प्रश्न 1 – क्या खाना बनाने में अलसी का तेल काम में लिया जा सकता है?
उत्तर – कभी भी खाना बनाने के लिए अलसी के तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिये। इसे कभी भी गर्म नहीं करना चाहिये। कोशिकीय श्वसन के लिए अति आवश्यक वसा अम्ल 420 सेल्सियस (अर्थात 1080 फार्हेनाइट) पर खराब हो जाते हैं। हां जब व्यंजन ठंडा हो जाये तो परोसते समय अलसी का तेल डाला जा सकता है। बुडविग घृत या ऑलियोलक्स बेहतर विकल्प है। (Johanna Budwig: Der Tod des Tumors – Band II [The Death of the Tumor, Vol. II], page 158)
कभी कभार जब बहुत ही आवश्यक हो तब हल्का सा तड़का लगाने के लिए नारियल का एक्सट्रा वर्जन या वर्जन तेल काम में लिया जा सकता है। हमेशा कौशिश यही कीजिये कि सब्जियां या शोरबा आदि पहले पानी डाल कर पकाना शुरू करें और आखिर में नारियल का थाड़ा सा तेल डाल लें। यदि कभी तलना बहुत ही जरूरी हो तो नारियल का तेल में एक या दो मिनट के लिए तलें, बाद में स्वाद के लिए ऑलियोलक्स डाल जा सकता है।
तलने के लिए आप पानी का भी प्रयोग कर सकते हैं और आखिर में ऑलियोलक्स डाल सकते हैं। यदि आप सही तरीके से पकाएंगे तो स्वाद में कोई फर्क नहीं आयेगा। “फैट्स दैट हील एण्ड फैट्स दैट किल” के लेखक ऊडो इरेस्मस ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि तलने के लिए सबसे अच्छा माध्यम पानी है। सुनने में तो यह दिल्लगी लगती है, लेकिन यह सचमुच सत्य है।
प्रश्न 2 – क्या अलसी के तेल को खराब होने से बचाने के लिए साथ में विटामिन-ई भी लेना चाहिये। क्या विटामिन-ई शरीर में अलसी के तेल को ऑक्सीडाइज़ होने से बचायेगा?
उत्तर – यह सही है कि शरीर में विटामिन-ई अलसी के तेल को स्थिर रखेगा और ऑक्सीडाइज़ होने से बचायेगा। लेकिन इस तेल का ऑक्सीडाइज़ होने का यही गुण (ऑक्सीजन को आकर्षित करने का गुण) तो उसे गंधकयुक्त प्रोटीन से जोड़ने के लिए आवश्यक होता है। यदि आप अलसी के तेल द्वारा ऑक्सीजन को आकर्षित करने की इस प्रक्रिया में दखल देते हैं तो बुडविग प्रोटोकोल के मूल सिद्धांत में ही व्यवधान पैदा करते हैं। इसलिए कृत्रिम अनुपूरक (Suppliments) विटामिन्स या एंटीऑक्सीडेंट्स एक सीमा के बाद प्राटोकोल में समस्या ही पैदा करते हैं।
डॉ. बुडविग ने अपनी पुस्तक “डैथ ऑफ अ ट्यूमर” में लिखा है कि तेलों में मिलाये जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स श्वसन-विष के समान हैं। विटामिन-ई भी एंटीऑक्सीडेंट है, इसलिए वह काशिका-भित्ति द्वारा ऑक्सीजन को खींचने की क्षमता कम करता है।
प्रश्न 3 – क्या कृत्रिम और अनुपूरक एंटीऑक्सीडेंट्स बुडविग प्रोटोकोल के सिद्धांतों के विरूद्ध हैं?
उत्तर – अत्यंत असंत्रप्त वसा-अम्ल (Unsaturated Fatty Acids) मनुष्य के लिए आवश्यक है, जीने के लिए बहुत जरूरी हैं, इनका कोई विकल्प ही नहीं है। इलेक्ट्रोन्स से भरपूर इनके असंत्रप्त द्वि-बन्ध आसानी से ऑक्सीजन को सोखने में सक्षम होते हैं। आधुनिक युग में मार्जरीन और तेल बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान तेलों की शैल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए इनको गर्म करते हैं, हाइड्रोजनेट करते हैं और फिर कृत्रिम तथा मानव-निर्मित एंटीऑक्सीडेंट मिलाते हैं। इस प्रक्रिया में तेलों के नेगेटिवली चार्ज्ड अति सक्रिय पाइ-इलेक्ट्रोन्स पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं और साथ ही ऑक्सीजन को सोखने की क्षमता भी खत्म हो जाती है। बुडविग इन्हीं कृत्रिम और मानव-निर्मित एंटीऑक्सीडेंट्स के विरुद्ध थी।
क्या आप जानते हैं कि हम बीमार क्यों होते हैं? क्योंकि हम इलेक्ट्रोन्स के लुटेरों को ग्रहण करते हैं, या दूसरे शब्दों में हम श्वसन-क्रिया को अवरुद्ध करने वाले भोजन और विष जैसे मार्जरीन (डालडा), जीवधारी वसा, मक्खन, नाइट्रेट, रेडियेशन और साइटोस्टेटिक्स (कीमोथेरेपी) का बहुत सेवन करते हैं। ये सब इलेक्ट्रोन्स चुराने में माहिर हैं। साथ ही मानव-निर्मित एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे विटामिन्स आदि भी श्वसन-क्रिया में व्यवधान पैदा करते हैं। इसलिए अधिक मात्रा में कृत्रिम विटामिन्स का सेवन नहीं करें। हां, फलों, सब्जियों के रूप में प्राकृतिक विटामिन्स लेने में कोई हर्ज नहीं है।
हमे सूर्य से बहुत अनुराग और प्रेम हैं, हम सूर्य के प्रकाश और उसके इलेक्ट्रोन्स (फोटोन्स) के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। हमारे शरीर में इन फोटोन्स के संचय करने की असीम क्षमता होती है। इन फोटोन्स के अवशोषण के लिए जरूरी है कि हमारे ऊतक इन फोटोन्स की लय में लय मिला कर ही गुंजन करे। जैसा कि टी.वी. का एंटीना ट्यून्ड होगा तभी हम दूरदर्शन यंत्र के पटल पर चलचित्र देख सकते हैं। फोटोन्स के अवशोषण के लिए हमारी कोशिकाओं में असंत्रप्त लिनोलेनिक और लिनोलिक अम्ल (ओमेगा-3 और ओमेगा-6 अम्ल) होना जरूरी है। ये सल्फरयुक्त प्रोटीन्स के साथ मिल कर फोटोन्स की बैंडविड्थ पर ही गुंजन (रिज़ोनेट) करते हैं, तभी हमारा शरीर फोटोन्स को खींचता है, संचय करता है और जरूरत पड़ने पर फोटोन्स को मुक्त (Release) करता है।
यही जीवन ऊर्जा है जिसकी वजह से हम जीवित हैं और यही ऊर्जा हमारे जीवन की अनेक क्रियाओं जैसे पीएच स्तर, ए.टी.पी. निर्माण, प्रोटीन्स की उपयोगिता आदि का नियंत्रण करती है। बुडविग के अनुसार हमारा शरीर इन सजीव और उपचारक इलेक्ट्रोन्स को तभी खींचता है जब हमारे एंटीना के दोनों ध्रुव सल्फ्हाइड्रिल और असंत्रप्त वसा-अम्ल लय में लय मिला कर गुंजन करते हैं।
एक शोध में मछली के तेल, विटामिन-ई तथा सी और सिसप्लेटिन से कैंसर और स्थलांतर या मेटास्टेसिस का उपचार किया गया था। जहां अलसी ओमेगा-3 फैट का सबसे बड़ा वानस्पतिक स्रोत है वहीं मछली ओमेगा-3 फैट का बड़ा जीवधारी स्रोत है और कैंसररोधी भी हैं। लेकिन इस शोध में हर बार यह देखा गया कि विटामिन्स मिलाने पर मछली के तेल का कैंसररोधी प्रभाव कम हो जाता था। दूसरे शब्दों में कैंसर के उपचार में एंटीऑक्सीडेंट्स नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस तरह यह शोध भी एंटीऑक्सीडेंट्स के संबंध में बुडविग के विचारों की पुष्टि करती है।
प्रश्न 4 – यदि एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर में ऑक्सीजनेशन को अवरुद्ध करते हैं, तो हमे उनका सेवन क्यों करना चाहिये? मैं यह भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि जब प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट्स लेने में कोई समस्या नहीं है तो मानव-निर्मित और कृत्रिम एंटीऑक्सीडेंट्स लेने में दिक्कत क्या है?
उत्तर – देखिये प्राकृतिक आहार में विटामिन-ई अपेक्षाकृत कम मात्रा में होता है और यह एंटीऑक्सीडेंट्स की तरह कार्य नहीं करता है और लेकिन कृत्रिम और सांद्र विटामिन-ई में यह बुडविग की परिकल्पना के अनुसार एंटीऑक्सीडेंट्स की तरह व्यवहार करता है। इसलिए कैंसर के रोगी में कोशिकीय ऑक्सीजनेशन को बढ़ाने के लिए बुडविग आहार में एंटीऑक्सीडेंट्स का देना उचित नहीं है।
प्रश्न 5 – क्या अधिक मात्रा में अलसी का तेल लेने से शरीर में मुक्त-मूलक क्षति या फ्री रेडीकल डेमेज हो सकता है? क्या डॉ. बुडविग ने इसके बारे में लिखा है? और शरीर में पर्याप्त एंटीऑक्सीडेंट्स न होने के कारण क्या यह मुक्त-मूलक क्षति कैंसर कोशिका के अलावा स्वस्थ कोशिका को भी मारती है?
उत्तर – बुडविग प्रोटोकोल में हम अलसी के तेल को सल्फरयुक्त प्रोटीन के साथ बिना मिलाये नहीं लेते हैं। बुडविग ने इस बारे में स्पष्ट लिखा है। जहां तक मैं जानता हूँ बुडविग ने मुक्त-मूलक क्षति (Free Radical Damage) के बारे में नहीं लिखा है। लेकिन इस आहार में हम अलसी के तेल को पनीर के साथ लेते हैं, जो अच्छी तरह मिलने के बाद एक अलग ही पदार्थ बन जाता है।
बुडविग आहार का मुख्य सिद्धांत यह है कि अत्यंत असंत्रप्त वसा-अम्ल प्रोटीन के साथ मिल कर रक्त और शरीर में ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाते हैं और इससे कैंसर के उपचार को बल मिलता है। यह आहार कैंसर और स्वस्थ कोशिकाओं पर मूल-मूलकों के आक्रमण द्वारा उन्हें नष्ट नहीं करता जैसा कि कीमोथेरेपी में होता है। डा. बुडविग का दृष्टिकोण अलग था। और वे सही थी। उनके उपचार की सफलता उनके दृष्टिकोण को स्वतः सिद्ध करती है।
प्रश्न 6 – डॉ. बुडविग ने अलसी के तेल की जगह मछली का तेल क्यों प्रयोग नहीं किया जबकि उसमें भी पर्याप्त ओमेगा-3 वसा अम्ल होते हैं?
उत्तर – मेरे खयाल से मछली का तेल बनाने के लिए आमतौर पर उसे उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। वह अच्छी तरह जानती थी कि गर्म करने से तेल खराब और टॉक्सिक हो जाता है। दूसरा अधिकांश मछलियों में घातक पारा तथा अन्य भारी धातुओं का अंश रहता हैं, जो शरीर में एकत्रित होता रहता है। संभवतः इन्हीं कारणों से उन्होने मछली के तेल का प्रयोग नहीं किया है।
प्रश्न 7 – बुडविग उपचार में शहद, फल तथा फलों के रस का खूब प्रयोग किया गया है। जबकि मैं सोचता हूँ कि शर्करा हर अवस्था में कैंसर की पोषक है?
उत्तर – बुडविग ने कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि शहद प्रयोग करना जरूरी है, उन्होंने तो यह कहा है कि शहद प्रयोग लिया जा सकता है। हां कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि शहद के साथ अलसी का तेल और पनीर ज्यादा अच्छी तरह मिलता है। आप दिन भर में 4-5 चाय चम्मच प्राकृतिक शहद (यदि उसमें कोई मिलावट नहीं की नहीं गई है तो) प्रयोग कर सकते हैं। .
