक का निचला हिस्सा इस ग्रंथि के लिहाफ का काम करता है। पैंक्रियास मनुष्य के पाचन संस्थान की एक बड़ा ही महत्वपूर्ण ग्लैंड है जो पेट में आमाशय के पीछे स्थित होता है। यह रीढ़धारी प्राणियों में पैंक्रियेटिक ज्यूस बनाने वाली एक एग्जोक्राइन ग्लैंड है। इस ज्यूस में 5 एंझाइम्स होते हैं जो ड्युडेनम में जाकर भोजन पचाने का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त यह एंडोक्राइन सिस्टम ग्लैंड भी है जो शरीर के लिए आवश्यक इंसुलिन तथा कुछ अन्य हार्मोन बनाती है जिनका मुख्य कार्य ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य बनाए रखना है।

पैंक्रियास की संरचना

पैंक्रियास का रंग हल्का गुलाबी, आकार लगभग प्रिज्म जैसा, लंबाई छः इंच और वजन 50-85 ग्राम के बीच होता है। अनुप्रस्त काट (transverse section) में यह तिकोना दिखाई देता है, इसलिए इसके तीन सतहें और तीन किनारे होते हैं। पैंक्रियास को चार भागों में बांटा जा सकता है,  1- Head of Pancreas “सिर” 2- Neck of Pancreas “गर्दन” 3- Body of Pancreas “शरीर” और 4- Tail of Pancreas “पश्च अथवा पूँछ”। पैंक्रियास का सिर बड़ा होता है। ड्युडेनम छोटी आंत का पहला हिस्सा है, जो स्टमक से निकल कर इस ग्रंथि के सिर के तीन तरफ घूमता हुआ आगे बढ़ता है और जेजुनम में मिलता है। सिर के दो हिस्से होते हैं, एक तो मुख्य सिर और दूसरा हुक के आकार का अनसिनेट प्रोसेस है, जो दो प्रमुख रक्त वाहिकाओं सुपीरियर मीजेंट्रिक आर्टरी और वेन को लपेटते हुए पीछे की तरफ जाता है।    

 

सिर के बाद पैंक्रियास ऊपर और बांईं तरफ जाता है तथा पतला होने लगता है। इस शेष हिस्से को गर्दन, शरीर और पूंछ में विभाजित करते हैं। पूंछ स्पलीन को छूती हुई प्रतीत होती है। पैंक्रियास का सिर ड्युडेनम के घुमाव से घिरा रहता है। इन्फीरियर वीना केवा और लेफ्ट रीनल वेन सिर के पीछे से गुजरती है। अनसिनेट प्रोसेस सिर के निचले भाग का ही विस्तार है जो हुक की तरह सुपीरियर मीजेंट्रिक वाहिकाओं (आर्टरी और वेन) को लपेटते हुए एओर्टा के आगे तक पहुँचता है। कॉमन बाइल डक्ट पैंक्रियास के सिर के ऊपरी भाग में पीछे से प्रवेश करती है और “एंपुला ऑफ वेटर” से ठीक पहले मुख्य पैंक्रियेटिक डक्ट या “डक्ट ऑफ विरसंग” (duct of Wirsung) में विलय होती है और एंपुला डक्ट बनाती है जो ड्युडेनम के दूसरे हिस्से में पेपिला पर खुलती है। 

पैंक्रियास की गर्दन (जो पैंक्रियास के सिर और शरीर को जोड़ती है) के पीछे सुपीरियर मीजेंट्रिक वेन, स्पलीनिक वेन और पोर्टल वेन का संगम होता है। पैंक्रियास का शरीर और पूँछ एओर्टा और बाएं किडनी के आगे बाईं ओर ऊपर की तरफ जाता है। विदित रहे कि पैंक्रियास के पीछे से कोई वाहिका पोर्टल वेन में नहीं जाती। इसकी पूँछ स्पलीन के हाइलम के पास तक पहुँचती है। पैंक्रियास के शरीर और पूँछ की आगे की सतह के निचले हिस्से से ट्रांसवर्स मीजोकोलोन जुड़ा रहता है। पैंक्रियास का शरीर और पूँछ स्टमक के पीछे लेसर सेक (omental bursa) में अवस्थित रहता है।

