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आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में डायबिटीज भारत का सबसे व्यापक और प्रचलित रोग बन चुका है, लेकिन ताजा आंकड़े यह बताते हैं कि संधिवात या Osteoarthritis डायबिटीज, हृदयरोग और कैंसर आदि को पीछे छोड़ कर पहले पायदान पर कदम रख चुका है। इस रोग के बढ़ते आघटन के प्रमुख कारण निष्क्रिय जीवनशैली, बढ़ता मोटापा, आहार में ओमेगा-3 फैट का घटता स्तर और भोजन में खराब फैट जैसे संत्रप्त वसा, रिफाइंड तेल, ट्रांस फैट और फैटी मीट के बढ़ते प्रयोग को माना गया है। भारत में हर उम्र के करीब 4 करोड़ 60 लाख लोग ऑस्टियोआर्थ्राइटिस और इससे संबंधित बीमारियों से ग्रस्त हैं। आज ऑस्टियोआर्थ्राइटिस इतना व्यापक रूप ले चुका है कि 6 लोगों में से 1 अथवा 3 परिवारों में से 1 व्यक्ति इस रोग से पीड़ित है। अगले २० सालों में अनुमान है कि ऐसे मरीज़ों की संख्या 6 करोड़ 70 लाख हो जाएगी। टी.एन.एस. आरोग्य नामक शोध के अनुसार 25-35 वर्ष की आयु के लोगों में ऑस्टियोआर्थ्राइटिस डायबिटीज के बाद दूसरा सबसे आम रोग माना गया है।
हड्डियों के जोड़ में उनके सिरों पर चिकने, कड़े और लचीले ऊतक की परत चढ़ी होती है, जिसे कार्टिलेज कहते हैं। यह दोनों हड्डियों के बीच एक गद्दी की तरह कार्य करता है, जिस पर हड्डियां आसानी से घूमती हैं। जब जोड़ों पर आयुवृद्धि या जीर्णता का असर होना शुरू होता है, तो यह कार्टिलेज घिसने लगता है और हड्डियां आपस में रगड़ खाने लगती हैं, जिससे जोड़ में दर्द और जकड़न रहने लगती है। जोड़ के किनारों पर हड्डी बढ़ने लगती है तथा लिगामेंट और मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं।
कारण
सामान्यतः यह रोग अधेड़ अवस्था में शुरू होता है। इसका आघटन 55 वर्ष की उम्र के पहले यह पुरुषों में लेकिन 55 वर्ष के बाद यह स्त्रियों में अधिक होता है। यह रोग परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। पूर्व में फ्रेक्चर या जोड़ों में चोट आने से ऑस्टियोआर्थ्राइटिस की संभावना बढ़ जाती है। जो लोग देर तक घुटने के बल या पालथी मार कर काम करते हैं, उन्हे भी इस रोग का खतरा रहता है। ऑस्टियोआर्थ्राइटिस की रोगजनकता में निम्न कारक महत्वपूर्ण माने गये हैं।
आहार में ओमेगा-3 की कमी
आधुनिक युग में आपके आहार से ओमेगा-3 (जो आपको अलसी, अखरोट, कद्दू के बीज और सालमोन मछली से मिलते हैं) गायब हो चुके हैं और खराब फैट्स जैसे संत्रप्त वसा, मकई, सेफ्लावर, सोयाबीन आदि के रिफाइंड तेल, हाइड्रोजिनेटेड फैट्स, ट्रांस फैट और फैटी मीट का प्रयोग बहुत बढ़ गया है। इन खराब फैट्स में ओमेगा-6 फैट बहुत होते हैं, जिससे शरीर में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है। जिसके फलस्वरूप दूसरी श्रंखला के प्रदाहकारी (Pro-inflammatory) प्रोस्टाग्लेंडिन्स और साइटोकाइन्स का निर्माण बढ़ जाता है, और इनके प्रभाव से जोड़ों में दीर्घकालिक, निम्न स्तरीय इन्फ्लेमेशन (Chronic low level Inflammation) बना रहता है। यह ऑस्टियोआर्थ्राइटिस का सबसे बड़ा कारक माना गया है।
