सेब – नई अभिदृष्टि

पूरा विश्व सेब को फलों का सरताज या “किंग ऑफ फ्रूट्स” मानता है। सेब सर्वव्याप्त, स्वास्थ्यप्रद और स्वादिष्ट फल है। यह रोज़ (Rosaceae) परिवार का सदस्य है। इस परिवार के अन्य फल आढू, खुबानी, चेरी, नाशपाती, स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, आलूबुखारा, बादाम आदि हैं। इसका वानस्पतिक नाम “मेलस डोमेस्टिका” (Malus domestica) है। यह हरे, पीले या लाल रंग का होता है। अन्दर का रसीला गूदा सफेद होता है। स्वाद में यह हल्का मीठा, तीखा और थोड़ा खट्टा होता है। सेब प्रायः कच्चा या ज्यूस बना कर लिया जाता है। इससे फ्रूट सलाद, सनडे, सॉस, जेम, जेली, साइडर, एप्पल साइडर विनेगार आदि बनाये जाते हैं। इसे कई व्यंजन जैसे एप्पल पाई, केक, कुकीज़, डम्पिंग, ब्रेड स्टफिंग आदि में भी प्रयोग किया जाता है। याद रखें कटे हुए सेब पर नींबू का रस लगाकर रखें, सेब काला नहीं पड़ेगा। इसके बीज कड़वे होते हैं और खाये नहीं जाते हैं।

सेब का पेड़ 3-12 मीटर लम्बा होता है। इसकी पत्तियां दिखने में साधारण सी, अंडाकार, 5-12 से.मी. लम्बी और 3-6 से.मी. चौड़ी होती हैं। इसके फूल बसन्त ऋतु में खिलते हैं। इसका फूल सुन्दर होता है और उसमें हल्की गुलाबी सफेद पांच पंखुड़ियों होती हैं।

आदम और ईव की कहानी ने सेब को ज्ञान, अमरत्व, लालच, पाप या मनुष्य के पतन का प्रतीक बना दिया है। लेटिन भाषा में एप्पल (apple) और इविल (evil) दोनों का मतलब एक  (mālum “an apple”, mālum “an evil, a misfortune”) ही होता  है। शायद इसीलिए कई पौराणिक कथाओं में इसे वर्जित फल (Forbidden Fruit) कहा जाता है। सेब को स्वास्थ्य, सेक्स, कामुकता का भी प्रतीक माना गया है।

इसकी उत्पत्ति केप्सियन सी और ब्लेक सी के बीच घने उपवन में हुई है। आज यह स्थान कज़ाखस्थान में आता है, लेकिन अब  सेब की पैदावार पूरे विश्व में होती है। विश्व में सेब की 7500 प्रजातियां  पाई जाती है। रेड डेलीशियस, गोल्डन डेलीशियस, ग्रेनी स्मिथ, मेकिंटोश, ज़ोनाथन, गाला और फ्यूजी आदि इसकी प्रमुख किस्में हैं। चीन, अमेरिका, तुर्की, पॉलेन्ड और इटली इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं।

