माइक्रोवेव – वरदान या अभिशाप ???
आज हर समृद्ध और आधुनिक स्त्री की रसोई में आपको माइक्रोवेव ओवन जरूर मिलेगा। जिन स्त्रियों के पास नहीं है वे खरीदने को लालायित बैठी हैं। माइक्रोवेव के आने से गृहणियों को कितनी सहूलियत हो गई है। रात को ही बच्चों का टिफिन तैयार कर दो, सुबह बस माइक्रोवेव में गर्म किया और बच्चों को स्कूल भेज दिया। पति का कोई पसन्दीदा व्यंजन बनाना हो, बस ओवन में रखा, टाइमर सेट किया, स्टार्ट बटन दबाया और निश्चिन्त होकर टी.वी. देखने बैठ गये। दो मिनट में पोपकोर्न बन जाते हैं। बीस मिनट में लज़ीज तंदूरी मुर्गा तैयार पाइये। रात को पति लेट आये तो भी माइक्रोवेव दो तीन मिनट में खाना गर्म कर देता है। न गंदगी, न बार-बार हिलाने का चक्कर है। बिजली भी कम खर्च होती है और खाना भी फटाफट बन जाता है। माइक्रोवेव से खाना बनाना सचमुच कितना आरामदायक हो गया है।
लेकिन क्या इस सहूलियत की हम कोई भारी कीमत तो नहीं चुका रहे हैं? क्या माइक्रोवेव सचमुच खाना बनाने का प्राकृतिक और स्वस्थ तरीका है? जी नहीं अब यह सिद्ध हो चुका है कि माइक्रोवेव हमारे भोजन और स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुँचाता है। मेरा यह लेख पढ़ कर माइक्रोवेव ओवन के बारे में आपके विचार हमेशा के लिए बदल जायेंगे। आज मैं आपको बतला दूँगा कि यह मानवता का कितना बड़ा दुष्मन है, मनुष्य के लिए एक अभिशाप है। बड़े अचरज की बात यह है कि अधिकतर लोग इस बात से अंजान हैं, बेफिक्र हैं। यह बहुराष्ट्रीय संस्थानों की सफल व्यावसायिक नीतियों का करिश्मा है। आजकल तो वैज्ञानिक यह तक कहने लगे हैं कि यदि आपके घर में माइक्रोवेव ओवन है तो उसे अपने सबसे बड़े दुश्मन को तोहफे में दे दीजिये।
स्पेंसर भाई ने किया माइक्रोवेव ओवन का आविष्कार
सन् 1946 में अमेरिका के नौसिखिये और स्वशिक्षित (अर्थात ये महोदय कॉलेज नहीं गये और घर पर किताबें पढ़ कर ही अभियंता बने थे) अभियंता पर्सी लेबरोन स्पेंसर रेथियोन कॉर्पोरेशन में राडार पर शोध कर रहे थे। एक दिन जब उन्होंने मेग्नेट्रोन नाम की एक वेक्यूम ट्यूब में विद्युत प्रवाहित की तो उनके कोट की जेब में पड़ी चॉकलेट पिघल गई थी। वे बड़े अचरज में पड़ गये। इससे प्रेरित होकर दूसरे दिन उन्होंने ट्यूब के पास पोपकोर्न बनाने वाली मक्का के थोड़े दाने रख दिये और ट्यूब में बिजली चालू की तो उन्होंने देखा कि मक्का के दाने पक कर फूटने लगे और तड़तड़ाहट की आवाज के साथ उछट कर पूरे कमरे में बिखर गये।
अगले दिन उन्होंने अपने दोस्त पी.आर.