परीष्कृत शर्करा (Refined sugar) आपके लिए सर्वथा वर्जित है। बुडविग ने कठोरता से लिखा है। उन्होनें बेरी प्रजाति के फल, अन्य फल तथा फलों के रस उनके पौष्टिक तथा कैंसररोधी गुणों के कारण प्रयोग करने की सलाह दी है। फलों में जटिल शर्करा होती है, और साथ में अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। इसलिए इनका प्रयोग निश्चित रूप से आपके लिए कल्याणकारी है। बुडविग ने यह उपचार बहुत सोच-समझ कर विकसित किया है।
प्रश्न 8 – मैं बुडविग प्रोटोकोल ले रहा हूँ और क्या मुझे शरीर में कहीं रक्तस्राव हो सकता है?
उत्तर – एक रोगी ने शिकायत की थी कि उसके पैर में एक छोटी सी गाँठ निकालने के बाद दो बेन्डेज बांधनी पड़ी तब जाकर खून बंद हुआ। विदित रहे कि अलसी का तेल रक्त को थोड़ा पतला करता है। लेकिन यह बहुत गंभीर बात नहीं है, जब तक आप रक्त को पतला करने की एंटी-कोएगुलेंट्स दवाएं नहीं ले रहे हो। ऐसी स्थिति में चिकित्सक को दवाइयों की मात्रा संतुलित कर देनी चाहिये। बुडविग प्रोटोकोल ले रहे व्यक्ति को एस्पिरिन लेने की भी जरूरत नहीं होती है।
आपको खून जमने में सहायक प्राकृतिक विटामिन-के की आवश्यकता होती है। ये आपको प्राकृतिक रूप में हरी सब्जियों जैसे केली, कॉर्ड, ब्रुसल्स स्पाउट्स, पर्सले, पालक, मेथी, ब्रोकोली आदि में मिलता है। गोली की जगह इन हरी सब्जियों का सेवन करना उचित है। इनमें विटामिन-के के साथ अन्य विटामिन्स जैसे ए, बी, सी और कैल्शियम, मेग्नीशियम आदि भी होते हैं। वैसे भी बुडविग आहार में दवाओं की अपेक्षा प्राकृतिक उत्पाद लेने की सलाह दी जाती है। विभिन्न सब्जियां में (100 ग्राम) विटामिन-के की मात्रा इस प्रकार होती है।
केली, स्विस कॉर्ड | 800 माइक्रोग्राम | पर्सले | 500 माइक्रोग्राम |
ब्रूसल्स स्प्राउट्स, पालक | 400 माइक्रोग्राम | ब्रोकोली | 250 माइक्रोग्राम |
प्रश्न 9 – ये श्वसन विष “Respiratory Poisons” क्या है, जिन्हें डा. बुडविग ने त्यागने के लिए कहा है?
उत्तर – जैसा कि ऊपर भी लिखा गया है कि कुछ भोज्य पदार्थ और विष जैसे मार्जरीन (वनस्पति घी), जीव-वसा (Animal Fats), मक्खन, नाइट्रेट, रेडियेशन और साइटोस्टेटिक्स (कीमोथेरेपी) इलेक्ट्रोन्स के चोर कहलाते हैं, क्योंकि ये शरीर में ऑक्सीजन को आकर्षित करने वाले ऊर्जावान तथा सजीव इलेक्ट्रोन्स की दौलत को नष्ट करते हैं। या दूसरे शब्दों में श्वसन विष वे भोज्य पदार्थ और रसायन हैं जो कोशिकीय श्वसन में व्यवधान पैदा करते हैं। ये हाइड्रोजनीकृत वसा तथा कई जीव-वसा आदि हैं, जो कोशिका-भित्ति में जमा हो जाते हैं और उसकी प्राकृतिक वसीय संरचना (Natural Fatty Acid Make Up) को बिगाड़ देते हैं। ऑक्सीजन के परिवहन में बाधा पैदा करते हैं। भोज्य और अभोज्य पदार्थों में भी कई रसायन जैसे प्रिज़र्वेटिव्स (मांस में नाइट्रेट्स, ऐंथ्राक्विनोन्स, बैंजोइक एसिड आदि) भी कोशिकीय श्वसन में बाधा पैदा करते हैं। डॉ. वारबर्ग ने सिद्ध किया था कि कोशिका में ऑक्सीजन की कमी होने पर वह कैंसर कोशिका में परिवर्तित हो जाती है। बुडविग प्रोटोकोल का मुख्य प्रयोजन कोशिकीय श्वसन को उत्प्रेरित करना, कोशिका की ऑक्सीजन को खींचने की क्षमता पुनः स्थापित करना और रक्त की ऑक्सीजन परिवहन क्षमता को बढ़ाना है। यह स्वस्थ रहने तथा कैंसर को परास्त करने के लिए बहुत जरूरी है और उपचार प्रक्रिया की केन्द्रीय धुरी है।
प्रश्न 10 – मैं सोचता हूँ कि डॉ. बुडविग ने एक तरफ तो जीव-वसा के सेवन को मना किया है, दूसरी तरफ कई जगह उन्होंने लिखा है कि आप कई तरह के चीज़ या पनीर का सेवन कर सकते हो? क्यों?
उत्तर – यहां दो बाते हैं। एक तो बुडविग मनोवैज्ञानिक तौर पर आपको मसालेदार और स्वादिष्ट भोजन से पूरी तरह वंचित नहीं रखना चाहती है। दूसरी बात यह है कि पनीर में वसा के साथ भरपूर सल्फरयुक्त प्रोटीन भी होते हैं। सबसे अधिक जीव-वसा तो बेकन या इसी तरह के वसायुक्त मांस में होती है। हरी घास चरने वाली गाय के जैविक दूध में भरपूर हितकारी ओमेगा-3 वसा-अम्ल होते हैं। इसलिए रोगी की स्थिति और इन सब पहलुओं को ध्यान में रख कर निर्णय लिया जाता है कि कौन से जीव-वसा का सेवन किया जा सकता है और किस जीव-वसा से पूर्ण परहेज़ करना है। हमेशा निम्न-वसा (Low Fat), जैविक और ताजा पनीर या चीज़ ही काम में लेना चाहिये।
इससे आपको लाभप्रद ओमेगा-3, संतुलित खनिज तथा अन्य पोषक तत्व मिलेंगे। इसमें कीटनाशक, प्रतिजैविक (Antibiotics), अन्य टॉक्सिक और कैंसरकारी भी नहीं या नगण्य मात्रा में होंगे। इसके अलावा जानवर की हत्या भी नहीं करनी पड़ेगी। आप एक खुश जानवर से ही पौष्टिक और लाभदायक दूध की अपेक्षा कर सकते हो।
प्रश्न 11 – क्या मैं मक्खन या घी खा सकता हूँ?
उत्तर – इस उपचार में मक्खन या घी से परहेज करना है। आप पनीर खा सकते हैं। ऑलियोलक्स मक्खन का बेहतर और स्वादिष्ट विकल्प है। इसे बनाना भी आसान है। हम इसे बुडविग घ्रत कहते हैं।
प्रश्न 12 – दही या पनीर बनाने के लिए क्या में बकरी का दूध प्रयोग कर सकता हूँ?
उत्तर – जहां गाय का दूध उपलब्ध नहीं होता है, वहां बकरी का ताज़ा दूध काम में लिया जा सकता है। बकरी का दूध पौष्टिक होता है और इसमें वसा की मात्रा भी कम होती है। अधिकांश जगह हमें गाय का ताज़ा और जैविक दूध नहीं मिलता है। तब हमें डेरी के पाश्चरीकृत (pasteurized) दूध पर निर्भर रहना पड़ता है। यह जैविक भी नहीं होता है। इस दूध से तो बकरी का दूध निश्चित रूप से बेहतर है।
प्रश्न 13 – सुनहरी और भूरी अलसी में क्या फर्क है? इसीतरह लिनसीड और फ्लैक्ससीड में भी क्या फर्क है?
उत्तर – सुनहरी और भूरी अलसी में कोई फर्क नहीं है। लिनसीड और फ्लैक्ससीड दोनों अलसी बीज को ही कहते हैं। हां, सुनहरी अलसी की लिनोवा नामक एक प्रजाति में ओमेगा-3 फैट कम होते हैं।
प्रश्न 14 – बुडविग प्रोटोकोल से कैंसर की गाँठें कितने दिन में छोटी होना शुरू होती है?
उत्तर – इस प्रश्न का उत्तर देना थोड़ा मुश्किल है। एक सज्जन को नॉन-होजकिन्स लिंफोमा हुआ था। बुडविग प्रोटोकोल लेने के 6 सप्ताह बाद उनकी गाँठे छोटी होनी शुरू हो गई थी। 12 सप्ताह में गाँठे पूरी तरह घुल चुकी थी। कुछ रोगियों को तीन सप्ताह में ही फर्क दिखाई देने लगता है, तो कुछ को महीनो लग जाते हैं। लेकिन बुडविग प्रोटोकोल से कुछ ही हफ्तों में गाँठों का बढ़ना और अन्य अंगों में फैलना (Metastasis) रुक जाता है। एक महिला को स्तन में कैंसर था। उसने रेडियो और कीमो लेने से मना कर दिया और सिर्फ बुडविग प्रोटोकोल लेना ही उचित समझा। उसके स्तन में दो गाँठें थी। कुछ महीनों में उसकी गाँठें तो छोटी हो गई और अब वह बहुत उत्साहित महसूस करती है। अपनी नौकरी भी कर रही है। कैंसर का पता चलने के बाद वह कभी बीमार भी नहीं हुई है।
मैं यह कहना चाहता हूँ कि कैंसर की गाँठें हर रोगी के लिए चिंताजनक बात है और हर रोगी चाहता है कि जितना जल्दी हो सके ये गाँठें ठीक हो जाये। बुडविग प्रोटोकोल लेने से गाँठों का बढ़ना जल्दी ही रुक जाता है और स्वास्थ्य में सुधार होता है, भले उन्हें पूरी तरह ठीक होने में थोड़ा समय लगे। (आभार healingcancernaturally.com)
प्रश्न 15 – डॉ. बुडविग की प्रमाणिक सफलता दर 90% से ज्यादा है। आजकल इस उपचार से कितने प्रतिशत रोगी ठीक होते हैं और वे यह उपचार कितने अरसे तक लेते हैं?
उत्तर – हीलिंग कैंसर नेचुरली के सम्पादक उला श्मीद ने अपनी वेब साइट पर लिखा है कि इन दिनों उनके समूह के 32 कैंसर रोगी बुडविग उपचार ले रहे हैं। इनमें से चार रोगियों को विशेष लाभ नहीं मिल रहा है। इन चार रोगियों में से तीन नियमित कीमोथेरेपी ले रहे हैं और चौथा अपने हृदय रोग के लिए कई तरह की औषधियां ले रहा है। उनके अनुसार इन चार रोगियों में असफलता का कारण कीमो और दवाइयां हैं। कीमोथेरेपी और दवाइयां बुडविग प्रोटोकोल में व्यवधान पैदा करती है। इनके समूह में एक स्त्री को स्तन कैंसर है, जिसने कीमो और रेडियो लेने से मना कर दिया है और सिर्फ बुडविग प्रोटोकोल ही ले रही है। उसकी गाँठें निरंतर छोटी हो रही हैं और जब बहुत अच्छा महसूस करती है।
कुछ वर्ष पहले इनके पिता और बहिन को भी कैंसर हो गया था। तब उनको बुडविग प्रोटोकोल के बारे में मालूम नहीं था। कीमोथेरेपी देने के बाद उन्हें इस उपचार के बारे में किसी ने बतलाया था। तब उन्होंने दोनों को यह प्रोटोकोल शुरू करवाया और उसके बाद दोनों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कीमो के बाद उनकी बहिन बहुत कमजोर हो चुकी थी, सिर के सारे बाल उड़ चुके थे और वह दिन भर बिस्तर पर पड़ी रहती थी। लेकिन प्रोटोकोल शुरू करने के दो हफ्ते बाद वह एक व्यवसाय यात्रा पर विदेश भी चली गई थी। अब एक वर्ष से दोनों स्वस्थ हैं। बहिन ने रेडियोथेरेपी लेने से मना कर दिया है और वह बहुत ऊर्जावान और सुन्दर महसूस कर रही है।
इस समूह में किसी ने भी बुडविग प्रोटोकोल लेना नहीं छोड़ा है। उला श्मीद स्वयं भी स्वस्थ रहने के उद्देष्य से रोज दो चम्मच अलसी का तेल और अलसी का सेवन करते हैं। उन्होंने कहा है कि वह मूर्ख ही होगा जो एक बार शुरू करने के बाद इस उपचारक प्रोटोकोल को छाड़ेगा।
प्रश्न 16 – जब भी मैं तेल और पनीर को मिलाता हूँ, मुझे इसका स्वाद तेलीय और अरुचिकर लगता है।
उत्तर – आप इसमें चौथाई या आधा नीबू मिलायें, स्वाद बहुत बढ़िया हो जायेगा। आप नीबू या सन्तरे का तेल भी मिला सकते हैं। जयपुर की हैल्थ फर्स्ट कंपनी का तेल बहुत ही स्वादिष्ट है। अगली बार आप तेल इनसे खरीदें। आपको कोई शिकायत नहीं होगी।
प्रश्न 17 – इस प्रोटोकोल में कौन से एंटीऑक्सीडेन्ट्स, पूरक विटामिन, दवाइयां आदि नहीं लिए जाने चाहिये?
