कैंसर – कारण और निवारण
कैंसर को एक गंभीर और लाइलाज रोग माना जाता है। पिछले 200 वर्षों से अमेरिका और अन्य देश इस रोग पर शोध कर रहे हैं। अरबों रुपया इस रिसर्च में फूँका जा रहा है, अनेक संस्थाओं से डोनेशन लिया जाता है। लेकिन न तो कैंसर की मृत्यु दर कम हुई है और ना ही इसका इंसीडेंस कम हुआ है। हमारे पास काबिल डॉक्टर्स और नर्सिंग कर्मियों की पूरी फौज है। फाइव स्टार हॉस्पीटल्स हैं। हर साल दर्जनों कीमोथेरेपी दवाइयाँ बनाई जाती हैं। हर बार कहा जाता है कि बस हम कैंसर के क्यौर से बस थोड़ा ही सा दूर हैं, लेकिन यह थोड़ी सी दूरी हम 200 साल में भी तय नहीं कर पाए हैं। हम जहाँ तब थे, वहीं आज खड़े हैं। ऐसा क्यों है, कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी दिशा ही गलत हो। कहीं हमें एक यू टर्न लेने की जरूरत तो नहीं है।
कैंसर का इंसीडेंस तेजी से बढ़ रहा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार 10 साल बाद कैंसर का इंसीडेंस पांच गुना बढ़ जाएगा। यह स्थिति बहुत भयावह होगी। हमें बहुत गंभीरता से कैंसर के बचाव पर काम करने की आवश्यकता है। आओ दोस्तों, कैंसर के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दें। अपने तरकश से तीर निकाल कर धनुष पर अवस्थित कर लीजिए और प्रत्यंचा चढ़ा कर तैयार रहिए। हमें बुडविग उपचार को कैंसर के हर मरीज तक पहुँचाना है। हमें भारत सरकार को यह संदेश पहुँचाना है कि इस उपचार को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए समुचित कदम उठाए। इस उपचार द्वारा हम कैंसर के करोड़ों मरीजों को राहत और सुकून भरा जीवन दे सकते हैं।
मुझे कौनसा उपचार लेना चाहिए?
जैसे ही आपको कैंसर डायग्नोस होता है, आपके सभी दोस्त, परिजन और रिश्तेदार रातों-रात डॉक्टर बन जाते हैं और आपको सलाह देना शुरू कर देते हैं। कोई कहेगा, आप किसी की मत सुनो सीधे अमुक अस्पताल में जाकर अंग्रेजी इलाज करवाओ, तो कोई कहेगा आप अमुक आयुर्वेद उपचार करवाओ या कोई कहेगा कि आप अमुक होम्योपेथी डॉक्टर के पास जाओ। उधर आपका ओंकोलोजिस्ट तुरंत सर्जरी और कीमा के लिए बुलवाएगा। वह कहेगा कि आपने तुरंत सर्जरी नहीं करवाई तो आपकी जान को ख़तरा है। आप कल भरती हो जाइए। अब आप कनफ्यूज़ हो जाते हो और कई बार आप गलत निर्णय कर बैठते हो। यहाँ मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अपने लिए सही उपचार चुनना आपका अधिकार है। आपको जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है। जो डॉक्टर्स आपको डराते हैं, धमकाते हैं, वो एकदम गलत बात है। आप मत डरिए, 10-15 दिन में आपको कुछ नहीं होगा। सुनिए सबकी करिए मन की। आपके सामने उपचार के जो भी विकल्प हैं, उनके फायदे नुकसान बारे में अच्छी तरह जानकारी जुटाएं, गूगल पर जाकर पूरी रिसर्च करें और तसल्ली से सही उपचार का चुनाव करें। जब आप सभी इलाजों के बारे में पता कर लेगें तो आपके लिए सही उपचार का चुनाव करना आसान हो जाएगा। हाँ आप ऐसा कोई नीम-हकीम खतरे जान उपचार कभी नहीं ले, जिसमें आपको यह भी नहीं बताया जाता है कि आपको कौनसी दवा या जड़ी-बूटी दी जा रही है।
बडविग प्रोटोकॉल इतना बढ़िया इलाज है फिर हमारे एलोपेथी के अस्पतालों में क्यों प्रचलित नहीं?
