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Alsi Mahima
यह अलसी महिमा का नया और विस्तृत संस्करण है। यह पुस्तक हर घर में होनी चाहिए। इसे नए सिरे से लिखा गया है। कुछ नए चेप्टर जैसे सॉवरक्रॉट, ट्रांस फैट, कोकोनट ऑयल, नए अनुभव आदि जोड़े गए हैं। दोस्तों, आप इस पुस्तक को खरीदें और इस पर अमल करें। आप एक लंबा सुखद, स्वस्थ और सम्पन्न जीवन पाएंगे। अलसी न सिर्फ आपकी उम्र लंबी करती है, रोगमुक्त रखती है बल्कि आपको करोड़पति भी बनाती है। ऐसा मैंने आपको पहले भी उदाहरण देकर बतलाया है। अलसी आपको बुद्धिमान, बलवान, चरित्रवान, सदाचारी, सच्चिदानंद, संजीदा, सहनशील, दिव्य बनाती है। आपको सही मायने में मानुष बनाती हैं। इस पुस्तक को आप डाउनलोड कर लीजिए। – ओम वर्मा
अलसी के स्टार प्रचारक डा.ओ.पी. वर्मा ने अलसी को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एक और उम्दा काम कर डाला। स्वयं के खर्च से अलसी महिमा नामक एक पुस्तिका प्रकाशित करवाई है। 15 जनवरी को आपका मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अलसी पर व्याख्यान है, इस अवसर पर यह पुस्तिका भी जारी की जाएगी। पुस्तिका की पाँच हजार प्रतियाँ निशुल्क वितरित करने की उनकी योजना है। जैसे भागीरथ ने तपस्या कर मानव कल्याण के लिए धरती पर गंगा को बुलाया था, उसी तरह डा. वर्मा भारत की प्राचीन अलसी संपदा को समाज में पुनः गरिमा दिलाने के कार्य में जुटे हैं। आज के स्वार्थ प्रधान युग में ऐसे परमार्थी चिकित्सक बिरले ही मिलते हैं। वे चाहते हैं कि अलसी अपना कर जैसे वे स्वस्थ हुए वैसे सभी सुखी हों, स्वस्थ हों, निरोगी हों, निरामय हों। – सुरेश ताम्रकर वरिष्ठ पत्रकार नई दुनिया, इंदौर
"हैल्थ ऑफ इंडिया" मेगजीन - बडविग प्रोटोकॉल मेगा इश्यू
2013 अप्रेल में “हैल्थ ऑफ इंडिया” ने अलसी पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ जो बहुत वायरल हुआ। फिर “हैल्थ ऑफ इंडिया” की टीम ने मुझसे बातचीत की और हमने यह निर्णय लिया कि इस पत्रिका में बडविग प्रोटोकोल और कैंसर पर मेरे सारे लेख प्रकाशित किए जाएंगे। 2017 तक सारे लेख एक के बाद एक प्रकाशित होते रहे और बहुत सराहे गए।
इसी बीच जुलाई, 2015 में हमने बडविग पर एक खास कवर स्टोरी प्रकाशित की। इस अंक में डॉ. जोहाना बडविग की विस्तृत बायोग्राफी, उनका सफलतम कैंसर उपचार, टेस्टीमोनियल्स, और कई कैंसर-रोधी हर्ब्स जैसे एसियक चाय, नेटल, मिल्क थिसिल, डेंडेलियन, व्हाइट मलबरी और नेनो करक्युमिन का समावेश किया गया। डॉ. जोहाना बडविग ने पहली बार किसी भारतीय पत्रिका के कवर पेज की शोभा बढ़ाई है। मैं बडविग को अपना आइडॉल मानता हूँ और यह कवर इश्यु उस महान शख़्सियत के लिए मेरी ओर से एक छोटी सी श्रद्धांजलि है।