उत्तर – बुडविग के अनुसार साइटोस्टेटिक्स दवाइयां, हार्मोन आदि इस प्रोटोकोल को साथ नहीं लेना चाहिये। इनके अलावा भी कुछ दवाइयां हो सकती हैं। वैसे मोटे तौरपर उन्होंने कोई भी रसायन लेने से मना किया है और अधिकांश दवाइयां रसायन की श्रेणी में ही आती हैं।
उच्च मात्रा में अधिकांश कृत्रिम तथा मानव-निर्मित एंटीऑक्सीडेन्ट्स और विटामिन्स संदेह के घेरे में आते हैं। डॉ. बुडविग ने अपने उपचार में न्यूट्रीशनल ईस्ट फ्लेक्स को छोड़ कर कोई भी विटामिन या पूरक तत्व प्रयोग में नहीं लिया है।
प्रश्न 18 – क्या बुडविग प्रोटोकोल के साथ अतिरिक्त पूरक तत्व और विटामिन्स देने की जरूरत होती है? क्या इस प्रोटोकोल के साथ अन्य वैकल्पिक उपचार जैसे एसियक चाय दे सकते हैं? कोई नुकसान तो नहीं होगा?
उत्तर – बुडविग प्रोटोकोल बहुत आसान उपचार है। बस हमें इसके मूल सिद्धांतों से भटकना नहीं चाहिये। उन्होंने इस उपचार को सफलतापूर्वक दशकों तक प्रयोग किया है।
उनके अनुसार विटामिन्स हमें ताजा और जैविक भोजन (और ताजा फलों के रस) द्वारा प्राप्त होने चाहिये । इनमें सारे विटामिन्स और पोषक तत्व प्राकृतिक और संतुलित अवस्था में मिलते हैं। साथ में ये सूर्य के इलेक्ट्रोन्स और फोटोन्स तथा अन्य तत्वों से भी लबालब रहते हैं। जबकि विटामिन की गोलियों में प्रायः मानव-निर्मित विटामिन होते हैं, जिनमें कई प्रिजर्वेटिव्स आदि भी मिलाये जाते हैं।
बुडविग प्रोटोकोल शुरू करने के कुछ ही समय में कई लोग अपनी मर्जी और सुविधा के अनुसार बदलाव करना शुरू कर देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हम रेस्टोरेन्ट के मेन्यू से अपनी पसन्द के व्यंजन चुनते हैं। और इस तरह प्रोटोकोल का मूल प्रारूप ही बदल देते हैं। कई रोगी सिर्फ अलसी के तेल और पनीर को ही प्रोटोकोल समझते हैं और अन्य परहेज़ और निर्देशों को को अनदेखा करने लगते हैं। यही छोटी-छोटी गलतियां ही असफलता का कारण बनती हैं।
बुडविग प्रोटोकोल के साथ कुछ प्राकृतिक उपचार दिये जा सकते हैं, जैसे हाइड्रोथेरेपी, पंचकर्म, होम्योपेथी, त्वचा की ब्रशिंग, ई.एफ.टी., मसाज और मनोचिकित्सा। यह उपचार पूर्णतः प्राकृतिक है। जो भोज्य पदार्थ, चाय, जड़ी-बूटियाँ या तरीके इस प्रोटोकोल के मूल सिद्धांत में व्यवधान नहीं डालते हैं, उन्हें अपनाया जा सकता है।
प्रश्न 19 – मुझे ओवेरियन कैंसर के लिए टेमोक्सीफेन लेने की सलाह दी गई है, मुझे क्या करना चाहिये?
उत्तर – हीलिंग कैंसर नेचुरली के सम्पादक उला श्मीद की बहिन को भी कैंसर-विशेषज्ञ ने टेमोक्सीफेन लेने की सलाह दी थी। उसे स्टेज IV स्तन कैंसर था, इसलिए उसे रेडियोथेरेपी लेने की सलाह भी दी गई थी। लेकिन उसने दोनों के लिए मना कर दिया था। उसे बुडविग प्रोटोकोल लेते 22 महीने हो चुके हैं। वह प्रोटोकोल को पूरी ईमानदारी से ले रही है और वह आश्चर्यजनक रूप से स्वस्थ महसूस कर रही है। उसे नहीं मालूम कि आगे क्या होगा, लेकिन अभी तक तो सब ठीक चल रहा है। आप उससे प्रेरणा ले सकते हैं।
प्रश्न 20 – मुझे स्तन कैंसर है और यदि मैं नॉन-ऑर्गेनिक दूध (जिसमें संभवतः ग्रोथ हार्मोन की मिलावट होती है) प्रयोग करूँ तो क्या ठीक रहेगा?
उत्तर – मेरे खयाल से आपको ग्रोथ हार्मोन के बारे में चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। याद रहे कि बुडविग उपचार HER2Nu (estrogen positive) और non-HER2 दोनों कैंसर पर अच्छी तरह काम करता है।
लेकिन जहाँ तक मूल प्रोटोकोल का प्रश्न है, इसमें कृत्रिम हार्मोन्स का प्रयोग वर्जित है। जहां तक संभव हो और उपलब्ध हो सके तो जैविक और हार्मोन-रहित प्राकृतिक दूध ही काम में लेना चाहिये। जब कोई चारा ही नहीं हो तभी डेयरी का नॉन-ऑर्गेनिक दूध काम में लिया जाये। इस दूध में हार्मोन के साथ एंटीबायोटिक्स और हानिकारक तत्व भी मिले होते हैं।
प्रश्न 21 – मुझे इस्ट्रोजन-निर्भर कैंसर है, इसलिए मैं अलसी का पावडर नहीं ले पाती हूँ क्योंकि इसमें इस्ट्रोजन जैसा तत्व लिगनेन होता है। मुझे क्या करना चाहिये?
उत्तर – इस्ट्रोजन-निर्भर कैंसर के लिए अलसी में इस्ट्रोजन जैसा तत्व (Lignan) होना अच्छी बात है। कैंसर की गांठ में यह लिगनेन (वानस्पतिक-इस्ट्रोजन) इस्ट्रोजन-रिसेप्टर से चिपक जाता है और मानव इस्ट्रोजन रिसेप्टर से जुड़ नहीं पाता है। इस तरह यह इस्ट्रोजन जैसा तत्व इस्ट्रोजन के प्रभाव को अवरुद्ध करता है।
प्रश्न 22 – मैं लम्बे समय से बुडविग प्रोटोकोल ले रहा हूँ लेकिन मेरे कैंसर में कोई फायदा नहीं दिख रहा है, कारण बतलाएं?
उत्तर – बुडविग प्रोटोकोल काम नहीं करने के पीछे हमेशा कोई न कोई कारण होता है। सबसे अहम कारण तो यही होता है कि अक्सर लोग इस प्रोटोकोल को गंभीरता से नहीं लेते हैं। इसमें बहुत सारी बातें आ जाती हैं, जैसे आप केमीकल्स, दवाइयां या कीमोथेरेपी ले रहे हों। इसमें रेडियेशन (रेडियोथेरेपी या अन्य किसी भी स्रोत से रेडियेशन), प्रिज़र्वेटिव्स, विटामिन्स, एंटीऑक्सीडेन्ट्स, प्रतिबंधित भोज्य पदार्थ, तनाव आदि भी शामिल हैं। कुछ प्रश्न बहुत अहम हैं, जैसे आप कितना अलसी का तेल/पनीर ले रहे हैं? उसमें क्या-क्या मिलाते हैं? क्या आप मिश्रण को सही तरह मिला रहे हैं? क्या आप काई दवा, कीमो, रेडियेशन तो नहीं ले रहे हैं?
इस उपचार की सफलता के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप ज्यादा से ज्यादा भोज्य पदार्थ कच्चे सेवन करें (अपक्व आहार) और भोजन में एंजाइम्स की मात्रा भरपूर हो। पपीता और अन्नानास एंजाइम्स के उत्कृष्ट स्रोत हैं। प्रोबायोटिक्स भी बहुत जरूरी हैं। सॉवरक्रॉट, छाछ, दही, केफिर आदि प्रोबायोटिक्स का अच्छे स्रोत हैं।
कुछ रोगियों के शरीर में अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 वसा-अम्ल लिनोलेनिक अम्ल (LNA) का लम्बी लड़ के ओमेगा-3 (EPA और DHA) परिवर्तन नहीं हो पाता है। शरीर सिर्फ 5 से 10 प्रतिशत लिनोलेनिक अम्ल ही ई.पी.ए. और डी.एच.ए. बन पाते हैं जिनमें उत्कृष्ट प्रदाहरोधी गुण होते हैं। यह भी बुडविग प्रोटोकोल काम नहीं करने का कारण हो सकता है। शायद इसीलिए बुडविग में आहार में न्यूट्रीशनल ईस्ट फ्लेक्स प्रयोग करने की सलाह दी है, क्योंकि इसमें भरपूर प्राकृतिक विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स होते हैं जो इस परिवर्तन के लिए जरूरी होते हैं।
इस संदर्भ में कई प्राकृतिक स्वास्थ्य शोधकर्ता और उपचारक कहते हैं कि हमारे शरीर को वह भोजन नहीं लगता जो हम खाते हैं, बल्कि वह लगता है जिसका हम पाचन और अवशोषण कर पाते हैं। अच्छी पाचनशक्ति होना बहुत जरूरी है। शायह इसीलिए बुडविग ने कैंसर की आखिरी अवस्था से जूझ रहे गंभीर रोगियों को शैम्पेन या रेडवाइन पिलाने की सलाह दी है। क्योंकि शैम्पेन पाचन-क्रिया में एकदम सुधार लाती है।
प्रश्न 23 – अलसी के तेल को कैसे संरक्षित करना चाहिये और यह कैसे पता चलता है कि यह खराब हो गया है?
उत्तर – अलसी का तेल प्रकाश, उष्मा और ऑक्सीजन के प्रति बहुत संवेदनशील होता है और इसके संरक्षण में बहुत सावधानी की जरूरत होती है। तेल की सीलबंद शीशी को रेफ्रिजरेटर के ऊपर वाले फ्रोज़न हिस्से में रखा जाय तो लगभग एक वर्ष तक तेल खराब नहीं होता है। खुली हुई शीशी को यदि फ्रीज़र में रखा जाये तो भी तेल कई महीने तक खराब नहीं होता है। यदि इसे रेफ्रिजरेटर में नीचे रखा जाये तो लगभग तीन महीने तक तेल खराब नहीं होता है।
इस तेल के खराब होने का सबसे बड़ा कारण प्रकाश है। इसलिए इसे हमेशा धातु या गहरे रंग की अपारदर्शी शीशी में नाइट्रोजन भर कर ही बंद किया जाता है। शीशी से तेल निकालते समय सूर्य या तेज बल्ब या ट्यूबलाइट के सीधे प्रकाश से भी बचाना चाहिये।
हमेशा अच्छी गुणवत्ता वाला ताज़ा, जैविक, कोल्ड प्रेस्ड तेल ही खरीदें। खरीदने से पहले एक्सपाइरी डेट देख लें। यह भी सुनिश्चित कर लें कि इसमें विटामिन-ई, लिगनेन, लहसुन या कोई हर्बल तत्व नहीं मिला हो। कभी भी खराब तेल का सेवन नहीं करें। इसमें कैंसरकारी तत्व बन जाते हैं। इसे फैंक दें या रंग-रोगन आदि में मिलने के काम में लें। बाजार में मिलने वाला अलसी का तेल भूल कर भी प्रयोग में नहीं लें।
प्रश्न 24 – क्या कैंसर में शल्य क्रिया की जानी चाहिये? (मैंने यह भी सुना है कि निश्चेतन दवाएं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है। ये दवाएं शरीर में 12 महीने तक बनी रहती हैं।)
उत्तर – डॉ. बुडविग कीमो और रेडियोथेरेपी के सख्त खिलाफ थी और अधिकांश रोगियों में शल्य-क्रिया को भी अनावश्यक समझती थी। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसने अपने रोगी की शल्य-क्रिया करवाई हो। वह महसूस करती थी कि कई रोगियों में शल्य-क्रिया व्यर्थ ही की जाती है। एक बार गोटिंजन, जर्मनी में एक स्विस महिला की कैंसर की गांठ के कारण उसकी आंत अवरुद्ध हो गई थी, और उसे अस्पताल में भरती किया गया। यह क्रिसमस का दिन था और शल्यकर्मी उसकी शल्य-क्रिया करना चाह रहे थे, लेकिन डॉ. बुडविग ने मना कर दिया। बुडविग ने उस महिला का उपचार किया, सात हफ्ते के बाद उस महिला में कैंसर का नामोनिशान भी मिट चुका था। इससे यह सिद्ध तो होता है कि शल्य करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये।
प्रश्न 25 – क्या अलसी के तेल और पनीर का मिश्रण (ओम-खंड) बना कर अगले दिन या अगले आहार के लिए बना कर रखा जा सकता है?