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पोषक तत्वों की कमी
ऑस्टियोआर्थ्राइटिस के रोगियों में प्रायः विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन बी-6, जिंक, बोरोन और कॉपर की कमी देखी गई है।
मोटापा
जब भी आप चलने के लिए कदम बढ़ाते हैं तो घुटने और कूल्हे के जोड़ों पर आपके वजन से तीन गुना दबाव पड़ता है और यदि आप सीढ़ियों पर उतर रहे हैं तो यह दबाव छ गुना बढ़ जाता है। इसलिए मोटे व्यक्तियों को ऑस्टियोआर्थ्राइटिस का खतरा अधिक रहता है।
निष्क्रिय जीवनशैली
आजकल लोगों ने योग, व्यायाम, खेल-कूद, घूमना-फिरना, पैदल चलना बहुत कम कर दिया है। लोग कार और मोटरसायकल के बिना कहीं जाते नहीं हैं। आज के युवा कम्प्यूटर पर गेम्स खेलने या फेसबुक पर चेट करने में व्यस्त रहते हैं। इसलिए हड्डी और मांसपेशियां कमजोर होने लगी हैं तथा जोड़ों में दर्द और जकड़न रहने लगी है और ऑस्टियोआर्थ्राइटिस का जोखिम बढ़ रहा है।
लक्षण
दर्द और जकड़न इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। चलने या जोड़ पर दबाव पड़ने पर दर्द बढ़ जाता है। जैसे जैसे समय बीतता जाता है, दर्द और जकड़न बढ़ती जाती है। जोड़ों को मोड़ने या हिलाने पर रगड़ने, चटकने या कड़कने की आवाज आने लगती है। प्रायः दर्द और जकड़न सुबह सबसे ज्यादा रहती है और जैसे जैसे जोड़ हरकत में आते हैं, वार्म अप होते हैं, वेदना और जकड़न कम होने लगती है। शुरू में दर्द जोड़ को मोड़ने या हिलाने पर होता है, लेकिन बाद में हमेशा दर्द बना रह सकता है। जोड़ में सूजन आ सकती है। ऑस्टियोआर्थ्राइटिस शरीर के किसी भी जोड़ में हो सकता है, लेकिन प्रायः यह रोग घुटने, कूल्हे, हाथ और मेरुदंड के जोड़ों को प्रभावित करता है।
उपचार
यह एक अपक्षयन (Degenerative) रोग है और इसका कोई स्पष्ट और सटीक उपचार नहीं है। सिर्फ लक्षणों को शांत करने के लिए दर्द निवारक या अन्य उपचार दिये जाते हैं। लेकिन स्वस्थ आहार और स्वस्थ जीवनशैली अपना कर रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है। कुछ गंभीर रोगियों में आर्थ्रोस्कोपी, ऑस्टियोटोमी, ऑर्थ्रोडेसिस, कृत्रिम जोड़ प्रतिस्थापन (Joint Replacement Surgery) आदि शल्य किये जाते हैं। कमजोर जोड़ को सहारा देने के लिए स्प्लिंट और ब्रेसेज का प्रयोग भी किया जाता है। एक्युपंचर और एक्युप्रेशर दर्द के लिए बेहतर और सुरक्षित विकल्प हैं।
औषधियां
शुरू में चिकित्सक दर्द के लिए पेरासीटेमोल देता है, क्योंकि इसके कुप्रभाव अपेक्षाकृत कम हैं। लेकिन जब इससे काम नहीं चले तो नॉन-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवा (NSAIDs) जैसे ऐस्पिरिन, डाइक्लोफेनेक, एसीक्लोफेनेक, ट्रामाडोल, नेप्रोक्सेन आदि दी जाती हैं।
इनके अलावा कुछ अन्य उपचार भी दिये जाते हैं। जैसे –
1- दर्द और सूजन कम करने के लिए जोड़ में स्टीरॉयड का इन्जेक्शन दिया जाता है।
2- कुछ चिकित्सक ग्लूकोसामीन और कोन्ड्रॉयटिन सल्फेट देते हैं।
3- डाइक्लोफेनेक या केप्सेसिन की क्रीम भी दर्द में राहत देती है।
4- आजकल जोड़ में कृत्रिम चिकना द्रव भी डाला जाता है, जिससे 3-6 महीने तक दर्द में राहत मिल जाती है।