भारत में सेब का इतिहास

भले आज पूरा विश्व कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के सेबो का दीवाना हो, लेकिन भारत में सेब का इतिहास मात्र 100 वर्ष पुराना ही है। भारत में सेब को लाने का श्रेय सैमुअल इवान स्टोक्स (जन्म – 16 अगस्त, 1882 मृत्यु – 14 मई, 1946)  नाम के अमेरिकन को जाता है। उन्हें भारत में सेब क्रांति का अग्रदूत कहा जाता है। इनके पिता बहुत बड़े उद्योगपति थे और स्टोक्स एण्ड पेरिश मशीन कंपनी के मालिक थे। लेकिन स्टोक्स को अपने पिता के व्यवसाय में रुचि नहीं थी। वे क्रिश्चियन संन्यासी बन कर मानवता की सेवा करना चाहते थे। तभी उनकी मुलाकात डॉ. मार्कस चार्ल्सटन से हुई, जो भारत में कुष्ठ रोग के मरीजों पर कार्य कर रहे थे। इस तरह वे अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध 26 फरवरी, 1904 को कुष्ठ रोगियों की देखभाल करने के मकसद से डॉ. चार्ल्सटन के साथ भारत आ गये। भारत में ये शिमला के पास सपाटू नामक स्थान पर कुष्ठ रोगियों की सेवा सुश्रुसा करने लगे। इन्हें शिमला की खूबसूरत वादियों से प्यार हो गया और यहीं बस गये। इन्हीं वादियों में थानेधार (शिमला से 82 कि.मी. दूर) के पास एक कस्बे कोटगढ़ की सुन्दर पहाड़ी क्रिश्चियन राजपूत बाला एग्नस बैंजामिन ने इस भोले भाले मानवता के सेवक का दिल भी चुरा लिया। फिर क्या था इनका प्यार परवान चढ़ने लगा और सितंबर, 1912 में दोनों ने धूमधाम से विवाह रचा लिया। पता ही नहीं चला कि एक अमेरिकन युवा देखते देखते कब हिन्दुस्तानी बन गया। सैमुअल ने भारत को आजादी दिलाने के लिए भी अंग्रेजो से कई पंगे लिये जिसके लिए अंग्रेजों ने इन्हें दो वर्ष के लिए लाहौर जेल में बंद भी किया था। अपने पुत्र की मृत्यु के बाद इनका झुकाव हिन्दू धर्म की तरफ हो गया। इसके बाद एक बार मद्रास में सन्यासी सत्यानंद की स्टोक्स से भेंट हो गई। स्टोक्स ने सत्यानंद को बाइबल के तत्वज्ञान को समझाने का प्रयास किया तो इधर स्वामी ने गीता दर्शन को स्टोक्स के सामने रखा। स्वामी के अकाट्य तर्कों से स्टोक्स बहुत प्रभावित हुए और दो टूक निर्णय ले लिया कि वे हिन्दू धर्म की दीक्षा लेंगे और 1932 में ये आर्य समाजी बन गये और अपना नाम सत्यानंद स्टोक्स रख लिया और एग्नस प्रिया देवी हो गई। 1937 में इन्होंने कोटगढ़ में एक भव्य गीता मन्दिर, थानेधार में सत्यानंद स्टोक्स कृषक सामुदायिक भवन और बागवानी केन्द्र भी बनवाया था।

उन दिनों अमेरिका में सेब की पैदावार चरम सीमा पर थी। सैमुअल को लगा कि कोटगढ़ का जलवायु सेब की खेती के लिए बिलकुल उपयुक्त है। स्टोक्स को विश्वास था कि पहाड़ों की समृद्धि बागवानी में ही निहित है। इसलिए सन् 1919 में स्थानीय लोगों रोजगार दिलाने के मकसद से इन्होंने अमेरिका से सेब के पौधे लाकर अपने 200 एकड़ के बरोबाग में लगाये। 1925 में जब सेब की पहली पैदावार बाजार में बिकने पहुँची तो लोग खरीदने के लिए टूट पड़े। इसके बाद तो बस पूरे इलाकें के किसान सेब की खेती में जुट गये। आज हिमाचल प्रदेश भारत का सेब राज्य कहलाता है। इस इलाके में आज भी उन्हे “जॉनी एप्पलसीड ऑफ हिमालय” के नाम से जाना जाता है।

पोषक तत्वों का अनूठा संगम

सेब में कैलोरी कम होती है। इसमें सोडियम, संत्रप्त वसा (Saturated Fats), या कॉलेस्टेरोल बिलकुल नहीं होता है। सेब में विटामिन-सी और बीटाकेरोटीन पर्याप्त मात्रा में होता है। इसमें फ्लेवोनॉयड और पॉलीफेनोल्स प्रजाति के अनेक एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। इसकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता (ORAC value) 5900 टी.ई. होती है। सेब में पाये जाने वाले प्रमुख फ्लेवोनॉयड्स क्युअरसेटिन, एपिकेटेचिन, प्रोसायनिडिन बी-12 हैं। इसमें बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे राइबोफ्लेविन, थायमिन, पाइरिडोक्सीन प्रचुर मात्रा में होते हैं। पोटेशियम, फोस्फोरस और कैल्शियम खनिज तत्वों में प्रमुख हैं। 