उत्तर – बुडविग अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण या अन्य कोई व्यंजन पहले से बना कर रखने के खिलाफ थी। ओम खंड ताज़ा बनना चाहिये और बनने के दस मिनट के भीतर उसे ग्रहण कर लेना चाहिये। हां, ऑलियोलक्स को बना कर 15-20 दिन तक फ्रीज में रखा जा सकता है, क्योंकि लहसुन, प्याज (जिनमें भी सल्फरयुक्त प्रोटीन होते हैं) और नारियल का तेल उसे सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 26 – इस प्रोटोकोल का डायबिटीज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – बुडविग कहती है कि शरीर में अत्यंत संत्रप्त वसा-अम्ल की कमी और काशिकाओं द्वारा शर्करा की उपयोगिता कम होने के कारण डायबिटीज होती है। उसने अपनी पुस्तक “फ्लैक्सऑयल – एज अ ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थ्राइटिस, हार्ट इनफार्कशन एण्ड अदर डिज़िज़ेज” के पृष्ठ संख्या 12 पर लिखा है कि डायबिटीज में मुख्य विकृति फैट मेटाबोलिज्म की होती है, शर्करा की समस्या द्वितीयक (Secondary) है।
उन्होने “फैट सिन्ड्रोम” पुस्तक की की पृष्ठ संख्या 62 पर लिखा है कि आजकल पेनक्रियास में कार्य का बोझ, थकावट और ट्यूमर्स का आघटन बढ़ रहा है। यदि डायबिटीज का रोगी बुडविग प्रोटोकोल के सिद्धांत के अनुसार अत्यंत असंत्रप्त वसा-अम्ल का सेवन शुरू कर देता है, तो फैट मेटाबोलिज्म को अवरुद्ध करने वाले दूषित फैट और विष बाहर निकल जाते हैं और तब डायबिटीज में आरोग्यप्रोप्ति निश्चित है।
लोथर हरनाइसे ने कहते हैं कि कैंसर के रागी जो कई वर्षों से रोज इन्सुलिन का इंजेक्शन ले रहे थे, लेकिन जब उन्होंने बुडविग प्रोटोकोल शुरू किया तो उसके बाद उन्हें कभी इंसुलिन की जरूरत ही नहीं पड़ी। यह बुडविग प्रोटोकोल का विचित्र साइड इफेक्ट है।
प्रश्न 27 – डायबिटीज टाइप-2 के लिए अलसी अच्छी है या बुरी?
उत्तर – अलसी डायबिटीज के रोगी में शर्करा और रक्त में कॉलेस्टेरोल दोनों को कम करती है। अतः डायबिटीज टाइप-2 के रोगी को बुडविग प्रोटोकोल देने से बहुत लाभ मिलना निश्चित है।
प्रश्न 28 – मुझे डायबिटीज है और मैं बुडविग प्रोटोकोल ले रहा हूँ। क्या मेरे लिए कोई विशेष निर्देश हैं?
उत्तर – यदि आपको डायबिटीज है, तो आपको सूखे मेवे, खजूर, केले, सन्तरे आदि का सेवन सिमित करना चाहिये (बंद नहीं करें)। स्ट्रॉबैरी, चैरी, गूजी बैरी, टमाटर, नीबू, सेब, आड़ू, नाशपाती आदि के सेवन में कोई परेशानी नहीं है। आपको दालचीनी का प्रयोग बढ़ाना चाहिये।
प्रश्न 29- मुझे बुडविग प्रोटोकोल में नीरसता और उबाऊपन महसूस होने लगा है, क्या इसे दूर करने का कोई उपाय है?
उत्तर – मुझे बड़ा अचरज हो रहा है कि आपको यह प्रोटोकोल उबाऊ लग रहा है। मेरे विचार से तो यह बहुत उदार, पौष्टिक, स्वादिष्ट और दिव्य आहार चिकित्सा प्रणाली है। बस कुछ ही भोज्य पदार्थों से परहेज करना है, जैसे हाइड्रोजनेटेड वसा, जीव-वसा, शक्कर, मैदा, प्रिज़र्वेटिव, रसायन, मूंगफली, मांस, अंडे आदि। और ये सब हैं भी तो हमारे शरीर के लिए घातक या श्वसन विष, फिर हम इनका त्याग क्यों नहीं करें।
आप सारे फल, सारी सब्जियां, अन्न, दालें, मसाले, सूखे मेवे, प्याज, लहसुन, धनिया, पुदीना आदि सब ले सकते हैं। ऑयल-प्रोटीन कुक बुक में बुडविग ने आपके लिए अनेकों स्वादिष्ट व्यंजन बतलाये हैं। उनमें कंचन हिम जैसी आइसक्रीम है, त्रिभुवन सलाद है, डेजर्ट है और अंगुली चबा जाने वाले लज़ीज़ सूप भी हैं।
प्रश्न 30 – कुक बुक में कई जगह अलसी के तेल को बिना पनीर के ही काम में लिया गया है। जबकि बुडविग ने कहीं पर लिखा है कि अलसी का तेल बिना प्रोटीन के साथ लेने से फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है?
उत्तर – आपने सही कहा है कि कुछ व्यंजनों में अलसी के तेल को बिना पनीर के भी प्रयोग किया है। इनमें मुख्यतः सलाद ड्रेसिंग या अन्य व्यंजन हैं जिनमें बहुत कम तेल प्रयोग किया जाता है। अलसी का तेल नुकसान तो कर ही नहीं सकता है। यह तो ऊर्जावान और दिव्य भोजन है। हां, बुडविग के अनुसार एक टेबल स्पून अलसी का तेल बिना पनीर के लिया जा सकता है।
प्रश्न 31 – मैंने सोचा था कि इस उपचार में अल्कॉहल वर्जित है। लेकिन मुझे अचरज हो रहा है कि इसमें तो शैम्पेन और वाइन पीने की भी अनुमति है। क्या शैम्पेन इसलिए फायदा करती है कि उसे अलसी मिला कर पिया जाता है? क्या शैम्पेन ऑर्गेनिक ही लेना चाहिये?
उत्तर – बुडविग ने कहा है कि शैम्पेन के ग्लास में पिसी अलसी मिला कर दिन में दो बार तक लिया जा सकता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं अपितु वैकल्पिक है। मेरे खयाल से गंभीर रोगी के लिए यह सोमरस या अमृत पेय (Elixir) की तरह है। बुडविग ने इसका कोई विशेष कारण नहीं बतलाया है। उन्होंने कहा है कि इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई थी, लेकिन शैम्पेन प्रयोग करने का कोई गंभीर कारण है। मेरे खयाल से शैम्पेन में पिसी अलसी मिलाना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि शैम्पेन अच्छी और जैविक हो और उसमें किसी रसायन की मिलावट भी नहीं हो।
अपनी कुक बुक में बुडविग ने कई व्यंजन बनाने में रम या वोडका का प्रयोग भी किया है। इस उपचार में दर्द निवारक और अन्य दवाओं पर प्रतिबंध होता है। ऐसे में सोने से पहले रेड वाइन का एक ग्लास रोगी को दर्द, वेदना और अनिद्रा में राहत देता है।
प्रश्न 32 – यदि रोगी का यकृत कैंसरग्रस्त हो गया है तो क्या करना चाहिये?
उत्तर – यदि रोगी का यकृत कैंसरग्रस्त हो गया है तो पहले अन्तरिम आहार (Transition Diet) शुरू किया जाता है, फिर धीरे-धीरे मुख्य प्रोटोकोल शुरू किया जाता है। बुडविग ने अपनी पुस्तक “डैथ ऑफ अ ट्यूमर” में लिखा है, यकृत और पित्ताशय विकार में शुरूवात पिसी अलसी से की जाती है। अर्थात कई दिनों तक सामान्य आहार के साथ सिर्फ पिसी अलसी या लिनोमेल दिया जाता है। कुछ दिनों बाद 1 टेबल स्पून पनीर और 1 टेबल स्पून अलसी का तेल देना शुरू करते हैं। फिर रोगी की स्थिति के अनुसार धीरे-धीरे तेल की मात्रा बड़ाई जाती है। इन गंभीर रोगियों में उपचार का असर बड़ी जल्दी होता है।
अपनी आखिरी पुस्तक कैंसर – “द प्रोब्लम एण्ड द सोल्यूशन” के पृष्ठ संख्या 117 पर बुडविग ने लिखा है:
बुडविग प्रोटोकोल शुरू करने के निर्देश : 1-3 अन्तरिम दिन –
- पहला दिन ओटमील के दलिये में लिनोमेल मिलाकर हर घन्टे देना है।
- दूसरे दिन ओटमील सूप के साथ लिनोमेल तीन बार देना है।
- 250 ग्राम लिनोमेल पपीते के रस के साथ और सुबह 10 बजे ताजा गाजर का रस देना है।
रोगी को दिन में तीन बार गर्म पेय जैसे हरी चाय या हर्बल चाय देना चाहिये। गंभीर रोगी इस अन्तरिम आहार को आसानी से पचा लेता है।
प्रश्न 33 – क्या बुडविग ने कॉटेज चीज़ के स्थान पर दही के प्रयोग की अनुमति दी है?
उत्तर – बुडविग ने हमेशा क्वार्क या कॉटेज चीज़ प्रयोग करने के लिए कहा है। कहीं भी दही के प्रयोग की बात नहीं कही है, लेकिन दही के लिए मना भी नहीं किया है। मेरे विचार से अलसी के तेल को पूर्ण रूप से पानी में धुलनशील बनाने के लिए प्रोटीन का घनत्व भी महत्वपूर्ण होता है। दही में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण उसमें प्रोटीन का घनत्व कम होता है। इसलिए दही को कपड़े में बांध कर थोड़ी देर लटका कर रखना चाहिये। इस तरह दही के पनीर में प्रोटीन का घनत्व बढ़ जायेगा और इसे पनीर के विकल्प की तरह प्रयोग में लिया जा सकता है।
प्रश्न 34 – क्या प्रोटोकोल यकृत और अग्न्याशय के कैंसर में भी प्रभावशाली है?
उत्तर – अग्न्याशय के कैंसर में बुडविग प्रोटोकोल बहुत प्रभावशाली है। “हीलिंग कैंसर नेचुरली” ग्रुप के एक रोगी को अग्न्याशय कैंसर था। उसकी हालत बहुत गंभीर थी और उसके ठीक होने की उम्मीद भी नहीं थी। लेकिन उसने उपचार शुरू किया और सात महीनें में उसका कैंसर ठीक हो गया था। आज दो वर्ष हो चुके हैं और वह स्वस्थ तथा जीवित है। अग्न्याशय कैंसर में आपको एक चाय-चम्मच अलसी के तेल से शुरूवात की जाती है और फिर रोगी की पाचन शक्ति के अनुसार बहुत धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाई जाती है। यह रोगी अधिकतर अपक्व आहार ही लेता है, जिसमें मुख्यतः फलों के रस और सब्जियां होती हैं। पपीता और अन्नानास रोज लेता है।
प्रश्न 35 – क्या डॉ. बुडविग ने अलसी के तेल का ऐनीमा लेने की सलाह दी है?
उत्तर – बुडविग ने अलसी के तेल का ऐनीमा लेने की सलाह दी है। सन् 1968 में उन्होंने मालिश, ऑयल पेक और ऐनीमा के लिए एलडी ऑयल “आर” तेल विकसिक किया था।
प्रश्न 36 – मैं पूरी ईमानदारी से बुडविग प्रोटोकोल ले रहा हूँ और शुरू में मुझे फायदा भी हुआ। लेकिन अब अचानक सब कुछ थम सा गया है। जब बुडविग प्रोटोकोल काम करता है तो इसने मुझे मंझधार में क्यों छोड़ दिया है। क्या मैं कभी कैंसर-मुक्त हो सकूँगा? क्या मुझे कुछ महीने और प्रतीक्षा करनी चाहिये?