पैंक्रियास की माइक्रोस्कोपिक संरचना

पैंक्रियास में दो तरह का ग्रंथियां होती है –

एग्जोक्राइन ग्लेंड

एग्जोक्राइन ग्लेंड पैंक्रियेटिक ज्यूस का स्त्राव करती हैं, जिसे वह पैंक्रियेटिक डक्ट या नली के द्वारा ड्युडेनम में पहुँचाती हैं। पैंक्रियास की फॉलीक्युलर इकाई को एसिनी कहते हैं। पैंक्रियास में अनगिनत एसिनी होती हैं, जो इस ग्रंथि का 99 प्रतिशत हिस्सा बनाती है। एसिनी में पिरेमिड के आकार की अनेक कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें एसिनर सेल्स कहते हैं। यह एसिनर सेल्स पाचन हेतु पैंक्रियेटिक ज्यूस बनाती हैं, जिसमें कई एंजाइम्स होते हैं, जिसे यह एसिनी के मध्य में अवस्थित नलिका में छोड़ती हैं। पैंक्रियेटिक ज्यूस पैंक्रियास के डक्टल सिस्टम से गुजरते हुए मुख्य पैंक्रियेटिक डक्ट द्वारा ड्युडेनम में पहुंचता है।   ड्युडेनम में “एस सेल्स” सीक्रिटिन बनाते हैं, जो पेनक्रियेटिक डक्ट्स को सोडियम बाईकार्बोनेट बनाने का आदेश देता है। सोडियम बाईकार्बोनेट का कार्य स्टमक से आए आंशिक रूप से पचे हुए अम्लीय भोजन (जिसे काइम कहते हैं) को क्षारीय बनाना है। ड्युडेनम में “आई सेल्स” भी होते हैं जो कॉलीसिस्टोकाइनिन का स्त्राव करते हैं। यह एसिटाइलकॉलीन (यह एक न्युरोट्रांसमीटर है, जिसे नर्व एंडिंग सीक्रीट करती हैं) के साथ मिलकर एसिनर सेल्स को डाइजेस्टिव एंजाइम्स बनाने का आदेश देता है। 

पेनक्रियेटिक ज्यूस

पैंक्रियास दिनभर में 1-1.5 लीटर पेनक्रियेटिक ज्यूस का स्त्राव करता है। इसका पीएच 7.5-8 यानि क्षारीय होता है। इसमें 98 प्रतिशत पानी और बाकी 2 प्रतिशत एंजाइम्स और नमक होता है।

अल्फा एमाइलेज एंजाइम – पेनक्रियेटिक ज्यूस में अल्फा एमाइलेज एंजाइम होता है जो भोजन में विद्यमान स्टार्च को माल्टोज नामक शर्करा में बदल देता है।

प्रोटिएज एंजाइम्स

पैंक्रियास में जो एंजाइम बनते हैं, वह निष्क्रिय अवस्था में रहते हैं, क्योंकि यदि वे सक्रिय अवस्था में होंगे तो वे पैंक्रियास के सेल्स को ही डाइजेस्ट करने लगेंगे। लेकिन जब ये एंजाइम ड्युडेनम में पहुँचते हैं तो वहां पर एंट्रोपेप्टाइडेज होते हैं जो ट्रिप्सिनोजन (निष्क्रिय अवस्था) को ट्रिप्सिन में बदल देते हैं। यह ट्रिप्सिन कीमोट्रिप्सिनोजन (निष्क्रिय अवस्था) को कीमोट्रिप्सिन में बदल देता है। ये दोनों एंडोपेप्टाइडेज श्रेणी में आते हैं अर्थात ये प्रोटीन की पेप्टाइड चेन को बीच में तोड़ते हैं।