अब आप ये सोच रहे होंगे कि जब यह उपचार इतना अच्छा है तो हमारे एलोपेथी के हॉस्पीटल्स कैंसर के मरीजों को बडविग उपचार क्यों नहीं दिया जाता या अधिकांश डॉक्टर्स इस उपचार से अनभिज्ञ क्यों हैं। देखिए मैं आपको शुरू से समझाता हूँ। प्राचीन काल में कुछ सेवाभावी डॉक्टर्स ने मिलकर एलोपेथी की शुरूआत की। सभी डॉक्टर्स के बहुत अच्छे इरादे थे। उनका मूलमंत्र था “प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्यौर”।
हमारे डॉक्टर शुरू से ही बहुत अच्छे हैं। वे बहुत मेहनत करते हैं, बहुत पढ़ाई करते हैं, बहुत बुद्धिमान होते हैं। फिर एलोपेथी में रिसर्च का दौर शुरू हुआ। मेडीकल साइंस विकसित हुई। अधिकांश बीमारियों पर
रिसर्च हुई और उनके उपचार खोजे गए। कई नए-नए हैल्थ प्रोग्राम जैसे स्मालपॉक्स कंट्रोल प्रोग्राम, मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम आदि शुरू किए गए। कई बीमारियों को तो जड़ से खत्म कर दिया गया। फिर नित नई दवाएँ बनने लगी। धीरे-धीरे इस मेडीकल साइंस में दवाई बनाने वाली कंपनियों का दखल बढ़ता गया। बस यहीं से समस्या शुरू हुई। धीरे-धीरे मेडीकल साइंस मेडीकल इंडस्ट्री बनती गई, “पहले बीमार करो फिर उपचार करो” मेडीकल इंडस्ट्री का आदर्श बन गया और बेचारा डॉक्टर रोबोट बनकर रह गया। या यूँ समझें कि डॉक्टर फार्मास्यूटिकल कंपनियों की कठपुतली बनकर रह गया। उसे कुएं का मैंडक बना दिया गया, ताकि उसे बाहर की कोई चमत्कारी जड़ी-बूटी या होम्योपेथी की सेफ और सटीक गोलियां दिखाई नहीं दे। आजकल ये रोबोट रूपी डॉक्टर अमेरिका में बैठी फार्मास्यूटिकल कंपनियों द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर
से चलता है। इन कंपनियों ने रिश्वत खिलाकर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं जैसे एफ.डी.ए., अमेरिकन कैंसर सोसायटी आदि के बड़े-बड़े नुमाइंदों को अपने जाल में जकड़ लिया। ये उनके रिशतेदारों को अपने यहाँ ऊँची तनख्वाह पर नौकरी देते हैं। ये डॉक्टर्स को गिफ्ट्स देते हैं, कमीशन देते हैं और फोरेन टुअर करवाते हैं, ।
शुरू में तो डॉक्टर्स भी उनके चंगुल में नहीं फंसना चाहते थे, और इन गलत चीजों का विरोध भी करते थे, लेकिन इन धूर्त कंपनियों ने येन केन प्रकारेण अधिकांश डॉक्टर्स को अपने शिकंजे में कस ही लिया। आजकल बीमारियों के ट्रीटमेंट प्रोटोकोल भी इस तरह बनाए जाते हैं कि इलाज इस तरह किया जाए कि मरीज जिंदा तो रहे पर कभी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाए ताकि वो जीवन भर दवा खरीदता रहे और इनको पैसा मिलता रहे। आज की मेडीकल इंडस्ट्री का मोटो प्रिवेंशन नहीं है। इनका फोकस इस बात पर रहता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा पेशेंट क्रियेट किये जाएं और कैसे दवाओं की बिक्री बढ़ती रहे। मेडीकल इंडस्ट्री का सिस्टम इस तरह का बना दिया गया है कि कोई भी हर्बल या नेचुरल दवा का पेटेंट नहीं करवा सकता। अब तो सिर्फ ऐसा कैमीकल का ही पेटेंट हो सकता है जिसे ये फार्मास्यूटिकल्स अपनी फैक्ट्री में बना सके और मनचाही कीमत वसूल कर सकें। कैंसर उपचार में तो हालत सबसे खराब है। ये सिर्फ ट्यूमर को ही बीमारी समझते हैं और उसको नष्ट करने के लिए मरीज को जहरीली और कैंसरकारी रेडियो थेरेपी व कीमो के इंजेक्शन और गोलियां देते रहते हैं, जबकि बीमारी कुछ और होती है, कारण कुछ और होता है। शायद इसीलिए हर मरीज में कैंसर दोबारा लौटकर आता ही है। डॉ वारबर्ग के विज्ञान को एलोपेथी ने आजतक नहीं पढ़ाया। शायद वे चाहते ही नहीं कि डॉक्टर्स कैंसर का कारण जानें। यह कैसी विधा है जो बिना कारण जाने कैंसर का निवारण करना चाहती है? इसी का नतीजा है कि आज लाखों-करोड़ों लोग कैंसर से मर रहे हैं। रेडियोथेरेपी और कीमो के इंजेक्शन और गोलियों की कीमत भी आजकल लाखों में होती है, भले इनसे मरीज को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है। लोगों के जमीन-जायदात बिक रहे हैं, परिवार तबाह हो रहे हैं, देश तबाह हो रहे हैं। हे भगवान क्या होगा इस विश्व का? अब आप ही बताइए, ये फार्मास्यूटिकल कंपनियां कैसे बरदाश्त करेंगी कि कैंसर के मरीज अलसी का तेल और पनीर खाकर ठीक होने लगे और कीमो की फैक्ट्रियों में ताला लग जाए। मैं कैंसर के इस सरल, सहज, सटीक, सुरक्षित और संपूर्ण समाधान को हर कैंसर के रोगी तक पहुँचाना चाहता हूँ और प्रयासरत हूँ। यही मेरे जीवन का मिशन है। मैं समर्थ भी हूँ, सफल भी हूँ और अपने मिशन को पूरा करके ही दम लूँगा। यदि हम सब बडविग के विज्ञान को अपना लें तो हमें दुनिया में एक भी कैंसर हॉस्पीटल की जरूरत नहीं होगी।