उत्तर – मुझे खेद है कि मैं कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं हूँ। मैं कुछ प्रश्न पूछता हूँ, जिनसे आपको मार्गदर्शन मिले। जैसे आप क्या खा और पी रहे हैं? क्या आप सब कुछ ऑर्गेनिक ले रहे हैं? यदि आप रुग्ण हैं तो आपको सब कुछ ऑर्गेनिक ही लेना चाहिये। क्या आप आर.ओ. विधि द्वारा शुद्ध किया हुआ रसायन-मुक्त पानी पी रहे हैं? क्या आप भारी तनाव में हैं? क्या आप किसी अनसुलझे भावनात्मक आघात से जूझ रहे हैं? क्या आपके मन में किसी के प्रति बुरी सोच है? क्या आप अवसाद से ग्रस्त हो? आप शरीर पर क्या पहनते हो? क्या आप कोस्मेटिक्स, परफ्यूम, बॉडी क्रीम प्रयोग करते हो? जो कुछ आप शरीर पर लगाते हो उसे त्वचा सोखती है। रंगों या कृत्रिम घातक पदार्थों को त्वचा पर लगाना ठीक नहीं है। परफ्यूम टॉक्सिक है। ऐयर फ्रेशनर टॉक्सिक है। आपको किसी भी तरह के टॉक्सिन के सम्पर्क से बचना चाहिये।
क्या आपने मालूम करने की कौशिश की है कि आपको कैंसर क्यों हुआ है? मेरे विचार से यह पहलू उपचार की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। मैं जानता हूँ कि भीषण तनाव और अनसुलझे भावनात्मक आघात ने मेरी प्रतिरोधक क्षमता कम कर दी है जिसके कारण मेरी गर्दन में गाँठ हुई है। मैं उपचार ले रहा हूँ और अपनी भावनाओं को दुरुस्त करने की कौशिश कर रहा हूँ। यह बहुत मुश्किल है, लेकिन ऐसा करने से मुझे नया जीवन मिलेगा। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि इनमें से कोई बात आप पर लागू होती है। मैं आपको वह बतला रहा हूँ जो मैंने अपने जीवन में सीखा है। सिर्फ यह ही जरूरी नहीं है कि हम अपने मुँह और शरीर में क्या ग्रहण करते हैं। बल्कि यह भी जरूरी है कि हम अपने मन और हृदय में क्या डालते हैं और मन और हृदय से क्या बाहर निकालना चाहिये। शरीर को आरोग्यप्राप्ति तभी होगी, जब मन, हृदय और आत्मा भी निर्मल, निर्वात और निरामय होगे। ये सब हमारे हित या अहित के लिए साथ काम करते हैं। आपको अपने कैंसर को खत्म करने के लिए कोई सही कदम उठाना जरूरी है।
बहुचर्चित शोधकर्ता, चिंतक और उपचारक लोथर हरनाइसे कहते हैं कि सामान्यतः अर्बुद या ट्यूमर मूल समस्या नहीं है (जब तक वह किसी महत्वपूर्ण अंग या उसकी कार्य प्रणाली पर सीधा दबाव या प्रहार नहीं करे)। समस्या तो स्थलान्तर (Metastasis) पैदा करते हैं। सन् 2004 में “क्लिफ्टन लीफ फॉर्चून” पत्रिका में अपने लेख “व्हाई वी आर लूज़िंग वार ऑन कैंसर” में लिखा है कि अंत में हमें स्थानीय मूल कैंसर नहीं मारता है, बल्कि 90% रोगियों की मृत्यु स्थलान्तर (Metastasis) के कारण होती है।
सचमुच ऐसे प्रयोग हुए हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि ट्यूमर एक सेप्टिक टैंक या डिटॉक्सीफिकेशन फैक्ट्री की तरह की काम करते हैं। ये शरीर को नुकसान पहुँचाने वाले अनावश्यक, असिमित और अतिरिक्त टॉक्सिन्स को मुख्य रक्त प्रवाह से निकाल कर अपने अंदर इकट्ठा करते रहते हैं। इसलिए लोथर ट्यूमर को समाधान कहते हैं, न कि समस्या, अर्थात ट्यूमर किसी समस्या के लिए शरीर द्वारा किया हुआ समाधान है। ट्यूमर इसलिए बनता है कि ऐडरीनल का स्राव बंद हो जाता है, जो शर्करा के अपघटन के लिए जरूरी है। शर्करा का अत्यधिक होना खतरनाक है, इसलिए शरीर ट्यूमर उत्पन्न करता है। ट्यूमर खमीर द्वारा शर्करा का ज्वलन करता है और कैंसर कोशिका का तेज गति से विभाजित होने की वजह से बहुत अधिक ऊर्जा – शर्करा का व्यय होता है। इसीलिए ट्यूमर बहुत तेजी से बढ़ते भी हैं। कैंसर कोशिकाएं यकृत की तरह काम करती हैं, लेकिन अधिक दक्षता से। इस तरह ट्यूमर शरीर के टॉक्सिन्स से छुटकारा पाने में मदद करते हैं। बिना ट्यूमर के आप बीमार हो जाओगे। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ट्यूमर आपकी समस्या नहीं बल्कि शरीर की किसी समस्या का समाधान है। जब आप स्वस्थ हो जाते हो, तो ट्यूमर स्वतः गायब हो जाता है। इसीलिए हमें ट्यूमर के शल्य में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये। पहले शरीर को डिटॉक्सीफाई करना चाहिये। यदि फिर भी ट्यूमर बढ़ रहा हो (जैसा कि अमूमन कभी होता नहीं है) तब शल्यक्रिया करनी चाहिये।
ट्यूमर से एक समस्या यह होती है कि वह बहुत ऊर्जा (शर्करा) व्यय करता है, इसलिए रोगी की कमजोरी के कारण मृत्यु हो सकती है। ट्यूमर सामान्य कोशिका से 18 गुना शर्करा व्यय करता है। ऊर्जा के इस नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु लोथर ने तीन उपाय बतलाये हैं।
- बुडविग प्रोटोकोल द्वारा जैविक और ऊर्जावान आहार – अपक्व आहार या ताजा फलों के रस।
- सूर्य का प्रकाश – रोज खुले आकाश में धूप का सेवन करना।
- ऐल डी ऑयल्स – मालिश, एनीमा और ऑयल पेक्स।
प्रश्न 37 – बुडविग कौशिश करती थी जितना जल्दी हो सके उनके रोगी दवाइयां लेना बंद कर दें। लेकिन कई बार यह आसान नहीं होता है क्योंकि उनकी गंभीर तकलीफों के कारण शरीर को उनकी जरूरत पड़ती ही है। क्योंकि ये दवाइयां प्रोटोकोल के असर को कम करती हैं, इलसिए क्या इन्हें छोड़ने के लिए आपके पास कोई सुझाव है?
उत्तर – सबसे पहले तो आप इनकी जगह प्राकृतिक विकल्प ढूँढ़िये। ये कोई जड़ी-बूटी, हाइड्रोथेरेपी, व्यायाम, होम्योपेथी, ऐक्यूपंचर, ई.एफ.टी., चीगोंग या इसी तरह का कोई ऊर्जा-उपचार (जो शरीर में जीवन ऊर्जा “ची” के प्रवाह को बढ़ाने, संतुलित करने या प्रवाह में आई रुकावट को दूर करने का काम करता है) हो सकता है। यह कोई मानसिक विधा जैसे विजुवलाइज़ेशन, रंग चिकित्सा, हीलिंग स्टोन्स आदि भी हो सकते हैं। निर्विषीकरण (Detoxification), शरीर की आंतरिक शुद्धि, वजन पर नियंत्रण में रखना, प्रार्थना, ध्यान आदि बहुत महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 38 – मैंने पढ़ा है कि कई बार रोगी जैसे ही कीमो लेने बंद करता है और बुडविग प्रोटोकोल शुरू करता है, वह ठीक होने लगता है। और सारा श्रेय प्रोटोकोल को दिया जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि वह सिर्फ कीमो कारण ठीक हो रहा हो?
उत्तर – सैद्धांतिक रूप से यह सही हो सकता है। लेकिन मैं सोचता हूँ कि कीमो तुरन्त असर करती है (कीमो के दूरगामी असर कम होते है) और कीमो देने के बाद भी जो कैंसर कोशिकाएं बच जाती हैं, वे और अधिक कठोर तथा प्रतिशोधी (Resistant) हो जाती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि देर से आने वाले सकारात्मक प्रभाव कीमो के कारण नहीं हो सकते हैं। दूसरा बिन्दु यह है कि जो रोगी कीमो या रेडियो नहीं लेते हैं, सिर्फ बुडविग प्रोटोकोल ही लेते हैं, वे तो अपेक्षाकृत जल्दी ठीक होते हैं।
प्रश्न 39 – जब हम कहीं बाहर जाते हैं तब प्रोटोकोल कैसे लेगे?
उत्तर – मान लीजिये कि हम 5 दिन के लिए बाहर जा रहे हैं, तो भी हम प्रोटोकोल पर रह सकते हैं। सिर्फ हमें थोड़ी सूझबूझ और तयारी की आवश्यकता होती है। आप घर से आइस-बॉक्स जरूर लेकर चलें। बाहर हॉटल में फ्रीज़ अमूमन उपलब्ध हो ही जाता है। आप फल और सब्जियों को अच्छी तरह धोकर इस बॉक्स में रख सकते हैं। एक या दो दिन का रस भी निकाल कर आइस-बॉक्स में साथ रखा जा सकता हऐ। आप साथ में कुछ प्लेट्स, प्याले, कांटे, चम्मच, चाकू, छोटा ब्लैंडर, इलेक्ट्रिक केटल, सूखे मेवे, चाय, ओटमील आदि जरूर रख लें। अलसी का तेल, पनीर आदि भी आइस-बॉक्स में साथ लेकर चलें।
ज्यादा लम्बा कार्यक्रम हो तो ज्यूसर भी साथ रख लीजिये। आप पनीर और अलसी के तेल को ब्लैंड करके ओम-खंड बना ही सकते हैं। आप ठंडे या गर्म दूध में अलसी पीस कर ले सकते हैं। सफर में खूब सूखे मेवे, फल, सलाद ले सकते हैं।
प्रश्न 40 – मैं दिन भर में 2 टेबलस्पून अलसी का तेल और 4 टेबलस्पून पनीर लेता हूँ। मैं इससे ज्यादा नहीं ले पाता हूँ। पनीर से मेरा पेट भर जाता है और इसके बाद मुझे कुछ और खाने की इच्छा ही नहीं रहती है। मुझे क्या करना चाहिये?
उत्तर – मुझे ऐसा लगता है कि आप तेल और पनीर के ओम-खंड के साथ इधर-उधर की चीजें भी खाने की कौशिश कर रहे हो। बुडविग के अनुसार आपको उनके द्वारा बतलाया गया आहार ही लेना चाहिये। नाश्ते में बुडविग ने 3 टेबलस्पून तेल और 6 टेबलस्पून पनीर के मिश्रण में 2 टेबलस्पून पिसी अलसी के साथ ताजे, प्राकृतिक और जैविक फल, सूखे मेवे, शहद आदि से बना ओम-खंड लेने की सलाह दी है।
लंच के लिए अलसी के तेल और पनीर में सेब का सिरका (Apple Cider Vinegar) मिला कर सलाद ड्रेसिंग बनाई जाती है। इसके साथ कच्ची सब्जियाँ, मिश्रित आटे की रोटी, थोड़ी दाल, पकी सब्जी आदि ले सकते हैं। लंच के बाद ओम-खंड की एक खुराक और लेना चाहिये।
इसके अलावा एक बार सब्जियों का रस और दो बार फलों के रस में पिसी अलसी मिला कर लेनी चाहिये। सायंकालीन भोजन में रसीली सब्जी या शोरबा, सलाद, चावल, मसूर या राजमा लिया जा सकता है। मक्खन के विकल्प के रूप में ऑलियोलक्स का प्रयोग करना चाहिये। यदि आपको कैंसर या अन्य गंभीर रोग है तो आपके लिए यही भोजन श्रेष्ठ है। इस आहार में फल, सब्जियाँ, अन्न, प्रोटीन और स्वास्थ्यवर्धक वसा सभी कुछ है, जो आपके शरीर को चाहिये।
प्रश्न 41 – अलसी और मछली के तेल में क्या फर्क है, जबकि दोनों में ही ओमेगा-3 फैट होता है? अलसी का तेल और पनीर मछली के तेल से बेहतर क्यों माना जाता है? क्या अलसी के तेल की जगह मछली का तेल प्रयोग करना अच्छा नहीं रहेगा?