हेन्सन को भी बुला लिया और ट्यूब के पास एक अंडा रख दिया। उन्होंने देखा कि ट्यूब में विद्युत चालू करते ही अंडा थरथराने लगा। थोड़ी ही देर बाद अंडा फट गया और गर्म-गर्म अंडे की जर्दी उछट कर उनके चेहरे पर जा लगी। स्पेंसर अचानक गर्व से मुस्कुराये, उनके के चेहरे की मुद्रा से ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कुछ जीत लिया हो, कुछ पा लिया हो। शायद वे समझ चुके थे कि यह ट्यूब से निकली विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की ऊर्जा का कमाल है। उन्होंने पल भर में सोच लिया कि यदि इस ऊर्जा से चॉकलेट पिघल सकती है, पोपकोर्न बन सकते हैं और अंडा पक सकता है तो इससे खाना भी पकाया जा सकता है। बस फिर क्या था उन्होने एक धातु का बक्सा बनवाया, जिसमें एक ढ़क्कन लगवाया और उसके एक कोने में मेग्नेट्रोन वेक्यूम ट्यूब कस दी। बक्से में पकने के लिए एक कांच की प्लेट में खाना रखा जो ट्यूब में बिजली प्रवाहित करने के थोड़ी देर में अच्छी तरह पक गया। थोड़ी और जद्दोजहद करके आखिर इस मुन्नाभाई टाइप के इंजिनियर ने माइक्रोवेव का सरकिट बना ही दिया। 1947 में उन्होंने बड़े फ्रीज़ के आकार की दुनिया की पहली माइक्रोवेव ओवन बनाई जिसका उन्होंने राडार-रेंज नाम रखा था। इस तरह हुआ माइक्रोवेव ओवन का आविष्कार, जो आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अरबों डालर का व्यवसाय बन चुकी है।
सन् 1989 में मिनेसोटा विश्वविद्यालय ने भी चेतावनी जारी की थी कि शिशुओं के दूध की बातलें माइक्रोवेव ओवन में गर्म नहीं करनी चाहिये क्योंकि इससे दूध के विटामिन नष्ट हो जाते हैं, पौषक तत्व विकृत हो जाते हैं जो शिशु की रक्षा-प्रणाली को कमजोर करते हैं और मस्तिष्क व गुर्दे को क्षति पहुँचाते हैं। माइक्रोवेव में गर्म करने से बोतल बाहर से तो ठंडी लगती है परंतु अंदर का दूध बहुत गर्म रहता है जिससे शिशु का मुंह जल भी सकता है।
1991 में ओक्लाहोमा में एक नोर्मा लेवित नामक स्त्री के कूल्हे की शल्य-क्रिया हुई थी। उसकी खून चढ़ाने से मृत्यु हो गई थी और मृत्यु का कारण यह था कि नर्स ने ठंडी खून की बोतल को माइक्रोवेव ओवन में हल्का सा गर्म कर लिया था। इतनी घातक होती है माइक्रोवेव तरंगें।
माइक्रोवेव का ओवन कैसे काम करता है
इन चूल्हों में भोजन माइक्रोवेव तरंगों द्वारा पकाया जाता है। माइक्रोवेव तरंगे विद्युत-चुम्बकीय तरंगें होती है। जब भी किसी चालक धातु में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उससे विद्युत-चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। माइक्रोवेव तरंगे बहुत सूक्ष्म तरंगे होती हैं, जो प्रकाश की गति (186,282 मील प्रति सैकण्ड की) से चलती है। आधुनिक युग में टेलीविजन, इंटरनेट या टेलीफोन संदेशों के प्रसारण में मा इक्रोवेव तरंगों की मदद ली जाती है। माइक्रोवेव ओवन में मेग्नेट्रोन नाम की एक वेक्यूम ट्यूब होती है। इस ट्यूब में 3-4 हजार वोल्टेज पर 60 Hz आवृत्ति की DC विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है जिससे ट्यूब से 2450 Mega Hertz (MHz) or 2.45 Giga Hertz (GHz) की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। 3-4 हजार वोल्टेज एक स्टेप-अप ट्रांसफोर्मर रेक्टिफायर की मदद से तैयार किया जाता है।