बडविग प्रोटोकोल कैसे काम करता है…
दोस्तों,
यह उपचार जर्मनी की डॉ. जॉहाना बडविग ने विकसित किया था। चलिए इस उपचार के मर्म को समझने के लिए निम्न बिंदुओं पर गौर कीजिए।
1. यह कैंसर के मूल कारण पर प्रहार करता है।
2. कैंसर के मुख्य कारण की खोज 1931 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कर ली थी। जिसके लिये उन्हें नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया। उन्होंने सिद्ध किया कि यदि कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो हमें कैंसर हो जाता है।
3. ऑक्सीजन का काम हमारे लिए ऊर्जा बनाना है। ऑक्सीजन की कमी होने पर कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा बनाने की कौशिश करती हैं और सिर्फ 5 प्रतिशत ऊर्जा (यानि 2 ए.टी.पी.) बनती है। और खराब वाला लीवो-रोटेटिंग लेक्टिक एसिड बनता है, जो शरीर को एसिडिक बनाता है।
4. डॉ. वारबर्ग ने हमें बताया था कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं, पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि क्रीम जैसे पनीर (कॉटेज चीज़) में पाया जाता है और दूसरा तत्व कुछ फैटी एसिड्स हैं जिन्हें कोई पहचान नहीं पा रहा था। वारबर्ग ने भी प्रयोग किए परंतु वह भी इस रहस्यमय फैट को पहचानने में नाकामयाब रहे। उस दौर के कई शोधकर्ता भी इस विषय पर शोध कर रहे थे, पर कोई भी उस फैट के पहचान नहीं पाया।
5. वक्त गुजरता रहा और फिर 1949 में डॉ. बडविग ने पेपरक्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की, जिससे वे फैट पहचान लिए गए। वे फैट्स थे अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैट का मुखिया) और लिनोलिक एसिड (ओमेगा-6 फैट का मुखिया), जो अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये हमारे शरीर में नहीं बन सकते इसलिए इन्हें असेंशियल फैट्स का दर्जा दिया गया है। इनमें ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। जब ये फैटी एसिड्स सल्फरयुक्त प्रोटीन के साथ हाथ में हाथ मिलाकर कोशिका में पहुँचते हैं और कोशिका तथा माइटोकॉन्ड्रिया की भित्ति में अवस्थित होते हैं, तब ये उर्जावान इलेक्ट्रोन्स ही ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करते हैं। जैसे ही ऑक्सीजन कोशिका में पहुँचती है, उर्जा निर्माण के तीनों स्टेप्स (ग्लायकोलाइसिस, क्रेब सायकिल, और इलेक्ट्रोन ट्रांसफर चेन) सक्रिय हो जाती हैं तथा पूरी उर्जा (यानि 36-38 ए.टी.पी.) बनने लगती है, ग्लूकोज़ का फर्मेंटेशन बंद हो जाता है और कैंसर का अस्तित्व खत्म हो जाता है। यह खोज बहुत महान थी और कैंसर के उपचार में विजय की पहली पताका साबित हुई।
6. अब बडविग ने सोचा कि अब मैं कैंसर को ठीक कर सकती हूँ। बस उन्होंने कैंसर के 650 मरीजों पर ट्रायल किया। उन्हें अलसी का तेल और कॉटेज चीज़ मिला कर देना शुरू किया। तीन महीने बाद नतीजे चौंका देने वाले थे। मरीजों का हीमोग्लोबिन बढ़ गया था, वे ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे और उनकी गांठे छोटी हो गई थी। इस तरह बडविग ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार विहार तथा शरीर के टॉक्सिन्स निकालने के उपचार आदि को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ।
7. इस उपचार से उन्हें हर तरह के कैंसर में, हर स्टेज के कैंसर में और मरणासन्न रोगियों में भी 90 प्रतिशत प्रामाणिक सफलता मिली और उनका नाम नोबल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित हुआ।
हम आपको 2 तरह से सपोर्ट कर सकते हैं। या तो आप एक दिन हमारे पास आ जाएं, हम आपको ओमखंड (अलसी तेल और पनीर का दिव्य व्यंजन) बनाना और पूरा उपचार सिखा देंगे तथा डीवीडी व ट्रीटमेंट मेटीरियल भी दे देगें, ताकि आपको अच्छे रिजल्ट मिले। यदि किसी कारणवश आप नहीं आ सकें तो हम बुक, पूरा ट्रीटमेंट प्लान और ट्रीटमेंट मेटीरियल कोरियर से भेज सकते हैं।
एसीएक चाय
जो कैंसर को करे बॉय
1922 में उत्तरी ओंतारियो, कनाडा की नर्स रेने केस ने एक दिन नदी के किनारे किसी स्त्री को नहाते हुए देखा, जिसके एक स्तन पर काफी बड़े स्कार टिश्यू बने हुए थे। पूछने पर उसने बताया कि तीस साल पहले उसे स्तन कैंसर हो गया था, जिसके लिए एक हिंदुस्तानी वैद्य ने कुछ जड़ी-बूटियों का काढ़ा पीने को दिया था। इस काढ़े से उसका कैंसर बिलकुल ठीक हो गया। केस ने उससे विस्तार से बात की और उन जड़ी-बूटियों के नाम और काढ़ा बनाने की विधि डायरी में लिख ली।