उत्तर – वसीस (Fatty) मछलियों जैसे ट्राउट, हैरिंग, सरडीन्स, ऐल्बाकोर, टुना और सालमन में लम्बी लड़ वाले ओमेगा-3 फैट्स आइकोसापेन्टानोइक ऐसिड (EPA) और डोकोसेहेग्जानोइक ऐसिड (DHA) भरपूर होते हैं। अलसी के तेल में 58% अल्फा-लिनोलेनिक ऐसिड (ALA) होता है, जिससे शरीर में ये लम्बी लड़ वाले ओमेगा-3 बनते हैं।
अलसी के तेल में 58% लिनोलेनिक ऐसिड (ALA) होता है। क्या यह संभव है कि इस सारे ए.एल.ए. का कार्य सिर्फ लम्बी लड़ वाले EPA और DHA बनाना ही हो? मैं ऐसा सोचता हूँ कि बुडविग प्रोटोकोल बिना मछली का तेल दिये ही बहुत प्रभावशाली है।
सच तो यह है कि ए.एल.ए. का कार्य सिर्फ EPA और DHA ही बनाना नहीं है, ए.एल.ए. शरीर के कई चयापचय क्रियाओं के लिए बहुत आवश्यक है। सिर्फ ए.एल.ए. को ही आवश्यक वसा अम्ल का दर्जा हासिल है। EPA और DHA आवश्यक नहीं है।
इसे आवश्यक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह हमारे शरीर में नहीं बन सकता है, इसकी अधिकांश मात्रा इसके मूल रूप में ही शरीर में काम आती है। इसलिए बुडविग ने बीजों से निकलने वाले तेल के की पुरजोर वकालत की है। विशेषतः जब इसे सल्फरयुक्त अमाइनो एसिड (प्रोटीन) के साथ लिया जाते है, जो कोशिका के चयापचय में विपरीत ध्रुव की तरह काम करता है। और यह युग्म कोशिका में ऑक्सीजन को चुम्बक की तरह खींचता है। नीचे मैं आपको सरल शब्दों में इसकी कार्य प्रणाली को समझाने की कौशिश करता हूँ।
- ए.एल.ए. सभी कोशिका-भित्तियों का अति-आवश्यक हिस्सा है और उसे पर्याप्त तरलता प्रदान करता है।
- ए.एल.ए. सीधा जीन्स से सम्पर्क करता है और उसे कई तरह के प्रोटीन्स का निर्माण कम या अधिक करने का स्पष्ट सन्देश देता है।
- इसकी कमी से शरीर का विकास धीमा पड़ सकता है।
- यह कोशिका-भित्ति में ऑक्सीजन का परिवहन करता है।
- यह कोशिका-भित्ति में अपने द्वि-बंध के विद्युत-चुम्बकीय बल से प्रोटीन्स को आकर्षित करके रखता है।
कभी-कभी मछली या कोड लिवर तेल काम में लिया जा सकता है, बशर्ते उसमें कोई मिलावट या खोट नहीं हो। यह जरूरी है कि आप सुनिश्चित करलें कि उसे गर्म नहीं किया गया हो, क्योंकि गर्म करने पर उसमें धातक रसायन बन जाते हैं। इसीलिए बुडविग ने जानबूझ कर मछली के तेल को अपने प्रोटोकोल में शामिल नहीं किया है। सच तो यह है कि कोड लिवर तेल की प्रोसेसिंग के समय ही इसे बहुत उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, जिसे आणविक संधनन (Molecular Distillation) कहते हैं। तेल निकालने के लिए अन्य मछलियों को भी बहुत गर्म किया जाता है। इसलिए सिर्फ कोल्ड-प्रेस्ड मछली का तेल ही प्रयोग करें।
यदि आपने बुडविग की पुस्तकों को बढ़ा है तो आपको याद होगा कि उसके उपचार का सिद्धांत फोटोन्स/फ्रिक्वैन्सी पर आधारित है। ए.एल.ए. का महत्व इसलिए भी है कि जब यह दीर्घीकरण और असंत्रप्तिकरण द्वारा स्टेरिडोनिक -> ईकोसाटेट्रोनोइक -> इकोसा पेंटानोइक -> डोकासाहेग्जानोइक एसिड में परिवर्तित होता है। हर चरण में दीर्घीकरण और असंत्रप्तिकरण होता है, जिसमें विटामिन तथा खनिज की भूमिका बहुत आवश्यक होती है। लड़ को लम्बा करने में हाइड्रोजन (जो पानी से लिया जाता है) और फ्रिक्वेंसी समेत इलेक्ट्रोन की जरूरत होती है। यह इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा वसा-अम्ल में संचित होती है।
इस फ्रिक्वेंसी के संतुलन से कोशिका-भित्ति की संरचना भी प्रभावित होती है, और कोशिका की क्रियाशीलता बढ़ती है। तनाव और दबाव की स्थिति में विटामिन बी-6 का स्तर भी कम होता है, जिससे डी-6-डी एंजाइम की भी कमी होती है। इसीलिए बुडविग ने अपने आहार में बी-कॉम्प्लेक्स के प्राकृतिक और बेहतर स्रोत के रूप में न्यूट्रिशनल ईस्ट फ्लैक्स को शामिल किया है।
प्रश्न 42 – एलडी तेल क्या होते है और किस काम में आते हैं? ये कहाँ और कैसे खरीदे जा सकते हैं? मैंने बुडविग की पुस्तकें पढ़ी हैं और प्रोटोकोल ले रहा हूँ, लेकिन मैं गैस, पेट फूलने और कब्जी की शिकायत से बहुत परेशान रहता हूँ। आप मुझे क्या सलाह दोगे?
उत्तर – आपको गैस या पेट फूलने की शिकायत इसलिए रहती है, कि आपका भोजन ठीक से पचता नहीं है, बल्कि ख़मीर (अल्कॉहल से) तथा सड़ने (कीटाणु द्वारा प्रोटीन के अपघटन) से अपघटित हो रहा है। इस स्थिति में आप निम्न उपाय करें।
- पाचन में सहायक एंजाइम्स का सेवन खूब करें।
- बुडविग द्वारा बतलाये हुए एंजाइम से भरपूर भोज्य पदार्थ अपने आहार में शामिल करें।
- दही का खूब सेवन करे, इसमें भरपूर सजीव प्रोबायोटिक्स होते हैं। (मेरे खयाल से लेक्टोबेसीलस ऐसिडोफिलस, बी. बाइफिडस और एल. केसेई सबसे अच्छे प्रोबायोटिक माने जाते हैं। दही आप घर पर आसानी से बना सकते हैं। बाजार में मिलने वाला दही पाश्चराइज़्ड होता है और उसमें हानिकारक शक्कर, एस्पार्टेम (कृत्रिम शक्कर), फ्लेवरिंग्स, एरोमाज़, स्टेबिलाइज़र्स और घातक रसायन मिलाये जाते हैं। एस्पार्टेम से मस्तिष्क में कैंसर हो सकता है। प्रोबायोटिक्स हितकारी जीवाणु होते हैं, जो आंतो में गैस बनाने वाले ईस्ट, फफूँद और अन्य बुरे जीवाणुओं को नियंत्रण में रखते हैं।
- भोजन से आधा घन्टे पहले पानी पियें।
- भोजन को खूब चबा-चबा कर खायें।
- सादा भोजन करें, बहुत सारे भोज्य पदार्थों को एक साथ नहीं मिलाएं।
- पचने में भारी चीजों से बचें।
- भोजन में यह ध्यान रखें कि स्टार्च और प्रोटीन, स्टार्च और अम्लीय पदार्थ, स्टार्च और फल (केला और ब्लूबेरी को छोड़ कर) को मिला कर नहीं खायें।
- आहार में तरल भोज्य पदार्थ (जैसे फलों के रस) ज्यादा होने चाहिये।
- भूख लगने पर ही भोजन करे। आवश्यकता से अधिक भोजन नहीं करें।
- हंसें, नाचे, गाये या उछल कूद करें। अर्थात स्वयं को सक्रिय रखे जिससे आपकी पाचन शक्ति में सुधार हो सके।
- कभी भी गुस्से, चिंता या थकान की स्थिति में भोजन नहीं करें। नकारात्मक भावना पाचन को खराब करती है। भोजन हमेशा शान्त, प्रसन्न और तनावमुक्त होकर तसल्ली से करना चाहिये। भोजन को प्यार के साथ आनंद लेते हुए ग्रहण करना चाहिये।
- भोजन के पाचन के लिए सूर्य का प्रकाश जरूरी है। जहाँ गड़बड़ दिखाई दे, वहाँ (जैसे पेट पर) सूरज की सीधी धूप तकलीफ दूर कर देती है।
- कब्ज़ी के लिए उपरोक्त बदलाव के साथ प्रोबायोटिक दही, ताज़ा फलों के रस और हर्बल चाय का सेवन करें।
- यदि आपको लगता है कि आपके अपच का मुख्य कारण अलसी का तेल और पनीर है तो निम्न बिन्दुओं फर ध्यान रखते हुए उचित बदलाव करें।
- पनीर और तेल का अनुपात 1:2 होना चाहिये। यदि आप पनीर की मात्रा ज्यादा ले रहे हैं तो उसे ठीक करें।
- हमेशा जैविक, अनपाश्चराइज़्स निम्न वसा पनीर प्रयोग करें।
- आप दही का पनीर (yogurt quark) प्रयोग करके देखें। दही को लटका कर उसका पनीर बनाया जा सकता है।
प्रश्न 43 – मैंने इस प्रोटोकोल को एकरसता (Monotonous) और नीरसता के कारण छोड़ बीच में ही दिया (क्योंकि मैं कहीं डिनर पर भी नहीं जा पाता था) और मेरी गांठे फिर से बढ़ने लगी है?
उत्तर – मुझे अफसोस है कि आप पटरी से उतर गये और कैंसर ने फिर से बढ़ना शुरू कर दिया है। ऐसा अनर्थ मत कीजिये। आप तुरन्त उपचार के सही पथ पर आ जाइये। ऐसा भी नहीं है कि आप बाहर डिनर ले ही नहीं सकते हैं, बस आपको सही व्यंजनों का चुनाव करना है।
प्रश्न 44 – मैं बुडविग आहार ले रहा हूँ, लेकिन रेडियेशन के कारण मेरी आंते एकदम कमजोर हो गई हैं। अलसी का तेल और पनीर भी मुझे बहुत तकलीफ देता है। मुझे पेट में तेज दर्द होता है। मैं क्या करूँ?
उत्तर – आप स्वास्थ्यवर्धक और हितकारी ओमेगा-3 को अच्छी तरह पचाने और अवशोषण करने के लिए निम्न निर्देशों का पालन करें।
- आप एलडी तेल की मालिश और ऑयल पेक प्रयोग करे।
- नियमित अलसी के तेल या एलडी तेल का ऐमीना लेना शुरू करें।
- हमारे भोजन का काफी हिस्सा मुँह और भोजन नली द्वारा ही अवशोषित होता है। इसलिए आप अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण को थोड़ा सा मुँह में लेकर देर तक खूब चबायें और फिर निगलें। अब कुछ पल रुक कर दूसरा निवाला ग्रहण करें। इससे भोजन मुँह और भोजन नली की के सम्पर्क में अधिक रहेगा और भोजन का अवशोषण अधिक से अधिक होगा और आपके आमाशय पर भोजन को पचाने का बोझ कम हो जायेगा। इसतरह चबा-चबा कर धीरे-धीरे भोजन करने से बहुत फर्क पड़ता है।
- खूब निर्मल पानी पियें। हमेशा अलसी के तेल और पनीर का मिश्रण बुडविग के निर्दोशानुसार ताजा बनाये।
प्रश्न 45 – क्या बुडविग प्रोटोकोल में पॉ डार्को और इसियक चाय ली जा सकती है?
उत्तर – बुडविग ने अपनी किसी पुस्तक में पॉ डीएक्रो और इसियक चाय के बारे कुछ नहीं लिखा है। इसका यह मतलब भी नहीं है कि इनका प्रयोग नहीं करना चाहिये। बुडविग ने अपने उपचार में जड़ी-बूटी और हर्बल चाय का स्वागत किया है। ये भी हर्बल चाय ही तो हैं। इसलिए इन्हें लेने में कोई दिक्कत नहीं होना चाहिये। पॉ डार्को टेबेबुइया ऐवीलेनेडी या इम्पीटिग्नोसा प्रजाति (Tabebuia Avellanedae or the Impetignosa species) के तने से तैयार की जाती है।
प्रश्न 46 – बुडविग उपचार में पनीर को प्रयोग करने वास्तविक कारण क्या है। मैंने पढ़ा है कि यह अलसी के तेल का अवशोषण बढ़ाता है। यह कैसे कार्य करता है ?