हालांकि सेब में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक नहीं होती है। 100 ग्राम सेब में 2-3 ग्राम ही फाइबर होता है, जिसमें 50% पेक्टिन होता है। लेकिन यह फाइबर सेब के अन्य पोषक तत्व के साथ मिल कर रक्त में फैट्स और कॉलेस्टेरोल की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है। सेब की रक्त के फैट्स को कम करने की क्षमता फाइबर से भरपूर कई अन्य खाद्य पदार्थों से भी अधिक होती है। लेकिन हृदय रोग में पूरा फायदा लेने के लिए आपको सिर्फ पेक्टिन लेने से काम नहीं चलेगा, बल्कि आपको पूरा सेब खाना पड़ेगा।

सेब के चमत्कारी गुण – नई परिदृष्टि पॉवरफुल पॉलीफेनॉल्स

पिछले वर्षों में सबसे अधिक शोध पॉलीफेनोल्स पर हुई है। सेब में इन पॉलीफेनोल्स का अनूठा सन्तुलित देखने को मिलता है, शायद इसीलिए सेब खाने वाले लोगों से रोग भी डरते है। सेब में क्युअरसेटिन नाम का फ्लेवोनॉल प्रमुख फाइटोन्युट्रियेन्ट है, जो गूदे से ज्यादा इसके छ्लके में होता है। इसके साथ केम्फेरोल और माइरिसेटिन भी महत्वपूर्ण हैं। क्लोरोजेनिक एसिड सेब का प्रमुख फिनोलिक एसिड है, जो गूदे और छ्लके में समान रूप से पाया जाता है। सेब की लाल रंगत का राज़ हमेशा एंथोसायनिन होता है, जो अधिकतर छ्लके में ही सिमित रहता है। यदि सेब पूरा लाल है या लाल रंग बहुत गहरा है, तो उसमें एंथोसायनिन बहुत अधिक होता है। सेब में एपिकेटेचिन प्रमुख केटेचिन पॉलीफेनोल्स होता है। सेब के बीज में मुख्य पॉलीफेनोल्स फ्लोरिड्जिन ( 98% ) होता है। सेब के गूदे में कुल पॉलीफेनोल्स 1-7 ग्राम प्रति किलो हिसाब से होते हैं। विदित रहे कि सेब के छिलके में प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने वाली कोशिकाएं सूर्य की  UV-B किरणों के प्रति बहुत संवेदनशील होती है और छिलके में विद्यमान अधिकांश पॉलीफेनोल्स UV-B किरणों को सोख लेती हैं। इस तरह पॉलीफेनोल्स सेब के लिए प्राकृतिक सनस्क्रीन की तरह काम करते हैं।

आपने देखा होगा कि सेब के टूटने या कटने से उसका गूदा भूरा होने लगता है और खराब हो जाता है। शोधकर्ता इसका कारण पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज एंजाइम (PPOs) को मानते हैं, जो सेब के टूटने या फटने पर पॉलीफेनोल्स का ऑक्सीडाइज करने लगते हैं। या यूँ समझ लीजिये कि सेब में जंग लगने लगता है, जिसके फलस्वरूप गूदा भूरा और काला पड़ने लगता है। भूरा और खराब होने पर सेब इथाइलीन गैस भी छोड़ने लगता है, जो दूसरे सेबों को भी खराब करता है। आपने कहावत सुनी होगी कि एक सड़ा हुआ सेब पूरी डलिया के सेब खराब कर देता है।  इसलिए सेब की पेकिंग और परिवहन में बहुत एहतिहात रखनी पड़ती है। और आजकल सेबों पर वेक्स पॉलिशिंग भी इसीलिए की जाती है।   