इसके बाद केस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उसको तो अपने जीवन का मकसद मिल चुका था। उसने अपना पूरा जीवन इस जादुई चाय पर रिसर्च करने और कैंसर के मरीजों की सेवा में लगा दिया। उसने इस चाय के फॉर्मूले में कई बदलाव करके देखे। इसमें कुछ दूसरी जड़ी बूटियों को भी मिला कर देखा। परंतु अंततः चार जड़ी बूटियों वाली चाय ही सबसे अच्छी साबित हुई। उसने अपने सरनेम केस Caisse की स्पेलिंग को उल्टा करके Essiac एसियक शब्द बनाया और यही नाम इस चाय को दे दिया। सन् 1924 में केस की चाची को स्टोमक कैंसर हुआ और डॉक्टर्स ने कहा कि वह मुश्किल से 6 महीने जी पाएगी। केस ने एसियक चाय से चाची का उपचार किया और वह कैंसरमुक्त हो कर 21 साल जीवित रही। इसके बाद में रेने केस की मां को भी लीवर में खतरनाक कैंसर हुआ और डॉक्टर्स ने कहा कि वह कुछ ही दिनों की मेहमान है। लेकिन केस ने अपनी मां का उपचार भी इसी चाय से किया और वह 18 साल तक स्वस्थ जीवन जीवित रही।
केस ने ब्रेसब्रिज, ओंतारियो में कैंसर क्लीनिक शुरू की और सन् 1934 से सन् 1942 तक मरीजों का उपचार करती रही। पूरे कनाडा के डॉक्टर्स उसके पास अपने मरीज भेजने लगे। कई सर्जन और विशेषज्ञ उसकी क्लीनिक में आते, उसके मरीजों से मिलते और उनकी केस हिस्ट्रीज़ का अवलोकन करते।
सावरक्रॉट – कैंसर उपचार में तुर्प का पत्ता
बडविग प्रोटोकॉल में सावरक्रॉट का बड़ा महत्व है। सावरक्रॉट बंदगोभी को फर्मेंट करके बनाया जाता है, इसमें नाना प्रकार के प्रोबायोटिक्स, एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन सी एवं बी ग्रुप और मिनरल्स होते हैं। यह एक शक्तिशाली क्षारीय भोजन है। 200 ईसा पूर्व मारकस पोर्सियस केटा द ईल्डर नाम के एक रोमन स्टेट्समेन ने अपनी विख्यात पुस्तक “ऑन फार्मिंग” में स्पष्ट लिखा है कि कैंसर का कोई भी उपचार बिना सावरक्रॉट के काम नहीं करेगा। यदि आप सावरक्रॉट खुद बनाना चाहते हैं, तो यूट्यूब पर हमारी वीडियों देखें,यह डाइजेस्टिव सिस्टम की सारी बीमारियों को चुटकियों मे ठीक कर देता है। हम इसे आबेहयात कहते हैं। हम इसे बनाते भी हैं और बनाना सिखाते भी हैं।
अलसी के तेल में पाए जाने वाले अल्फा लिनोलेनिक एसिड का महत्व
एक ऐसे पोषक तत्व की बात कर रहा हूँ, जिसकी दशकों से अवहेलना की जा रही है, न स्कूलों में इसे पढ़ाया जाता है, न चिकित्सक इसकी खुल कर चर्चा करते हैं, बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने इस तत्व को हमारे आहार से लगभग गायब कर दिया है, जबकि सच्चाई यह है कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है, यह हमें स्वस्थ और तंदुरुस्त रखता है, अनेक गंभीर रोगों से बचाता है, कोशिकीय श्वसन के लिए इसकी उपस्थिति अनिवार्य है, इसके विरह में कोशिकाएं दम तोड़ने लगती हैं, इसके बिना जीवन अकल्पनीय है, इस तत्व का नाम है अल्फा लिनोलेनिक एसिड जो ओमेगा-3 फैट परिवार का मुखिया है और जिसका भरपूर स्त्रोत है अलसी।
अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ALA) की क्वांटम साइंस
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- यह एक ओमेगा-3 फैट है क्योंकि इसमें पहला डबल बांड ओमेगा कार्बन से तीसरे कार्बन के बाद बना है
- जहां भी चेन में डबल बांड बनता है चेन कमजोर पड़ जाती है, इसलिए मुड़ जाती है
- इस मोड़ में डिलोकेलाइज्ड इलेक्ट्रोन्स इकट्ठे हो जाते हैं। हल्के होने के कारण ये इलेक्ट्रोन्स ऊपर उठकर बादल की तरह तैरते हुए दिखाई दिए इसलिए बडविग ने इन्हें इलेक्ट्रोन्स क्लाउड या पाई- इलेक्ट्रोन्स की संज्ञा दी है। बडविग ने पेपरक्रोमेटोग्राफी से यह सब स्पष्ट देखा
- जीवन ऊर्जा से भरपूर उपचारक इलेक्ट्रोन्स ही हमारी जीवन शक्ति है
- ये इलेक्ट्रोन्स हमें ऊर्जावान, बलवान, बुद्धिमान, निरोगी और चिरंजीवी बनाते हैं
- ये इलेक्ट्रोन्स ही ऑक्सीजन को कोशिका में आकर्षित करते हैं
- ये इलेक्ट्रोन्स ही कैंसर को हील करते हैं
- बडविग ने इन्हें सबसे बड़ा अमरत्व घटक माना है
- कैंसर उपचार तो इस विज्ञान का ट्रेलर मात्र है पिक्चर तो अभी बाकी है दोस्तों
- बडविग ने हमारे आहार का सबसे अहम तत्व फैट्स को माना है और कहा है कि प्रोटीन (अर्थात मैं पहला हूँ) नाम फैट्स को दिया दाना चाहिए था