उत्तर – यह सही है कि पनीर अलसी के तेल का पाचन और अवशोषण बढ़ाता है और तेल को पानी में घुलनशील बनाता है।
लेकिन यह कुछ और भी करता है। पनीर में विद्यमान सल्फरयुक्त अमाइनो एसिड्स और अलसी के तेल में विद्यमान आवश्यक वसा-अम्ल एकदूजे से विशेष अनुराग करते हैं और एक दूजे का आलिंगन लेते हैं। इनका यह जुड़ाव या आलिंगन बाहर मिश्रण में ही नहीं अपितु शरीर में भी देखने को मिलता है। ये कोशिका-भित्ति समेत स्वस्थ ऊतकों का निर्माण करते हैं। इस जोड़े में से किसी एक की भी गंभीर कमी होने पर कई विकार हो सकते हैं।
19 वीं शताब्दी में (जब बुडविग पैदा भी नहीं हुई थी) जानवरों पर कुछ प्रयोग किये गये थे, उन्हे प्रोटीन रहित परन्तु फैट्स से भरपूर भोजन दिया गया। कुछ समय बाद वे जानवर मरना शुरू हो गये। लेकिन जब उन्हें अलसी का तेल और प्रोटीन साथ दिया गया तो वे स्वस्थ और तंदुरुस्त होने लगे। यह कितनी अजीब बात है कि इतनी महत्वपूर्ण जानकारी को अनदेखा या भुला दिया गया। बुडविग ने इन जानकारियों के महत्व को समझा और शोध को आगे बढ़ाया। विज्ञान इसी तरह आगे बढ़ता है। बुडविग ने अपनी किताबों में इन पुराने शोधकर्ताओं की उपलब्धियों को पर्याप्त स्थान दिया है।
प्रोटीन और लिनोलेनिक अम्ल का विज्ञान कुछ तो जीवरसायन पर आधारित है। लेकिन इसे पूरी तरह समझने के लिए हमें बुडविग की आँखों से इसके विद्युत-चुम्बकीय पहलू और क्वाण्टम भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार फोटोन्स और सूर्य के इलेक्ट्रोन्स के परस्पर अंतरसम्बंध को देखना पड़ेगा। वह विज्ञान के इस नवजात विषय में पारंगत थी। इन्होंने अकेले इस विषय पर गहन शोध की है और इस विषय को मनुष्य के शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य से सम्बंधित किया है। दुर्भाग्यवश उनके बाद कोई वैज्ञानिक इस महान विषय पर कार्य करने का साहस नहीं जुटा पाया।
जैसे जैसे पौधा बढ़ता है, फोटोन्स और सूर्य के इलेक्ट्रोन्स पौधे और बीज में संचित होते हैं। बुडविग के अनुसार अलसी के तेल में विद्यमान आवश्यक वसाअम्लों में ये सूर्य के इलेक्ट्रोन्स बहुत अधिक मात्रा में संचित रहते हैं, और उन्हें ऋणात्मक विद्युत आवेश देते हैं।
इसके विपरीत सल्फरयुक्त अमाइनो एसिड्स में घनात्मक आवेश होता है। यह द्वि-ध्रुवता (Bipolarity) मनुष्य के ऊतकों के विद्युत सर्किट की कारक है। अलसी का तेल इलेक्ट्रोन दानकर्ता है।
इन्हीं विपरीत ध्रुवों के कारण इलेक्ट्रोन्स का प्रवाह होता है और विद्युत क्षेत्र बनता है जिन्हें बुडविग इलेक्ट्रोन क्लाउड कहती हैं। ये ऊर्जा का संचय करते हैं और जरूरत पड़ने पर ऊर्जा व्यय करते हैं। शरीर में यह इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा जितनी अधिक होगी मनुष्य उतना ही स्वस्थ होगा।
हमारे शरीर में ये सूर्य के इलेक्ट्रोन्स (इनका मूल सूर्य होने के कारण) सूर्य से आने वाले फोटोन्स/इलेक्ट्रोन्स के साथ गुंजन (resonate) करते हैं और उन्हें सूर्य की किरणों से सीधे खींच लेते हैं। इससे हमारे शरीर में ऊर्जा का स्तर और बढ़ जाता है और स्वास्थ्य तथा आरोग्य की प्राप्ति में सुधार होता है। यह जीवन-ऊर्जा स्वास्थ्य के लिए ही नहीं अपितु जीवन के लिए भी नितान्त आवश्यक है। बुडविग ने इस जीवन-ऊर्जा को एंटी-एंट्रोपी घटक (anti-entropy factor) के नाम से परिभाषित किया है। बीमार व्यक्ति में यह बहुत क्षीण होती है। मृत शरीर में यह शून्य हो जाती है। यह विद्युत ऊर्जा या जीवन ऊर्जा ही आत्मा या जीवन है।
कीमोथेरेपी (जिसका उसने हमेशा से कठोरता से विरोध किया है) ले रहे रोगी के लिए बुडविग ने यह सलाह दी है।
कीमो से आपको उबकाई या मिचली आती है। यदि कीमो के बाद आप भोजन करते हो तो भोजन को देखते ही आपको उबकाई आने लगती है। यदि आपको उबकाई आ रही हो तो कभी भी अलसी का तेल और पनीर मत खाना, वर्ना जब भी आप पनीर खाओगे आपको उबकाई जरूर आयेगी।
प्रश्न 47 – मेरे एक अज़ीज़ को कैंसर के कारण बहुत तेज दर्द रहता है। मैं उसके दर्द को ठीक करने के लिए क्या करूँ क्योंकि दर्दनिवारक प्रोटोकोल के असर को कम करते हैं?
उत्तर – बुडविग ने लिखा है कि अधिकांश दर्दनिवारक उपचार के प्रभाव को बुरी तरह बाधित करते हैं। इसलिए कीमो या हार्मोन्स की तरह उनका प्रयोग भी नहीं करना चाहिये। भगवान का शुक्र है कि दर्द निवारण के लिए दवाओं अलावा भी कई वैकल्पिक उपचार मौजूद है।
प्रश्न 49 – मेरी मां को जल्दी ही डीहाइड्रेशन हो जायेगा, क्योंकि उसे बहुत दिनों से बार-बार दस्त की शिकायत हो रही है। क्या हमें अलसी का तेल और पनीर की मात्रा कम करनी चाहिये? या हमें उसे चावल और फाइबर (कूटू तथा ओटमील) देना चाहिये?
उत्तर – क्या वह बुडविग के बताये अनुसार पिसी हुई अलसी ले रही है। कई बार यदि रोगी पर्याप्त पानी नहीं पीता है तो अलसी से उसे कब्जी भी हो सकती है। केला भी कब्जी करता है। उसे चारकोल पावडर खिला सकते हैं, यह पेट को अंदर से स्पंज की तरह साफ करेगा। इसबगोल की भुस्सी पानी में मिला कर दे सकते हैं।
आपकी मां सूर्य की धूप ले रही है, हो सके तो सूर्य की किरणें सीधी उसके पेट पर पड़ने दें। रंग चिकित्सा भी प्रभावशाली है। पेट पर नीला प्रकाश हितकारी रहता है।
प्रश्न 50 – बुडविग आहार में कौन कौन से फल और सब्जियों के प्रयोग की अनुमति दी गई है? अंकुरित बीज और उनके रस के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर – मैंने अपने डॉक्टर को जोहाना बुडविग के कैंसर उपचार के बारे में बताया तो उसने कहा कि उसने बुडविग का कभी नाम ही नहीं सुना है और कहा कि यदि उसने कोई प्रामाणिक खोज की होती तो उसे मेडीकल कॉलेज में पढ़ाया जाता।
वैज्ञानिक खोज की डगर बहुत लम्बी और कठिन होती है। जिसे आज हम उपचार (जैसे विटामिन-सी से स्कर्वी का उपचार होता है) कहते हैं, उसके खोजने और विकसित करने में सैंकड़ों वर्ष लग जाते हैं। चेशायर कैट ने कहा है कि यदि आपको मालूम नहीं है कि आपको जाना कहाँ है तो कोई भी सड़क आपको वहाँ पहुँचा देगी। आज चिकित्सा विज्ञान विशेषतः कैंसर चिकित्सा में भी यही हो रहा है। आपको कोई भी सड़क पकड़ लेनी है। उपचार की डगर पर तो किसी को जाना ही नहीं है, लक्षण को दबाने के लिए कुछ रसायन ही तो देने हैं। जो किसी भी डगर पर मिल जायेंगे। फिर आज का असहाय और मूक रोगी कुछ कहने की स्थिति में भी नहीं होता है।
एक उदाहरण गौर करने लायक है। तेलों के हाइड्रोजनेशन प्रक्रिया की खोज और एफ.डी.ए. द्वारा यह स्वीकार करने कि हाइड्रोजनेशन हमारे लिए घातक तथा जानलेवा है और ओमेगा-3 फैटी एसिड हमारे लिए अच्छे हैं एफ.डी.ए. ने 92 वर्ष लगाये। (credits: C.C., Long Beach, CA)
प्रश्न 51 – क्या खुबानी के बीज या लेट्रियल (Vitamin B17) बुडविग प्रोटोकोल के असर को कम करते है?
उत्तर – बुडविग ने अपनी किसी भी पुस्तक में विटामिन वी-17 या एमिग्डेलिन/लेट्रियल/नाइट्रिलोसाइड का जिक्र नहीं किया है।
हाँ, हम यह अवश्य जानते हैं कि लेट्रियल प्रकृति में पाये जाने वाले कई फलों और बीजों में पाया जाता है। जिनमे से कई भोज्य पदार्थ बुडविग आहार में दिये जाते हैं। यहाँ तक कि अलसी में भी विटामिन बी-17 का अच्छा स्रोत है। अलसी में लिनिमेरिन तत्व में बी-17 होता है। खुबानी विटामिन बी-17 का सर्वोत्तम स्रोत है। बी-17 कैंसररोधी होता है। इसलिए खुबानी के बीज बुडविग आहार में बी-17 के स्रोत के रूप में लिए जा सकते हैं।
प्रश्न 52 – क्या आप मुझे बतायेंगे कि रोज लगभग एक कप पनीर (भले ही वह निम्न-वसा दूध से बनाया जाता है) खाने से हमारा कॉलेस्टेरोल तो नहीं बढ़ेगा?
उत्तर – मुझे इस प्रश्न पर हँसी आ रही है। सबसे पहले तो ध्यान देने योग्य बात यह है कि भोजन में पाये जाने वाला कॉलेस्टेरोल रक्त में पाये जाने वाले कॉलेस्टेरोल के स्तर पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। यह एक सत्यापित तथ्य है।
दूसरा कॉलेस्टेरोल का बढ़ना बुरी बात नहीं है, बल्कि अच्छा संकेत है। जब तक आपके कुल कॉलेस्टेरोल/एच.डी.एल. कॉलेस्टेरोल = 3.5 से कम है चिंता की कोई बात नहीं है।
आपके शरीर में हर हार्मोन कॉलेस्टेरोल से बनता है। सच्चाई तो यह है कि कॉलेस्टेरोल कम होना मृत्यु का जोखिम घटक है, खासतौर पर यदि आप स्टेटिन प्रजाति की दवा ले रहे हों।
स्टेटिन दवा के कुप्रभाव स्थाई यकृत और वृक्क क्षति, स्मरणह्रास आदि हैं।
यदि आपका कुल कॉलेस्टेरोल 300 मिलि ग्राम से कम है तो आपको घबराने की कोई बात नहीं है। कॉलेस्टेरोल एक मिथ्य या झूँठा हव्वा है, जिसे दवा निर्माता, एफ.डी.ए. जैसे चिकित्सा संस्थान और सरकारों ने हाइड्रोजनेटेड तेल$$/मार्जरीन$$ निर्माता को लाभान्वित करने के लिए खड़ा किया है। हाइड्रोजनेटेड तेल$$/मार्जरीन$$ निर्माता हमेशा अच्छे ओमेगा-3 फैटी एसिड्स और स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक तेल, नारियल तेल और जीव वसा (जो यकृत और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं) को बदनाम करते हैं।
हार्मोन्स के निर्माण के अलावा कॉलेस्टेरोल शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य करता है, जैसे यह पित्त-लवण (bile salts) बनाता है जो वसा के पाचन और खनिज तत्व के अवशोषण के लिए बहुत आवश्यक होता हैं। मस्तिष्क में भी 40% कॉलेस्टेरोल होता है। कॉलेस्टेरोल बढ़ने का एक कुप्रभाव प्रसन्न रहना भी है। कॉलेस्टेरोल कम होने पर आपको बहुत सारी दवाइयां खानी पड़ेगी। जिनका कॉलेस्टेरोल कम होता है वे जल्दी वृद्ध होते हैं।
कॉलेस्टेरोल को बदनाम करने का काम एक सोची समझी रणनीति है। इसके पीछे वही लोग हैं जो रिफाइंड तेल और वनस्पति घी से खाद्य उत्पाद बना कर करोड़ों अरबों कमा रहे हैं। ये वही लोग हैं जो पानी में फ्लोराइड, मुँह में पारा (Mercury), भोजन में प्रिज़रवेटिव्ज तथा प्लास्टिक, बर्तनों में कैंसरकारी टेफ्लोन (Perfluoroctanoic acid) और हथियारों तथा सिपाहियों के शरीर में यूरेनियम मिला रहे हैं।
कॉलेस्टेरोल का बढ़ना सचमुच चिंता का विषय नहीं है। हम आपको बतला देते हैं कि 50% हार्ट अटेक उन लोगों को होती है जिनका कॉलेस्टेरोल सामान्य या कम होता है। यदि आप सचमुच जानना चाहते हैं कि आपकी धमनियों में प्लॉक तो नहीं जमा है तो आपको सी.आर.पी. (CRP) और होमोसिस्ट्रीन की जांच करवानी चाहिये। ये जांच हृदय रोग की बेहतर जानकारी देते हैं।
प्रश्न 53 – क्या बुडविग प्रोटोकोल में स्टेविया प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर – स्टेविया रिबॉडियाना पौधे से स्टेवियोसाइड नामक मधुर तत्व निष्कासित किया जाता है। इसे जापान, पेरागुआ और कुछ अन्य देशों में निम्न कैलोरी मिठास के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह सुक्रोज से 300 गुना अधिक मीठा होता है। यह सरल और सुरक्षित जड़ी-बूटी है और बुडविग प्रोटोकोल में प्रयोग की जा सकती है।
प्रश्न 54 – हमारे यहाँ सर्दियों अक्सर बादल छाये रहते हैं, सूर्य बहुत कम निकलता है। क्या सूर्य प्रकाश की इस कमी को पूरा करने का कोई उपाय है?