फेसबुक पर मेरा एक बडविग प्रोटोकोल ग्रुप है। इस ग्रुप के कुछ मेंबर्स ने मुझसे कहा कि मैं बडविग प्रोटोकोल पर एक सरल भाषा में एक पुस्तक लिखूँ। इधर बडविग प्रोटोकोल पर मेरी हिंदी पुस्तक “बडविग कैंसर उपचार” पब्लिश हो चुकी थी। बस मैंने “बडविग कैंसर उपचार” को इंगलिश में ट्रांसलेट किया और “हैल्थ ऑफ इंडिया” के कुछ आर्टीकल्स शामिल किया और इस तरह दो नई पुस्तकें “कैंसर – कॉज एंड क्यौर” और “बडविग प्रोटोकोल” तैयार हुई, जो अमेजोन पर बैस्ट सेलर हैं। – डॉ. ओम वर्मा
कैंसर की डॉक्टर जोहाना बुडविग शोध किया पहचाना, अलसी तेल पनीर मिलाया किया अचंभित फल जो पाया
जन हित धर्म कर्म चमकाया सात बार नोबल ठुकराया, कर्क रोग से सब जग हारा अलसी खिला खिला उपचारा
"लीवर कैंसर - नई उम्मीद
यह पुस्तक मैंने कैंसर के मरीजों, उनके परिजनों और जन-सामान्य के लिए लिखी है। पिछले 15-20 वर्षों में आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में लीवर कैंसर पर बहुत शोध हुए हैं और रोग के निदान हेतु कई आधुनिक मशीनें इजाद हुई है। शल्य-चिकित्सा नई ऊँचाइयों को छू रही है। नये उपचार खोजे गए हैं। लीवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्व संपन्न हो रहे हैं। इस पुस्तक में मैंने लीवर कैंसर से संबंधित सारी जानकारियां बड़े विस्तार से लेकिन बहुत ही सरल भाषा में लिखने की कोशिश की है, ताकि सभी को समझ में आ जाए। साथ ही लीवर की संरचना और कार्य-प्रणाली पर विस्तार से चर्चा की है। लीवर कैंसर पर हिंदी में पहली बार ऐसी पुस्तक लिखी गई है। मुझे पूरा विश्वास है कि इसे पढ़कर सभी लोग लाभान्वित होगे।
प्राइमरी लीवर कैंसर की शुरूआत लीवर से होती है, इसे हिपेटोसेल्यूलर कार्सिनोमा कहते हैं। बाइल डक्ट में होने वाले कैंसर को कॉलेंजियोकार्सिनोमा कहते हैं। यदि किसी अन्य जगह जैसे ब्रेस्ट या लंग का प्राइमरी कैंसर लीवर में पहुँच जाता है तो उसे मेटास्टेटिक कैंसर कहते हैं। मेटास्टेटिक कैंसर हिपेटोसेल्यूलर कार्सिनोमा की अपेक्षा बहुत कॉमन है। यहाँ मैं कुछ कम प्रचलित लीवर कैंसर जैसे हिपेटोब्लास्टोमा (जो बच्चों में होता है) और एंजियोसारकोमा का जिक्र करना मुनासिब समझता हूँ। इस लेख में मुख्य रूप से हम हिपेटोसेल्यूलर कार्सिनोमा का अध्ययन करने वाले हैं।
लीवर कैंसर के लक्षण और व्यवहार को अच्छी तरह समझने के लिए हमें लीवर की संरचना और कार्य प्रणाली को बारीकी से जानना बहुत जरूरी है। लीवर का प्रमुख कार्य ब्लड से विभिन्न टॉक्सिन्स को निकालना, फैट्स के पाचन में सहायक पित्त का निर्माण करना, आर.बी.सी. के निर्माण में सहायक हार्मोन्स का स्त्रवण करना आदि हैं।
"लिम्फोमा अनलॉक्ड" नये क्षितिज की तलाश