माइक्रोवेव एकांतर विद्युत-धारा AC (Alternating current) के सिद्धांत पर काम करती है। किसी भी तरंग-ऊर्जा के हर चक्र में ध्रुव परिवर्तन होता है, अर्थात नकारात्मक ध्रुव सकारात्मक हो जाता है और सकारात्मक ध्रुव नकारात्मक हो जाता है। 2.45 Giga Hertz (GHz) की माइक्रोवेव तरंगों में यह ध्रुव परिवर्तन एक सेकण्ड में लाखों करोड़ों बार होता है। भोजन और पानी के अणुओं में भी नकारात्मक और सकारात्मक ध्रुव होते हैं। इसलिए जब माइक्रोवेव तरंगें भोजन के संपर्क में आती हैं तो भोजन के अणुओं में इस ध्रुव परिवर्तन के कारण प्रचण्ड और विध्वंसक कंपन या स्पंदन होता है, और वह भी एक सैकण्ड में लाखों-करोड़ों बार। इस कंपन के कारण भोजन और पानी के अणुओं में तेज घर्षण होता है, जिससे ऊष्मा पैदा होती है और भोजन तेजी से गर्म होता है। लेकिन इस तेज घर्षण से भोजन के अणु बिखरने व टूटने लगते हैं, म्यूटेशन हो जाता है और कोशिका की भित्तियां फट जाती हैं ।
परमाणु या अणुओं के नाभिकीय विघटन (Nuclear Decay) के फलस्वरूप निकलने वाली विद्युत-चुम्बकीय तरंगों को विकिरण (Radiation) कहते हैं। माइक्रोवेव ओवन में भी नाभिकीय विघटन होता है। इसलिए वास्तव में इस उपकरण का नाम विकिरण चूल्हा या रेडियेशन ओवन ही होना चाहिये। लेकिन आप ही सोचिये कि क्या इस नाम से ये बहुराष्ट्रीय संस्थान एक भी ओवन बेच पाते???
तरंगों का तकनीकी तराना
आयाम (amplitude) तरंग (Waves) के उच्चतम व निम्नतम भागों को क्रमश: शीर्ष (crest) व गर्त (trough) कहते हैं। शीर्ष (crest) व गर्त (trough) के बीच की दूरी ‘A’ को तरंग का आयाम (amplitude) कहते हैं ।
तरंग दैर्ध्य (wavelength) तरंग दैर्ध्य (wavelength) तरंगों की निकटवर्ती दो शीर्षों (अथवा गर्तों) के मध्य की दूरी को व्यक्त करती है।
आवृत्ति V (frequency) तरंग की आवृत्ति V (frequency) उन तरंगों की संख्या है जो किसी बिंदु से प्रति सेकेण्ड गुजरती हैं। आवृत्ति का मात्रक कंपन/सेकेण्ड अथवा हर्टज (Hz) है।
विद्युत-चुम्बकीय विकिरण विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती तथा ये तरंगें निर्वात (space) में भी संचरित हो सकती हैं। प्रकाश तरंगें, ऊष्मीय विकिरण, एक्स किरणें, रेडियो तरंगें आदि विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के उदाहरण हैं। इन तरंगों का तरंग दैर्ध्य (wave length) काफी विस्तृत होता है। इनका तरंग दैर्ध्य 10-14 मी. से लेकर 104 मी. तक होता है।
डॉ. हर्टेल ने माइक्रोवेव के सच को दुनिया के सामने रखा
डॉ. हन्स अलरिच हर्टेल स्विट्जरलैंड की एक बड़ी खाद्य-पदार्थ बनाने वाले संस्थान में भोजन वैज्ञानिक के पद पर काम करते थे। कुछ वर्षों पहले उन्होंने भोजन पर प्रतिकूल और हानिकारक प्रभाव डालने वाले कुछ गलत तौर-तरीके बदलने और माइक्रोवेव का प्रयोग बंद करने के लिए संस्थान के उच्चाधिकारियों पर जोर डाला तो संस्थान ने उन्हे नौकरी से ही निकाल दिया। सन् 1991 में उन्होंने लौसेन विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर के साथ मिल कर अपने शोध-पत्र और आलेख फ्रेंज वेबर जरनल के 19 वें अंक में प्रकाशित किये। उन्होंने बतलाया कि माइक्रोवेव में पका खाना खाने से कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है।