उत्तर – बुडविग ने सूर्य के प्रकाश के महत्व पर बहुत जोर दिया है। लेकिन वे अल्ट्रा-वायलेट बल्ब के प्रयोग के विरुद्ध थी। हां वे रूबी लेज़र जरूर प्रयोग करती थी। उन्होंने यह भी कहा है कि भले धूप न निकले लेकिन आपको दो बार बाहर निकल कर प्रकाश का सेवन करना चाहिये। क्योंकि बादलों से छन कर ही सही सूर्य की थोड़ी रोशनी तो आती ही है। उन्होंने तो यहाँ तक लिखा है कि भले रोगी बेहाशी की अवस्था में हो, लेकिन उसे व्हील चेयर पर बिठा कर दिन में दो बार बाहर ले जाना ही चाहिये।
प्रश्न 55 – अभी मेरी कोलोनोस्कोपी हुई है और मेरी आंत में कैंसर की गांठ का आकार बढ़ा है। डॉक्टर ने मुझे सर्जरी करवाने के लिए कहा है। मैं पूरी भावना से प्रोटोकोल ले रहा हूँ। धूप सेवन, व्यायाम और विश्राम कर रहा हूँ। आध्यात्मिक दृष्टि से सकारात्मक महसूस करता हूँ और कई हफ्तों से दस्त मैं खून भी नहीं आया है। मुझे कोई तकलीफ नहीं है मेरे खून टेस्ट (सीईए) भी ठीक हैं। मुझे आश्चर्य है कि मेरी गांठ क्यों बढ़ी है और क्या मुझे सर्जरी करवा लेनी चाहिये?
उत्तर – डॉ. बुडविग ने “डैथ ऑफ अ ट्यूमर” में पृष्ठ संख्या 141 पर लिखा है कि इस उपचार से कई बार रोगी की स्थिति में काफी सुधार आने के बावजूद शुरू में उसकी गांठे बढ़ती हैं। यह चिंता का विषय नहीं है। इस स्थिति में इंतजार करना ही श्रेष्ठ है, धीरे-धीरे गांठ छोटी होने लगेगी।
प्रश्न 56 – क्या बुडविग आहार में जैतून का तेल प्रयोग में लिया जा सकता है?
उत्तर – जैसा कि आपने कई जगह पढ़ा होगा, जैतून का तेल बुडविग आहार में प्रयोग नहीं किया जाता है। अपनी किसी भी पुस्तक में उसने इस तेल को प्रयोग करने की सलाह नहीं दी है। जैतून का तेल में मोनो असंत्रप्त वसा-अम्ल होते हैं। ये आवश्यक नहीं माने जाते हैं। बुडविग ने अलसी, सूर्यमुखी और अखरोट का तेल प्रयोग करने की अनुमति दी है। ये सारे तेल भी कोल्ड-प्रोस्ड और अनप्रोसेस्ड होने चाहिये। जब आप कहीं बाहर जाये और आपको कोई अन्य तेल नहीं मिले तो ऐसी स्थिति में जैतून का तेल काम में लिया जा सकता है।
प्रश्न 57 – मैं बुडविग प्रोटोकोल ले रहा हूँ, मुझे लगता है कि मुझे अलसी के तेल से ऐलर्जी हो गई है। जब मैं अलसी का तेल लेता हूँ तो मेरी धड़कन तेज हो जाती है, श्वास-कष्ट और छाती में जकड़न होती है। मुझे क्या करना चाहिये? क्या इस ऐलर्जी का कोई उपचार है? क्या मुझे कोई दूसरा तेल प्रयोग करना चाहिये?
उत्तर – बुडविग आहार के साथ ही तेल की गुणवत्ता पर भी ध्यान दें। तेल जैविक और ताजा होना चाहिये, इसमें कोई कड़वापन या दुर्गंध नहीं आनी चाहिये। डॉ. हुडका क्लार्क के अनुसार यकृत की सफाई (liver Cleansing) से ऐलर्जी से छुटकारा मिलता है। ई.एफ.टी. भी सहायक सिद्ध होती है।
प्रश्न 58 – मैं दो सप्ताह से पूरी ईमानदारी से बुडविग प्रोटोकोल ले रहा हूँ। लेकिन अलसी के तेल और पनीर लेने से मेरा पूरा शरीर दर्द करने लगा है। त्वचा एकदम सूखी हो गई है, अंगुलियों में छाले हो गये हैं और दिमाग अस्तव्यस्त (Confuse) रहता है। मैंने सुना है कि अलसी का तेल लेने से ओमेगा-6 की कमी हो जाती है, जिसके कारण त्वचा कागज जैसी सूखी हो जाती है और जोड़ों में दर्द रहता है। क्या मुझे भी ओमेगा-6 की कमी हो गई है?
उत्तर – यह सच है कि कुछ विरले लोगों को स्वस्थ ओमेगा-6 की जरूरत ज्यादा होती है, जिसकी कमी से उन्हें कुछ तकलीफ होती है। इसका समाधान यही है कि आप अपने आहार में ओमेगा-6 की मात्रा (लेकिन खराब हाइड्रोजनेटेड फैट्स, तले हुए व्यंजन, और बाजार में उपलब्ध वनस्पति तेल का रूप में कभी नहीं) भोजन बढ़ाइये, ताकि आपके शरीर में वसाअम्लों का संतुलन ठीक हो जाये।
इसके लिए बेहतर विकल्प यही है कि आप अलसी के तेल में गांजे की बीज का कोल्ड-प्रेस्ड तेल (hemp seed oil) मिला लें। हेम्पसीड ऑयल में ओमेगा-6 अपेक्षाकृत अधिक होता है, इलसिए इसे मिलाने से ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का अनुपात 1:1 हो जाता है।
प्रश्न 59 – बुडविग उपचार में क्या सिर्फ पिसी अलसी से काम चल सकता है या मुझे अलसी का तेल भी लेना जरूरी है? मैं अलसी के बीज लेना ज्यादा पसन्द करता हूँ। इससे मुझे इसके पूरे तत्व और फाइबर भी मिल जाते है। लेकिन हर जगह अलसी के तेल का प्रयोग करने बात कही गई है। क्या आप मेरा सन्देह दूर करेंगे?
उत्तर – यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति बुडविग प्रोटोकोल लेना चाहता है, तो अलसी के बीज लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। अलसी में किस्म के अनुसार 30-42% तेल होता है (अर्थात मोटे तौर पर तिहाई)। लेकिन यदि आपको कैंसर या अन्य गंभीर रोग है तो तेल की काफी मात्रा लेनी पड़ती है, यदि तेल के बदले में आप सिर्फ अलसी ही लेना चाहें तो उससे तीन गुना अलसी का मात्रा लेना पड़ेगी। यह मात्रा इतनी अधिक होती है कि आपका पेट ही भर जायेगा और आप प्रोटोकोल के बाकी व्यंजन नहीं ले पायेंगे। और उपचार का महत्व ही खत्म हो जायेगा।
बुडविग ने भी कहा है कि अलसी का तेल ग्रहण करने का आसान तरीका पिसी अलसी का सेवन है, क्योंकि पिसी अलसी का पाचन और अवशोशण बहुत आसानी से होता है। इसीलिए अंतरिम आहार में तेल की जगह पिसी अलसी का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 60 – मेरे और कुछ अन्य लोगों के अनुभवों के आधार पर बुडविग प्रोटोकोल किसी भी गंभीर रोग का उपचार कर सकता है। क्या मैं सही हूँ?
उत्तर – मेरे खयाल से यह थोड़ा साहसिक बयान है। शायद बुडविग भी इससे सहमत नहीं होगी। बुडविग ने कहा है कि इस उपचार की सफलता रोगी की भावनात्मक स्थिति के अलावा कई पहलुओं पर निर्भर करती है। उनके अनुसार रोगी को शरीर, मन और आत्मा की एक संयुक्त और सम्पूर्ण इकाई के रूप में देखा जाना चाहिये। जैसा हम खाते हैं, वैसा ही हमारे शरीर का भौतिक आयाम बनता है। बुडविग प्रोटोकोल सम्पूर्ण मनुष्य के उपचार की विधा है, जिसमें भावना, मन, आध्यात्मिकता, व्यायाम आदि पहलुओं पर भी बुडविग ने पूरा ध्याम दिया है।
हमारे विचार, विश्वास, भावनाएँ बहुत महत्व रखती हैं। हमारे विश्वास की शक्ति कई बार दवा से बेहतर काम करती है। रोगी की तीव्र इच्छाशक्ति और ठीक होने का विश्वास रोगी के उपचार में उत्प्रेरक की तरह काम करता है।
प्रश्न 61 – क्या कुछ ऐसे पूरक तत्व या उपचार हैं जिन्हें बुडविग उपचार के साथ लिया जा सकता है? मैंने यह भी पढ़ा है कि एंटीऑक्सीडेंट्स बुडविग प्रोटोकोल पर बुरा प्रभाव डालते है। लेकिन मैं साथ में कुछ ऐसे उपचार भी लेना चाहता हूँ जो बुडविग प्रोटोकोल पर बुरा असर भी नहीं डालें। कृपया, बतलाइये?
उत्तर – आपको ज्ञात होना चाहिये कि यह उपचार पूर्णतः प्राकृतिक है। फिर भी मेरे विचार से आप निम्न उपचार ले सकते हैं।
- सबसे महत्वपूर्ण पूरक तत्व जीने और ठीक होने की तीव्र इच्छा शक्ति है। आपके मन में जीने का एक उद्देष्य होना चाहिये। सकाररात्मक सोच, कल्पना (मैं ठीक हो रहा हूँ और मैं स्वस्थ हूँ।), आत्मदर्शन (visualization), आध्यात्मिक शक्ति आदि बहुत जरूरी है। आपकी वाणी और विचार एक विजेता की तरह होना चाहिये।
- अगला पूरक तत्व खनिज और विरले तत्वों से भरपूर जैविक सीवीड (sea weed) है। इसमें सेलेनियम समेत अनेक खनिज तत्वों के साथ आयोडीन भी होती है जो भारी टॉक्सिक धातुओं जैसे पारा और लेड आदि का विसर्जन करती है, थायरॉयड ग्रंथि को स्वस्थ रखती है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
- ऐलोवेरा, गेहूँ का ज्वारा, स्पेरुलिना, क्लोरेला आदि बहुत अच्छे और प्राकृतिक पूरक तत्व है।
- चीगोंग, ई.एफ.टी., ध्यान, प्रार्थना, सूर्य नमस्कार, ठहाके लगा कर हंसना, नाचना आदि बहुत प्रभावशाली हैं।