- हमारा दुर्भाग्य है कि इस विज्ञान को न कहीं पढ़ाया जाता है और न बडविग के बाद इस पर कोई रिसर्च हुई है
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डेंडेलियन -शेर के दंत करे कैंसर का अंत
आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि सर्वव्यापी, साधारण से डेंडेलियन (हिंदी में सिंहपर्णी या कुकरौंधां) नाम के पौधे की जड़ कई तरह के कैंसर में चमत्कारी साबित हो रही है। हाल ही हुई शोध से भी यही संकेत मिले हैं। डेंडेलियन एक फ्रेंच “शब्द dent-de-lion से लिया गया है, जिसका अर्थ है “शेर के दांत। विंडसर रीजनल कैंसर सेंटर, ओंतारियो कनाडा के डॉ. कैरोलिन हैम के अनुसार क्रोनिक माइलोमोनोसाइटिक ल्यूकीमिया के एक गंभीर मरीज जॉन डिकार्लो को डॉक्टर्स ने सिर्फ चार मंहीने का समय दिया था। किसी ने उसे डेंडेलियन की जड़ की चाय पीने की सलाह दे डाली। चार महीने बाद बिलकुल ठीक होकर जॉन हॉस्पीटल पहुँचा तो डॉक्टर्स अचंभित थे और इसे डेंडेलियन का बड़ा चमत्कार मान रहे थे। विंडसर यूनिवर्सिटी के बायोकेमिस्ट सियाराम पांडे और साथी डेंडेलियन पर रिसर्च कर रहे हैं और बहुत उत्साहित हैं क्योंकि उनकी टीम को रिसर्च के लिए सरकार ने 215,000 डालर दिए हैं। मशहूर हर्बलिस्ट मारिया ट्रेबेन भी डेंडेलियन को ल्यूकीमिया समेत कई बीमारियों में प्रयोग करती है। डॉ. बुडविग ने भी इसे अपने सलाद में शामिल करने की सलाह दी है। आधा पौन टीस्पून पाउडर को ठंडे पानी या औरेंज ज्यूस में मिला कर दिन में एक बार सेवन करें। सॉफ्ट ड्रिंक, शराब या कोई गर्म लिक्विड में नहीं लें। तीन चार दिन में आपको अच्छा महसूस होने लगेगा, क्योंकि नया खून बनना शुरू हो जायेगा। तीन-चार हफ्तों में तो आपकी इम्यूनिटी पुख्ता होकर कैंसर पर पकड़ मजबूत कर लेगी। दर्द में राहत मिलने लगेगी। धीरे-धीरे ही सही पर कैंसर जड़ से ठीक होने लगेगा।
डेंडेलियन की कहानी जॉर्ज केन्र्स की जुबानी
जॉर्ज केन्र्स को टर्मिनल स्टेज का प्रोस्टेट कैंसर था। डॉक्टर्स जवाब दे चुके थे। जॉर्ज परेशान थे, लेकिन शायद मरना नहीं चाहते थे। तभी उन्हें किसी की आवाज सुनाई दी, जॉर्ज तुझे कुछ करना ही पड़ेगा। तू डेंडेलियन के जड़ की चाय पीना शुरू कर दे, तू 4-6 महीने में ठीक हो जायेगा। इसकी जड़ को कैसे सुखाना है, कितनी मात्रा लेनी है या चाय कैसे बनाना है, सब कुछ बता दिया। जॉर्ज ने पीछे मुड़ कर देखा तो कोई नहीं था। जॉज अचंभित था, शायद कोई मजाक करके निकल गया या सचमुच कोई आकाशवाणी हुई हो।
लेकिन जॉज ने इसे ईश्वर का आदेश समझा। बस अगले दिन उसने डेंडेलियन की जड़ें इकट्ठी की और उनकी चाय लेना शुरू कर दिया। तीन हफ्ते में उसकी कमर का दर्द ठीक होने लगा। साढ़े पांच महीने में वह बिलकुल स्वस्थ हो चुका था। फिर जॉर्ज ने बड़ी मुश्किल से एक लंग कैंसर के मरीज को यह इलाज लेने के लिए तैयार किया। 3-4 महीने में यह मरीज भी ठीक हो गया। इस तरह जॉर्ज का हौसला बढ़ता गया और वह इस सरल सुलभ और सस्ती चाय से कैंसर के मरीजों का उपचार करने लगा।
“हैल्थ ऑफ इंडिया” में बडविग प्रोटोकॉल कवर स्टोरी के रूप में
यह दुनिया की बहुत बड़ी साइंटिस्ट डॉ बडविग को मेरी छोटी सी श्रद्धांजलि है। आज मैं बहुत खुश हूँ। आज “हैल्थ ऑफ इंडिया” के नये अंक में कैंसर का सफलतम उपचार बडविग प्रोटोकोल कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित हुआ है। डॉ. जोहाना बडविग ने पहली बार किसी भारतीय पत्रिका के कवर पेज की शोभा बढ़ाई है। डॉ बडविग इस सदी की महान वैज्ञानिक है, जिन्होंने कैंसर और क्वांटम बायोलोजी पर वर्षों तक शोध की है। पत्रिका के संपादक डॉ. विनोद प्रजापत ने बतलाया कि यह कवर स्टोरी भारत के विख्यात बडविग विशेषज्ञ डॉ. ओ.पी.वर्मा ने लिखी है, जो इस विषय पर 7 वर्ष से शोध कर रहे हैं। बडविग उपचार पर डॉ. वर्मा की पुस्तक “कैंसर कॉज़ एंड क्योर” अमेज़ोन डॉट कॉम पर बेस्ट सेलर है। यह उपचार कैंसर के मूल कारण पर प्रहार करता है। कैंसर का मूल कारण कोशिका में ऑक्सीजन की कमी हो जाना है। इस खोज के लिए जर्मनी के डॉ. वारबर्ग नॉबल पुरस्कार से नवाज़े गए। उन्होंने यह भी बतलाया कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि पनीर में पाया जाता है और दूसरा एक फैटी एसिड, जिसे पहचानने में वे नाकामयाब रहे।