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समुचित आहार और सक्रिय जीवनशैली –
1- सुबह घूमने, योग करने, तैराकी करने, खेलने-कूदने, घर के छोटे मोटे काम खुद करने, घर पर बागवानी करने से जोड़ चुस्त व दुरुस्त रहते हैं।
2- सही तरीके से नियमित मालिश करने से बेहतर दूरगामी परिणाम मिलते हैं।
3- यदि आपका वजन ज्यादा है तो वजन कम करना बहुत जरूरी है।
4- संतुलित और समुचित आहार नितान्त आवश्यक है। आहार में ओमेगा-6 से भरपूर खराब फैट्स के सेवन पर विराम लगाना बहुत जरूरी है। बाजार उपलब्ध सारे खाद्य पदार्थ ओमेगा-6 से भरपूर ट्रांस फैट युक्त रिफाइंड तेल और हाइड्रोजिनेटेड फैट्स में बनाये जाते हैं।
5- अदरक, एलोवेरा, हल्दी और दालचीनी प्रदाहरोधी हैं और आर्थ्राइटिस में बहुत गुणकारी माने गये हैं।
अलसी
अलसी चेतना यात्रा की रिसर्च टीम ने सभी तरह के आर्थ्राइटिस में बड़े बड़े चमत्कार देखे हैं। इसका असर धीरे-धीरे जरूर होता है, पर जब होता है तो रोगी का जीवन बदल जाता है। जोंडों के दर्द और जकड़न में उम्मीद से बहुत अधिक लाभ मिलता है। अलसी में विद्यमान उपचारक ओमेगा-3 फैटी पहली और तीसरी श्रेणी के प्रदाहरोधी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनाते हैं जो स्थानिक हार्मोन (Local Hormone) की तरह काम करते हैं। और जोड़ों में दीर्घकालीन इन्फ्लेमेशन शांत करते हैं। ये प्रोस्टाग्लेंडिन्स प्राकृतिक कोक्स-2 इन्हिबीटर की तरह कार्य करते हैं और दर्द, सूजन और जकड़न दूर करते हैं। कनेक्टिव टिश्यु बायॉलोजी लेबोर्ट्रीज, यू.के. के अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि ओमेगा-3 जोड़ों में ऐंठन और दर्द बढ़ाने वाले प्रदाहकारी रसायन साइटोकाइन्स और इन्टरल्युकिन को निष्क्रिय करते हैं। साथ ही ओमेगा-3 ल्युकोट्राइन हार्मोन्स को भी शांत करते हैं जो इन्फ्लेमेशन बढ़ाते हैं। इनके अलावा अलसी में जिंक, मेग्नीशियम, विटामिन-सी, विटामिन बी-6, कॉपर, बोरोन, लिगनेन आदि तत्व होते हैं जो जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए बहुत आवश्यक माने गये हैं।
संधिवात या आर्थ्राइटिस में 30 ग्राम अलसी की रोटी के रूप में लेना सुविधाजनक रहता है। अलसी महान भोजन है और इसका का सेवन हमेशा करना चाहिये। तकलीफ ज्यादा हो तो शीतल विधि से निकला अलसी का तेल पनीर या दही में मिला कर लिया जा सकता है। जोड़ों पर अलसी के तेल की मालिश या अलसी की पुलटिस का लेप भी बहुत राहत देता है।
इप्सम सॉल्ट (मेग्नीशियम सल्फेट)
हड्डियों के विकास और शरीर के पी.एच. को संतुलित रखने में मेग्नीशियम बहुत आवश्यक है। मेग्नीशियम की कमी होने पर शरीर कैल्शियम तथा फोस्फोरस का अवशोषण और उपयोग नहीं कर पाता है। विदित रहे कि अस्थियों के निर्माण के लिए कैल्शियम तथा फोस्फोरस नितांत आवश्यक तत्व हैं। वृक्क और हृदय रोगी अपने चिकित्सक से पूछ कर ही इप्सम सॉल्ट का प्रयोग करें। 3 टेबलस्पून नीबू का रस और 3 टेबल स्पून इप्सम सॉल्ट आधा लीटर पानी में मिला कर रख लें और एक टी स्पून सुबह शाम को पियें। सप्ताह में एक बार गर्म पानी से भरे टब में दो कप इप्सम सॉल्ट डाल कर 30-40 मिनट तक बाथ लिया जा सकता है।