दूसरी श्रेणी में प्रो-कार्बोक्सीपेप्टाइडेज और प्रो-अमीनोपेप्टाइडेज हैं जो लाइपेज की उपस्थिति में कार्बोक्सीपेप्टाइडेज और अमीनोपेप्टाइडेज के रूप में सक्रिय हो जाते हैं। ये एग्जोपेप्टाइडेज है जो ये प्रोटीन की पेप्टाइड चेन के सिरे को तोड़ेंगे। ये क्रमशः प्रोटीन की कार्बोक्सी और अमीनो रिंग पर काम करेंगे।

फैट को पचाने वाले एंजाइम्स

1- पैंक्रियेटिक लाइपेज ट्राइग्लीसराइड को डाईग्लीसराइड और मोनोग्लीसराइड में बदल देता है।
2- कॉलीस्ट्रेज कॉलेस्टेरोल का पाचन करता है।
3- फोस्फोलाइपेज फोस्फोलिपिड को पचाता है। उपरोक्त तीनों को स्टेप्सिन कहते हैं।
4- डीएनेज और आरएनेज डी.एन.ए. और आर.एन.ए. को पचाते हैं। ये न्युक्लिएज कहलाते हैं। 

पैंक्रियास – एक एंडोक्राइन ग्लेंड

पैंक्रियास में हार्मान बनाने वाली कुछ कोशिकाएँ होती हैं जो इस ग्रंथि का 1 प्रतिशत हिस्सा होती है। हार्मोन्स रक्त वाहिकाओं के द्वारा पूरे शरीर में पहुँचते हैं। ये कोशिकाएं एसिनी के बीच-बीच में समूह के रूप में अवस्थित रहती हैं। इन्हें “आइलेट्स ऑफ लेंगरहेन” कहते हैं। 1869 में लेंगरहेन नाम के एक वैज्ञानिक नें इन्हें पहचाना तथा इनका विस्तार से अध्ययन किया और इन्हें अपने नाम से परिभाषित किया । आइलेट्स ऑफ लेंगरहेन में 4 तरह की कोशिकाएं होती हैं जो निम्न नामों से जानी जाती हैं।
1- अल्फा सेल्स (15-25 प्रतिशत) ये आकार में सबसे बड़ी तथा विकसित होती है और बाहरी हिस्सें में पाई जाती हैं। अल्फा सेल्स ग्लुकागोन नाम का हार्मान बनाती हैं। इसकी खोज बेंटिंग और बैस्ट नाम के वैज्ञानिकों ने की थी। 
2- बीटा सेल्स (60-65 प्रतिशत) ये आइलेट्स ऑफ लेंगरहेन के मध्य भाग में पाई जाती हैं। बीटा सेल्स इंसुलिन नाम का हार्मान बनाती हैं। इसक खोज किमबेल और मेरलिन नाम के वैज्ञानिकों ने की थी। 
3- गामा डेल्टा सेल्स (10 प्रतिशत) सोमेटोस्टेटिन नाम का हार्मान बनाती हैं।
4- पी.पी. सेल्स “एफ सेल्स” (पेनक्रियेटिक पॉलीपेप्टाइड सेल्स) की खोज कुछ वर्षों पहले हुई है। ये आंत में भोजन के अवशोषण में मदद करती हैं।

ग्लुकागोन

1- इसे हाइपर-ग्लाइसीमिक फेक्टर कहते हैं, क्योंकि यह ब्लड शुगर का स्तर बढ़ाता है।
2- ग्लुकागोन 29 अमानो एसिड की पॉली-पेप्टाइड चेन से बनता है।
3- यह इंसुलिन के विपरीत काम करता है।
4- जब रक्त में शुगर का स्तर कम होता है तब ग्लुकागोन का स्त्राव होता है।
5- यह लीवर को अमीनो एसिड से शुगर में परिवर्तित करने के लिए प्रेरित करता है। इस क्रिया को “ग्लुकोनियोजनेसिस” कहते हैं।
6- लीवर और मांस-पेशी में शुगर ग्लाईकोजन के रूप में संचित रहती है। ग्लुकागोन ग्लाईकोजन को पुनः शुगर में परिवर्तित करने के लिए लीवर को प्रेरित करता है। इस क्रिया को “ग्लाईकोजिनोलाइसिस” कहते हैं।
7- यह लिपिड को फैटी टिश्यु में परिवर्तित करने के लिए प्रेरित करता है। 