1949 में जोहाना ने पेपरक्रोमेटोग्राफी तकनीक द्वारा उस रहस्यमय फैट को पहचाना। वह फैट था अल्फा लिनोलेनिक एसिड जो अलसी के तेल में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह एक ओमेगा-3 फैट है जिसमें सक्रिय और ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। ये इलेक्ट्रोन ही कोशिका में ऑक्सीजन को खींचते हैं और इनकी उपस्थिति में कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। फिर क्या था उन्होंने मरीजों को अलसी का तेल तथा पनीर देना शुरू किया। नतीजे चौंका देने वाले थे। कैंसर के इलाज में सफलता की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे, उनकी गांठे छोटी हो गई थी। इस तरह जोहाना ने अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार विहार को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया। इसमें अलसी के तेल, अपक्व जैविक आहार, मेडीटेशन, कॉफी एनीमा और सोडा बाइकार्ब बाथ को शामिल किया गया है।
यह उपचार कैंसर के हर रोगी तक पहुँचना चाहिए और सरकार को इसकी जागरुकता और शोध को प्रोत्साहन देना चाहिए। इस उपचार से 90% प्रामाणिक सफलता मिलती है। उन्हें नोबल प्राइज के लिए 7 बार नोमिनेट किया गया। बुडविग ने यह भी साबित किया कि ट्रांसफैट से भरपूर वनस्पति और रिफाइंड तेल मनुष्य के सबसे बड़े दुष्मन हैं और इन्हें प्रतिबंधित कर ने की पुरजोर वकालत की। नियमित अलसी के तेल का सेवन कर के इस रोग से बचा जा सकता है।
डॉ विनोद प्रजापत ने यह बतलाया कि बडविग प्रोटोकोल से वे स्वयं बहुत प्रभावित हैं और “हैल्थ ऑफ इंडिया” के हर अंक में डॉ वर्मा के बडविग उपचार संबंधी लेख प्रकाशित करते हैं। जर्मनी के बडविग सैंटर और “पीपुल अगेंस्ट कैंसर” संस्था के निर्देशक श्री लोथर हर्नाइसे ने इस कवर स्टोरी के प्रकाशन में बहुत रुचि दिखाई और हमारे प्रयास की बहुत भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्री लोथर ने डा बडविग के साथ वर्षों तक कार्य किया है और बडविग के साथ “कैंसर द प्रोब्लम एंड द सोल्यूशन” नामक पुस्तक लिखी है। लोथर की “कीमोथेरेपी हील्स कैंसर एंड वर्ल्ड इज़ फ्लेट बैस्ट” सेलर रही है।
डॉ. ओ.पी.वर्मा ने बतलाया कि कैंसर एक कमजोर व असहाय रोग है और बुडविग प्रोटोकोल इसका सस्ता, सरल, सुलभ, सुरक्षित और संपूर्ण समाधान है। वे कहते हैं कि, मैं बडविग को अपना आइडॉल मानता हूँ और यह बायोग्राफी उस महान शख़्सियत के लिए मेरी ओर से एक छोटी सी श्रद्धांजलि भर है।
कैंसर की डॉक्टर जोहाना बुडविग शोध किया पहचाना
अलसी तेल पनीर मिलाया किया अचंभित फल जो पाया
जन हित धर्म कर्म चमकाया सात बार नोबल ठुकराया
कर्क रोग से सब जग हारा अलसी खिला खिला उपचारा
बडविग का कैंसररोधी आहार–विहार
क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्कट रोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान
डॉ जोहाना बडविग (जन्म 30 सितम्बर, 1908 – मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन बायोकैमिस्ट और चिकित्सक थी। उन्होंने फिजिक्स, बायोकैमिस्ट्री तथा फार्मेसी में मास्टर और नेचुरापेथी में पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की । वे जर्मन सरकार के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च में सीनियर एक्सपर्ट थीं। उन्होंने फैट्स और कैंसर उपचार के लिए बहुत शोध किए। कैंसर के मुख्य कारण की खोज 1931 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कर ली थी। जिसके लिये उन्हें नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया। उन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि यदि सामान्य कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति 48 घन्टे के लिए 35 प्रतिशत कम कर दी जाए तो वह कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। सामान्य कोशिकाएँ अपनी जरूरतों के लिए ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऊर्जा बनाती है, लेकिन ऑक्सीजन के अभाव में कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं। विदित रहे कि यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। हमारे शरीर की ऊर्जा ए.टी.पी. है और ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज के एक अणु से अड़तीस ए.टी.पी. बनते हैं, लेकिन फर्मेंटेशन से सिर्फ दो ए.टी.पी. प्राप्त होते हैं। वारबर्ग और अन्य शोधकर्ता मान रहे थे कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं, पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि पनीर में पाया जाता है और दूसरा कुछ फैटी एसिड्स जिन्हें कोई पहचान नहीं पा रहा था। वारबर्ग भी इस रहस्यमय फैट को पहचानने में नाकामयाब रहे। आप नोबलप्राइज डॉट ऑर्ग पर जाइये, सारे सत्य आपके सामने आ जाएंगे।