यह पुस्तक मैंने लिम्फोमा के मरीजों, उनके परिजनों और जन-सामान्य के लिए लिखी है। पिछले 10-15 वर्षों में आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में लिम्फोमा पर बहुत शोध हुए हैं और रोग के निदान हेतु कई आधुनिक मशीनें इजाद हुई है। नये उपचार खोजे गए हैं। इस पुस्तक में मैंने लिम्फोमा से संबंधित सारी जानकारियां बड़े विस्तार से लेकिन बहुत ही सरल भाषा में लिखने की कोशिश की है, ताकि सभी को समझ में आ जाए। लिम्फोमा पर हिंदी में पहली बार ऐसी पुस्तक लिखी गई है। मुझे पूरा विश्वास है कि इसे पढ़कर सभी लोग लाभान्वित होगे।
लिम्फोमा ब्लड कैंसर्स का एक समूह है जो लिम्फेटिक तंत्र से उत्पन्न होता है। लिम्फेटिक तंत्र पूरे शरीर में फैला हुआ लिम्फ-वाहिकाओं का एक जाल है, जिसमें लिम्फ नामक एक तरल धीरे-धीरे प्रवाहित होता रहता है। लिम्फ-नोड्स, स्पलीन, थाइमस, बोन-मेरो और रक्त की लिम्फोसाइट नाम की कोशिकाएं आदि इस तंत्र का प्रमुख हिस्सा हैं। इनका काम बाहरी बेक्टीरिया, टॉक्सिन और अनावश्यक तत्वों को शरीर से बाहर करना है। हमारे शरीर की रक्षा-प्रणाली के अधिकांश कार्य इसी तंत्र द्वारा संपन्न होते हैं। लिम्फोमा रक्षा तंत्र के किसी भी भाग को प्रभावित कर सकते हैं।
ल्युकेमिया के रहस्य
यह पुस्तक मैंने ल्यूकेमिया के मरीजों, उनके परिजनों और जन-सामान्य के लिए लिखी है। पिछले 15-20 वर्षों में आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में ल्यूकेमिया पर बहुत शोध हुए हैं और रोग के निदान हेतु कई आधुनिक मशीनें इजाद हुई है। नये उपचार खोजे गए हैं। इस पुस्तक में मैंने ल्यूकेमिया से संबंधित सारी जानकारियां बड़े विस्तार से लेकिन बहुत ही सरल भाषा में लिखने की कोशिश की है, ताकि सभी को समझ में आ जाए। साथ ही रक्त में सभी सेल्स की संरचना और कार्य-प्रणाली पर विस्तार से चर्चा की है। ल्यूकेमिया पर हिंदी में पहली बार ऐसी पुस्तक लिखी गई है। मुझे पूरा विश्वास है कि इसे पढ़कर सभी लोग लाभान्वित होगे।
ल्यूकेमिया बोन मेरो (अस्थि-मज्जा) में स्थित अविकसित और अपरिपक्व श्वेत रक्त कोशिकाओं (Hematopoietic precursor cells ) से उत्पन्न एक कैंसर है, जिसे आमतौर पर हम ब्लड कैंसर कहते हैं। ल्यूकेमिया में ये कोशिकाएं बड़ी तेजी बढ़ती हैं। बढ़ती कोशिकाओं के दबाव के कारण बोन-मेरो में बनने वाली स्वस्थ कोशिकाओं का उत्पादन बाधित होने लगता है, जिससे मरीज को खून की कमी, बार-बार इन्फेक्शन होना, त्वचा में लाल चकत्ते, अकारण वजन कम होना जैसे आम लक्षण हो सकते हैं।
वैसे तो खून की प्रचलित जांच सी.बी.सी. में यदि श्वेत कोशिकाएं बहुत बढ़ी हुई हों तो ल्यूकेमिया का संदेह हो जाता है, लेकिन पुख्ता निदान हेतु कई दूसरे टेस्ट किए जाते हैं। ऐलोपैथी में कीमोथैरेपी, स्टेम सैल ट्रांसप्लाट आदि से इस रोग का उपचार किया जाता है।