 

इंसुलिन

1- बीटा सेल्स इंसुलिन का निर्माण करती हैं। इसका मॉलीक्युलर वेट 6000 होता है। ए.एफ.सेंगर नाम के वैज्ञानिक ने पहली बार इसकी आणविक संरचना को पहचाना और इस हार्मोन को इंसुलिन नाम दिया।
2- इंसुलिन वह पहला प्रोटीन है, जिसे कृत्रिम रूप से क्रिस्टलाइज्ड रूप में तैयार किया गया। सान नाम के वैज्ञानिक ने पहली बार ह्युमन इंसुलिन तैयार किया।
3- इसके एक अणु में 51 अमीनो एसिड होते हैं और अमीनो एसिड की दो चेन (चेन ए और चेन बी) होती है जो डाइसल्फाइड बांड से जुड़ी रहती है। चेन ए में 21 और चेन बी में 30 अमीनो एसिड होते हैं।
4- यह ग्लुकागोन के विपरीत काम करता है।
5- इंसुलिन का स्त्राव कम होने या इंसुलिन के अप्रभावी होने पर डायबिटीज रोग हो जाता है।
कार्य
1- इंसुलिन लीवर और मांस-पेशी में अमीनो एसिड की खेप भेज कर प्रोटीन के निर्माण को प्रोत्साहित करता है।
2- यह लिपोजिनेसिस को प्रेरित करता है और लिपोलाइसिस को संदमित (Inhibit) करता है।
3- इंसुलिन कीटोन बॉडीज के निर्माण को रोकता है।
4- यह “ग्लुकोनियोजनेसिस” को रोकता है।
5- यह ग्लाइकोजिनेसिस को प्रेरित करता है।
6- ग्लाईकोजिनोलाइसिस संदमित (Inhibit) करता है।
7- इंसुलिन ग्लुकोज के ऑक्सीडेशन को प्रेरित कर ब्लड शुगर के लेवल को कम करता है।
8- इंसुलिन डी.एन.ए. आर.एन.ए. के निर्माण को बढ़ावा देता है।

सोमेटोस्टेटिन

यह अल्फा और बीटा सेल्स की गतिविधि के नियंत्रित करता है अर्थात ग्लुकागोन और इंसुलिन के क्रियाकलापों को काबू में रखता है। साथ ही यह आहार तंत्र में पचित भोजन के अवशोषण को संदमित (Inhibit) करता है। 

One thought on “पैंक्रियास की संरचना और कार्य प्रणाली”

  1. पैंक्रियेटिक कैंसर
    पैंक्रियास में दो तरह की कोशिकाएं होती हैं जिनसे कैंसर की उत्पत्ति होती है। पैंक्रियास के अधिकांश कैंसर (एडीनोकार्सिनोमा) एक्सोक्राइन सेल्स से शुरू होते हैं। ये एक्सोक्राइन सेल्स प्रोटीन, शुगर और फैट के पाचन के लिए एंजाइम्स बनाने का कार्य करते हैं। जबकि एंडोक्राइन सेल्स से न्युरोएंडोक्राइन ट्यूमर्स नामक कैंसर उत्पन्न होते हैं, इनके मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं। ये एंडोक्राइन सेल्स इंसुलिन समेत कई हार्मोन्स बनाने का कार्य करते हैं।
    पैंक्रियेटिक कैंसर का आघटन (Incidence) तो कम है लेकिन डायग्नोसिस होते-होते काफी देर हो जाती है और तब तक बीमारी बहुत बढ़ चुकी होती है। तभी तो अमेरिका में कैंसर जनित मृत्यु का तीसरा बड़ा कारण पैंक्रियेटिक कैंसर है। एलोपेथी में पैंक्रियेटिक कैंसर का कोई संतोषप्रद उपचार नहीं है। फिर भी कीमो, रेडियोथैरेपी, टारगेटेड थैरेपी और संभव हो सके तो सर्जरी आदि उपचार किए जाते हैं। …..
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