अबोहर की अचला कालरा को पंख लगे
आदरणीय डॉ. ओ.पी.वर्मा जी,
सादर नमस्कार।
मेरी उम्र 60 वर्ष है। मुझे घुटनों के दर्द की गंभीर समस्या थी। मुझे घर में चलने-फिरने में बहुत दिक्कत होती थी और मैं सीढ़ियां भी नहीं चढ़ पाती थी। घर से बाहर निकलना तो संभव ही नहीं था। मैंने निरोगधाम में आपका का लेख पढ़ कर अलसी की रोटी खाना शुरू किया। मुझे कई लोगों ने कहा कि अलसी खाने से कुछ नहीं होगा और मुझे गुमराह करने की बहुत कौशिश की लेकिन मैंने अलसी खाना नहीं छोड़ा। तीन-चार महिने बाद अलसी का सेवन करने से मुझे कुछ कुछ आराम आना शुरू हुआ और चलने में भी कम दिक्कत होने लगी। अलसी की रोटी खाते हुए अब मुझे एक साल हो गया है । अब मेरे घुटनों में दर्द लगभग खत्म हो गया है और मैं सीढ़ियां भी चढ़ लेती हूँ। अब मैं एक दो किलोमीटर रोज घूमती हूँ। अलसी खाने से मेरे पति की डायबिटीज में भी बहुत फायदा हुआ है। मैं टाइम पास करने के मकसद से एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने भी जाने लगी हूँ और तनख्वाह भी नहीं लेती हूँ। मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मेरे नये पंख लग गये हो। आज मैं उड़ना चाहती हूँ। मैं सबको कहना चाहती हूँ कि अलसी से बहुत फायदा होता है। और सारा दिन आप में काम करने कि ताकत आ जाती है।
अचला कालरा
पिसनहारी के प्रकाश संधिवात से मुक्त हुए
अलसी के एक और चमत्कार से मेरे मित्र डा. मनोहर भंडारी ने विगत दिनों साक्षात्कार कराया। जबलपुर-नागपुर रोड पर जबलपुर से पाँच किलो मीटर दूर तीन सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी पर बना एक जैन तीर्थ है, पिसनहारी मांडिया। चार सौ सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहुँचना पड़ता है। डा. भंडारी जबलपुर मेडिकल कालेज में प्राध्यापक हैं और अक्सर पिसनहारी जाते रहते हैं। वहाँ एक मुनीमजी हैं जिनका नाम प्रकाश जैन है, जिनके घुटनों में दर्द रहता था। एक दिन वे बोले डाक्टर साहब कोई दवा बताइए। सीढ़ियाँ चढ़ने में बड़ी तकलीफ होती है। डा. भंडारी ने उन्हें अलसी खाने की सलाह दी। मुनीमजी ने दूसरे ही दिन से अलसी का नियमित सेवन शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद जब डाक्टर भंडारी पिसनहारी मांडिया गए तो मुनीमजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ बताया कि डाक्टर सा. आपका अलसी वाला नुस्खा तो बड़ा कारगर रहा। आपके बताए अनुसार तीस ग्राम अलसी रोज पीस कर खाता हूँ। घुटनों का दर्द गायब हो चुका है। चार सौ सीढ़ियाँ रोज तीन बार चढ़ता हूँ। अब कोई कष्ट नहीं होता जबकि पहले 1500 रुपये महीने की दवा खाने के बाद भी ज्यादा फायदा नहीं था और दो बार ऊपर मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने में भी तकलीफ होती थी। अब मैं कोई दवा नहीं खा रहा हूँ।
जबलपुर जैन तीर्थ पिसनहारी मांडिया
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हमसे पूछिए जोड़ के हर रोग का तोड़
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