ऑसम एंटीऑक्सीडेंट

सेब के अधिकांश पॉलीफेनोल्स शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट माने गये हैं। ये खासतौर पर कोशिका-भित्ति के फैट्स को ऑक्सीडाइज (called Lipid Peroxidation)  होने से बचाते हैं। यह गुण हृदय और रक्त-परिवहन संस्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि रक्त-वाहिकाओं की आंतरिक सतह की कोशिकाओं में फैट्स के ऑक्सीडाइज होने से वाहिकाओं के बंद होने (Atherosclerosis) और अन्य विकारों का जोखिम रहता है। और ये पॉलीफेनोल्स फैट्स को  ऑक्सीडाइज होने से बचाते हैं और सेब को हृदय हितैषी का दर्जा दिलाते हैं।

सेब के शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट अस्थमा और फेफड़े के कैसर का खतरा भी कम करते हैं। पॉलीफेनोल्स के साथ सेब में 8 मिलीग्राम विटामिन-सी भी होता है। यह मात्रा बहुत सामान्य है, लेकिन फिर भी बहुत खास है क्योंकि विटामिन-सी के पुनर्चक्रण (Recycling) के लिए फ्लेवोनॉयड्स बहुत जरूरी होते हैं। और सेब में ये फ्लेवोनॉयड्स भरपूर होते हैं।

डायबिटीज डेमेजर

पिछले कुछ वर्षों में हुई शोध के अनुसार डायबिटीज के नियंत्रण में सेब का महत्व अचानक बढ़ गया है। सेब में पॉलीफेनोल्स कई स्तर पर शर्करा के पाचन और अवशोषण को प्रभावित करते हैं और रक्त में ग्लूकोज के स्तर को बखूबी नियंत्रित रखने की कौशिश करते हैं। ये जादुई पॉलीफेनोल्स इस तरह कार्य करते हैं।

1- ये शर्करा के पाचन में गतिरोध पैदा करते हैं। सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन और अन्य फ्लोवोनॉयड शर्करा को पचाने वाले एंजाइम्स अल्फा-अमाइलेज और अल्फा-ग्लूकोसाइडेज को बाधित करते हैं। ये एंजाइम्स जटिल शर्करा का विघटन करके सरल कार्ब ग्लूकोज में परिवर्तित करते हैं। जब ये एंजाइम्स बाधित होते हैं, तो स्वाभाविक है कि रक्त में ग्लूकोज का स्तर नहीं बढ़ेगा।

2- पॉलीफेनोल्स आंत में ग्लूकोज का अवशोषण की गति को कम करते हैं, जिससे रक्त में ग्लूकोज धीरे-धीरे बढ़ती है।

3- ये पेनक्रियास के बीटा सेल्स को इंसुलिन बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, और इंसुलिन के रिसेप्टर्स को उत्साहित करते हैं ताकि इंसुलिन ग्लूकोज को कोशिका में ज्वलन और ऊर्जा बनाने के लिए भेजता है। रक्त-प्रवाह से ग्लूकोज को कोशिका में भेजने के लिए कोशिका  के इन्सुलिन रिसेप्टर्स का इन्सुलिन के चिपकना और कोशिका के मधु-द्वार को खोलना जरूरी होता है। आप यूँ समझें कि इन्सुलिन हार्मोन मधु-द्वार को खोलने की कुंजी का कार्य करता है। इस तरह सेब में विद्यमान पॉलीफेनोल्स रक्तशर्करा के नियंत्रण में मदद करते हैं।

हार्ट हीलर

सेब में जल-घुलनशील पेक्टिन और पॉलीफेनोल्स का अनूठा मिश्रण इसे हृदय के लिए हितकारी बनाता है। नियमित सेब का सेवन करने से कॉलेस्टेरोल और बुरा एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल कम होने लगता है। रक्त और रक्त-वाहिका की आंतरिक सतह की कोशिका-भित्ति में फैट्स का ऑक्सीडेशन (called Lipid Peroxidation) कम होना कई हृदय रोगों से बचाव की मुख्य कड़ी है।

सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन के प्रबल प्रदाहरोधी (Anti-inflammatory) गुण भी हृदय रोग से बचाव में खास स्थान रखते हैं। इसीलिए नियमित सेब खाने से शरीर में सी.आर.पी. (जो शरीर में इन्फ्लेमेशन का एक मार्कर है) कम होता है और हृदय रोग का जोखिम कम करता है। इस सर्वव्याप्त और स्वादिष्ट फल में प्रकृति ने हमें कितने हृदय-हितैषी पोषक तत्व एक साथ दिये हैं। पोषक तत्वों का ऐसा विचित्र संगम बहुत कम देखने को मिलता है। शायद इसीलिए हमारे बुद्धिमान पूर्वज कहते आये हैं कि रोज एक सेब खाने से आप चिकित्सक से दूर रहेंगे।  मैं तो यही कहूँगा कि  

जो नित प्राणायाम करत है और सेब फल खाये
कबहु न मिलिहै  बैदराज से  रोग न  कोई  होये

कैंसर किलर

हालांकि सेब कई तरह के (आंत और स्तन कैंसर) कैंसर में लाभदायक माना जाता है, लेकिन फेफड़े को कैंसर में यह विशेष महत्वपूर्ण है। सेब निश्चित रूप से फेफड़े के कैंसर का जोखिम कम करता है। इसके लिए पॉलीफेनोल्स के एंटीऑक्सीडेंट्स और प्रदाहरोधी (Anti-inflammatory ) गुण जिम्मेदार माने गये हैं। शोधकर्ताओं ने हजारों लोगों पर शोध किया है। लोगों को दो श्रेणियों में बांटा गया, एक श्रेणी को सेब को छोड़ कर अन्य फल और सब्जियां खिलाई गई तो दूसरी श्रेणी को सिर्फ सेब खिलाये गये। शोधकर्ताओं ने पाया कि सेब खाने वाली श्रेणी में फेफड़े के कैंसर का जोखिम आश्चर्यजनक रूप से कम हुआ था। शोधकर्ता इन नतीजों का स्पष्टीकरण नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं और मानते हैं कि अभी और शोध की आवश्यकता है।

अन्य

नई शोध से कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सेब अस्थमा का जोखिम भी बहुत कम कर देता है। इसके लिए भी पॉलीफेनोल्स के एंटीऑक्सीडेंट्स और प्रदाहरोधी (anti-inflammatory ) गुण जिम्मेदार माने गये हैं। लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि सेब में पॉलीफेनोल्स के अलावा भी कोई अन्य ऐसा तत्व भी है जो अस्थमा के लिए फायदेमंद है। सेब अल्झाइमर और रेटीना के मेक्यूलर डीजनरेशन में भी गुणकारी माना गया है। फास्‍फोरस और लौह प्रधान होने से यह मस्तिष्‍क और शरीर की मांसपेशियों में शक्ति का नव संचार कर इन्‍हें सुदृढ़ बनाता है। अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि सेब खाने से बड़ी आंत में क्लोस्ट्रिडियेल और बेक्टिरियोड्स नामक जीवाणु की संख्या  काफी कम हो जाती है। इससे बड़ी आंत का चयापचय में भी बदलाव आता है और कई फायदे होते हैं। 

वो तीन सेब जिन्होंने बदल दी दुनिया

तीन सेबों ने इस दुनिया का स्वरूप बदल कर रख दिया है। यूनानी पौराणिक कथाओं के अनुसार पहला सेब तो ईव ने आदम को खिलाया, जो इस धरा पर मानव संसार का कारण बना। यदि आदम और ईव ने ईडन गार्डन में  वह वर्जित सेब (Forbidden Fruit) नहीं खाया होता तो शायद आज मेरा और आपका अस्तित्व भी नहीं होता। दूसरा सेब सर आइज़क न्यूटन के सिर पर गिरा जिससे उनका सिर घूमने लगा और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बनाया, जिसके कारण विज्ञान ने इतनी तरक्की की और चांद पर भी फतह हासिल की। तीसरा एप्पल स्टीव जोब्स की कल्पना में पैदा हुआ, जिसकी वजह से आज आप और हम मेक कम्प्यूटर, आईफोन, आईपेड, आईट्यून और आईपोड इस्तेमाल कर रहे हैं।

 

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