हर्टेल ने स्विस फेडरल इन्स्टिट्यूट ऑफ बायोकेमिस्ट्री और यूनिवर्सिटी इन्स्टिट्यूट फोर बायोकेमिस्ट्री के बरनार्ड एच. व्लैंक के साथ मिल कर इस विषय पर शोध कार्य को आगे बढ़ाया। इन्होंने आठ बन्दों पर प्रयोग किये। इन बंदों को कुछ समय तक माइक्रोवेव से पकाया हुआ भोजन खिलाया गया। भोजन खिलाने के पहले और कुछ समय बाद उनके रक्त के कई नमूने लिये गये। जांच करने पर पता चला कि माइक्रोवेव में पके भोजन खाने वाले लोगों का हीमोग्लोबिन कम हो गया था। दूसरे महीने स्थिति और बिगड़ी। यदि इन बन्दों को माइक्रोवेव में पका हुआ भोजन एक साल या उससे भी ज्यादा समय तक दिया जाता तो पता नहीं क्या स्थिति होती।
माइक्रोवेव के प्रभाव से उनके श्वेत रक्त कण (Lymphocytes) और HDL (अच्छा) कॉलेस्ट्रोल कम हुआ और LDL (खराब) कॉलेस्ट्रोल बढ़ा। यह भी अच्छे संकेत नहीं हैं और शरीर में रोग और अपकर्षण (Degeneration) को दर्शाते हैं।
बदले में हर्टेल को मिली प्रताड़ना
हर्टेल और ब्लैंक ने अपने शोध-पत्रों को सर्च फोर हैल्थ 1992 के बसंत ऋतु अंक में प्रकाशित कर दिया। इसके बाद तो जैसे भूचाल आ गया। स्विटजरलैंड के घरेलू विद्युत-उपकरण बेचने और बनाने वाले व्यापारी और उद्योगपतियों की तो जैसे वाट ही लग गई। बौखलाहट में इस अमीर लौबी ने इन दोनों पर झूँठा मुकदमा ठोका और सेफ्टिगन अदालत के न्यायाधीश को मोटी रिश्वत देकर इनके खिलाफ फैसला भी करवा दिया। न्यायाधीश ने इन पर माइक्रोवेव ओवन बेचने और बनाने वाले उद्योगपतियों को आर्थिक नुकसान पहुँचाने का आरोप लगाया और इन्हें सख्त आदेश दिये कि वे अपने शोध-पत्र कहीं भी प्रकाशित नहीं करेंगे वर्ना उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ेगा या एक साल के लिए कैद की सजा भुगतनी होगी। ब्लैंक तो बेचारा डर गया लेकिन हर्टेल शहर-शहर घूमने निकल पड़ा और वह लोगों को अपनी शोध के बारे में बतलाता, व्याख्यान देता और न्याय के लिए गुहार लगाता।
अंत में हुई सत्य की विजय
लंबी लड़ाई लड़ने के बाद आखिर 25 अगस्त, 1988 को स्ट्रॉसबर्ग, फ्रांस की मानवाधिकार अदालत से हर्टेल को न्याय मिला। न्यायाधीश ने हर्टेल पर स्विस अदालत द्वारा लगाये गये सारे प्रतिबंध हटा दिये और स्विस अदालत को कड़ी फटकार लगाई और तुरन्त हर्टेल को हरजाने के रूप में 40,000 फ्रैंक भुगतान करने के आदेश दिये। ये सारी बाते इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
रूस ने क्यों और कैसे किया माइक्रोवेव को प्रतिबंधित
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस में भी रेडियो टेक्नोलोजी संस्थान, क्लिंस्क बाईलोरशिया ने माइक्रोवेव ओवन के कुप्रभावों पर काफी प्रयोग और शोध-कार्य किये। अमेरिका के शोधकर्ता विलियम कोप ने रूस और जर्मनी में माइक्रोवेव से संबंधित शोध कार्यों की व्याख्या की और लोगों के सामने रखा। इसके लिए इस बेचारे को अमरीकी सरकार ने व्यर्थ परेशान किया और उस पर मुकदमा (J. Nat. Sci, 1998; 1:42-3) भी दायर किया। रूस में हुई शोध से ये बातें सामने आई थी।