डॉ. जोहाना ने 1949 में पेपरक्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की, जिससे सेल्युलर रेस्पिरेशन के सारे राज़ उजागर हो गए। वे रहस्यमय फैट पहचान लिए गए, जिन्हें दुनिया भर के साइंटिस्ट ढूँड़ रहे थे। वे फैट्स थे अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैट का मुखिया) और लिनोलिक एसिड (ओमेगा-6 फैट का मुखिया), जो अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये हमारे शरीर में नहीं बन सकते इसलिए इन्हें असेंशियल फैट्स का दर्जा दिया गया। ये इलेक्ट्रोन युक्त अनसेचुरेटेड फैट्स हैं। इनमें सक्रिय, ऊर्जावान और नेगेटिवली चार्ज्ड इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। इलेक्ट्रोन्स वजन में हल्के होते हैं और अपने मूल अणु से इनका जुड़ाव तनिक ढीला-ढाला होता है, जिसके फलस्वरूप ये मूल अणु से ऊपर उठ कर आवारा बादल की तरह तैरते हुए दिखाई देते हैं। इसलिए बडविग ने इन्हें इलेक्ट्रोन क्लाउड या पाई-इलेक्ट्रोंस की संज्ञा दी। यह सब बडविग ने पेपर क्रोमेटोग्राफी द्वारा स्पष्ट देखा। ये इलेक्ट्रोन ही कोशिका में ऑक्सीजन को खींचते हैं। बडविग ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि फैट्स हमारे शरीर के लिए सबसे जरूरी तथा सजीव तत्व हैं और प्रोटीन (प्रोटीन=पहला या सबसे जरूरी) नाम फैट्स को दिया जाना चाहिए था।
स्वस्थ मानव शरीर में भरपूर इलेक्ट्रोंस होते हैं, उसमें सूर्य के फोटोंस को आकर्षित और संचय करने की क्षमता भी सबसे ज्यादा होती है। जब तक उसके शरीर में भरपूर फैटी एसिड्स तथा ऑक्सीजन रहती है, सारी जीवन क्रियाएं सुचारु रूप से संपन्न होती है,वह सदैव ऊर्जावान तथा निरोगी रहता है वह सदैव भविष्य में आगे की ओर अग्रसर होता है। इसे मानुष की संज्ञा दी गई है और इसके विपरीत अमानुष की भी परिकल्पना की गई है। अमानुष में फोटोन और इलेक्ट्रोंस बहुत कम होते हैं, वह ऊर्जाहीन तथा कमजोर होता है, उसकी जीवन क्रियाएं शिथिल रहती हैं,उसके विचार और सोच नकारात्मक हो जाती है और वह विभिन्न रोगों से ग्रस्त रहता है और जीवन रेखा में गर्त और मृत्यु की ओर धंसता चला जाता है।
इस तकनीक से यह भी स्पष्ट हो गया कि ट्रांसफैट से भरपूर वनस्पति और गर्म करके बनाए गए रिफाइंड तेलों में ऊर्जावान इलेक्ट्रोंस अनुपस्थित थे और वे श्वसन विष साबित हुए। बुडविग ने इन्हे स्यूडो फैट या लिक्विड प्लास्टिक की संज्ञा दी और इनको मानव का सबसे बड़ा शत्रु बताया और इन्हे प्रतिबंधित करने की पुरज़ोर वकालत की।
कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए जरूरी दोनों तत्व मालूम हो चुके थे। फिर क्या था बडविग ने सीधे 640 कैंसर के मरीजों के ब्लड सेम्पल्स लिए और मरीजों को अलसी का तेल तथा पनीर मिला कर देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके ब्लड सेम्पल्स लिए गए। नतीजे चौंका देने वाले थे। बडविग द्वारा एक महान खोज हो चुकी थी। कैंसर के इलाज में सफलता की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। लोगों के खून में फोस्फेटाइड और लाइपोप्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ गई थी और मरीजों का हीमोग्लोबिन बढ़ गया था। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे और उनकी गांठे छोटी हो गई थी। उन्होने अलसी के तेल और पनीर के जादुई और आश्चर्यजनक प्रभाव दुनिया के सामने सिद्ध कर दिए थे। इस तरह जोहाना ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार विहार को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ। वे1952 से 2002 तक कैंसर के हजारों रोगियों का उपचार करती रहीं। उन्हें हर तरह के कैंसर में 90 प्रतिशत प्रामाणिक सफलता मिली।
हिपोक्रेटस ने एक बार कहा था कि आधुनिक युग में भोजन ही दवा का काम करेगा और बडविग ने इस तथ्य को सिद्ध करके दिखलाया। बडविग उपचार से डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, आर्थराइटिस, हार्ट अटेक, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। वे भी पूरी दुनिया का भ्रमण करती थीं। अपनी खोज के बारे में व्याख्यान देती थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थी, जिनमें “फैट सिंड्रोम”, “डैथ आफ ए ट्यूमर”, “फ्लेक्स आयल – ए ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज”, “आयल प्रोटीन कुक बुक”, “कैंसर – द प्रोबलम एण्ड सोल्यूशन”आदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी आखिरी पुस्तक 2002 में लिखी थी।