1- माइक्रोवेव के प्रभाव से आणविक विघटन होता है जिससे भोजन में भारी मात्रा में अप्राकृतिक रेडियोलाइटिक यौगिक बन जाते हैं। ये रक्त को नुकसान पहुँचाते हैं और शरीर की रक्षा-प्रणाली को कमजोर बनाते हैं। वैसे तो सामान्य तरीके से भोजन पकाने पर भी थोड़े बहुत रेडियोलाइटिक यौगिक बनते हैं, लेकिन मात्रा नगण्य होने की वजह से शरीर को नुकसान नहीं पहुँचा पाते हैं। शायद इसलिए भी आहारशास्त्री अपक्व आहार की अनुशंसा करते हैं।
2- माइक्रोवेव ओवन में खाना पकाने से उसमें कैंसर पैदा करने वाले खतरनाक तत्व डी-नाइट्रोसो-डाइ-इथेनोलेमीन (d-Nitroso-di-ethanolamine) बन जाते हैं।
3- प्रोटीन के अणु अस्थिर और निष्क्रिय हो जाते हैं। दूध और अनाज में विद्यमान प्रोटीन-हाइड्रोसाइलेट यौगिक में भी कैंसरकारी कण बन जाते हैं।
4- माइक्रोवेव में पकाने से फलों में विद्यमान ग्लूकोसाइड और गेलेक्टोसाइड का पाचन और चयापचय भी बुरी तरह प्रभावित होता है। सब्जियो में मौजूद अल्केलोइड भी निष्क्रिय हो जाते हैं।
5- माइक्रोवेव में पकाने से कंदमूल सब्जियों जैसे आलू, अरबी, मूली आदि में कैंसरकारी मुक्तकण बन जाते हैं।
6- माइक्रोवेव में बना खाना खाने से रक्त में कैंसर कोशिकाओं और मुक्तकणों का प्रतिशत बढ़ जाता है।
7- माइक्रोवेव में पका खाना खाने से स्मरणशक्ति, एकाग्रता, बुद्धिमत्ता और भावनात्मक स्थिरता कमजोर पड़ती है। लंबे समय तक नियमित माइक्रोवेव का खाना खाने से मस्तिष्क की कोशिकाओं में शोर्ट सर्किट होने लगता है और मस्तिष्क स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त होने लगता है।
8- माइक्रोवेव में पका खाना खाने से पुरुष और स्त्री हार्मोन्स का स्राव कम होता है।
9- माइक्रोवेव भोजन की रासायनिक बनावट बिगड़ जाती है जिससे शरीर का लिम्फेटिक सिस्टम भी ठीक से काम नहीं कर पाता और रक्षाप्रणाली (Immunity) कमजोर पड़ जाती है।
10- माइक्रोवेव में पकाने से भोजन में आई अस्थिरता और विकृति के कारण पाचनतंत्र संबंधी रोग हो जाते हैं। यहां तक कि आमाशय और आँतों का कैंसर भी हो सकता हैं और पाचन तथा उत्सर्जन तंत्र भी कमजोर पड़ जाता है।
11- माइक्रोवेव में पकने से भोजन की गुणवत्ता और पौष्टिकता पर बहुत बुरा असर पड़ता है। विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, विटामिन-सी, विटामिन-ई, खनिज, वसाअम्ल नष्ट होजाते हैं, मांस में विद्यमान न्युक्लियोप्रोटीन्स निष्क्रिय हो जाते हैं और सभी खाद्य तत्वों का थोड़ा-बहुत संरचनात्मक विघटन होता ही है।
इन कारणों से रूस ने 1976 में माइक्रोवेव को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन रूस के राजनीतिक संक्रमण के बाद की सरकार ने यह प्रतिबंध खत्म कर दिया था।