नोबल प्राइज़ डॉट ऑर्ग इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहता था, पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।
एक बार स्टुटगर्ट के साउथ जर्मन रेडियो स्टेशन पर 9 नवम्बर, 1967 (सोमवार) को रात्रि के पौने नौ बजे प्रसारित साक्षात्कार में डॉ. बडविग ने गर्व से कहा और जिसे पूरी दुनिया ने सुना, “यह अचरज की बात है कि मेरे उपचार द्वारा कैंसर कितनी तेज़ी से ठीक होता है। 84 वर्ष की एक महिला को आंत का कैंसर था, जिसके कारण आंत में रुकावट आ गई थी और आपातकालीन शल्यक्रिया होनी थी। मैंने उसका उपचार किया, जिससे कुछ ही दिनों में उसके कैंसर की आंख पूरी तरह हो गई, ऑपरेशन भी नहीं करना पड़ा और वह स्वस्थ हो गई। इसका ज़िक्र मैंने अपनी पुस्तक “द डैथ ऑफ ए ट्यूमर” की पृष्ठ संख्या 193-194 में किया है। मेरे उपचार से कैंसर के वे रोगी भी ठीक हो जाते हैं, जिन्हें रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी से कोई लाभ नहीं होता है और जिन्हें यह कह कर छुट्टी दे दी जाती है कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है। इन रोगियों में भी मेरी सफलता की दर 90% है।”
कैंसररोधी योहाना बडविग आहार विहार
डॉ. बडविग आहार में प्रयुक्त खाद्य पदार्थ ताजा, इलेक्ट्रोन युक्त और ऑर्गेनिक होने चाहिए। इस आहार में अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और ज्यूस के रूप में लिये जाते है, ताकि रोगी को भरपूर एंजाइम्स मिले। बडविग ने इलेक्ट्रोन्स और एंजाइम्स के महत्व पर बहुत जोर दिया है।
प्रातः
इस उपचार में सुबह सबसे पहले प्रोबायोटिक्स से भरपूर सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का ज्यूस या छाछ लेना चाहिये। इसमें भरपूर एंजाइम्स और विटामिन-सी होते हैं।
नाश्ता
नाश्ते से आधा घंटा पहले गर्म हर्बल या ग्रीन टी लें। चीनी का प्रयोग वर्जित है। यह नाश्ते में दिये जाने वाले ओमखंड के फूलने हेतु गर्म और तरल माध्यम प्रदान करती है। दिन भर में रोगी ऐसी चार-पांच हर्बल चाय पी सकता है।
ओमखंड
इस आहार का सबसे मुख्य व्जंजन सूर्य की अपार ऊर्जा और इलेक्ट्रोन्स से भरपूर ओम-खंड है जो अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल और लो-फैट पनीर को मिला कर बनाया जाता है । ध्यान रखें कि बनने के 15 मिनट के भीतर रोगी आनंद लेते हुए इसका सेवन करें। 3 टेबलस्पून अलसी का तेल और 6टेबलस्पून पनीर को हेंड ब्लेंडर द्वारा अच्छी तरह ब्लेंड करें। फिर इस मिश्रण में 2 टेबलस्पून ताज़ा पिसी अलसी, थोड़े ड्राई फ्रूट्स और कटे हुए स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी, आदि फल मिलाएं। अन्य फलों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
धूप-सेवन
बडविग आपने मरीजों को रोज 20 मिनट धूप में बैठने की सलाह देती थी। इससे उनके शरीर में विद्यमान इलेक्ट्रोन्स सूर्य के फोटोन्स को आकर्षित करते हैं। सूर्य के फोटोन्स शरीर में पहुँच कर हीलिंग को प्रोमोट करते हैं।
रोज सूर्य की धूप का सेवन करना अनिवार्य है। इससे विटामिन-डी प्राप्त होता है। रोजाना बीस मिनट के लिए धूप में लेटना आवश्यक है। दस मिनट सीधा लेटे और करवट बदलकर दस मिनट उल्टे लेट जायें, ताकि शरीर के हर हिस्से को सूर्य के प्रकाश का लाभ मिले।
10 बजे
नाश्ते के एक घंटे बाद रोगी को गाजर,चुकंदर, मूली, लौकी, पालक, टमाटर, शलगम आदि सब्जियों का ताजा ज्यूस पिलाएं।
दोपहर का खाना
उबली सब्जियां मल्टी ग्रेन रोटी, ब्राउन राइस आदि के साथ दे सकते हैं। सलाद जरूरी है, जिसे अलसी के तेल और दही से बनी सलाद ड्रेसिंग के साथ लिया जाए। इसके बाद ओमखंड की दूसरी खुराक दी जाए।
दोपहर बाद
दोपहर के बाद संतरा, अनार, अंगूर आदि का ताज़ा ज्यूस पिलाएं। एक घंटे बाद पपीता या अन्नानास का ज्यूस पिलाया जाए। पपीता और अन्नानास के ताजा रस में भरपूर एंज़ाइम होते हैं जो पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
सायंकालीन भोजन
डिनर में सूप, दालें, राजमा, कुट्टू, चावल दिए जाएं। बडविग ने सबसे अच्छा अन्न कुट्टू (buckwheat) को माना है।
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